भारत के शीर्ष पूंजीपति गौतम अडाणी के शेयरों में हिंडनबर्ग रिपोर्ट से शुरू हुआ गिरावट का दौर जारी है। इस बीच अडाणी व हिंडनबर्ग के बीच के आरोप-प्रत्यारोप अब भारत की संसद व सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गये हैं। संसद में राहुल गांधी ने अडाणी के गोरखधंधे में मोदी की संलिप्तता का आरोप लगाया तो मोदी ने जवाब में बताया कि जनता ने उन्हें चुना है, जनता उनके साथ है। कि जनता इन आरोपों पर विश्वास नहीं करती। सर्वोच्च न्यायालय अडाणी के शेयरों व शेयर बाजार की उठा-पटक पर नियंत्रण करने हेतु जांच कमेटी बनाने की बात कर रहा है।
अडाणी प्रकरण में कुछ बातें चाहे न चाहे जगजाहिर हुई हैं। कि मोदी काल में अडाणी ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर शीर्ष स्थान हासिल कर लिया। कि अडाणी की इस तरक्की में मोदी सरकार की खास भूमिका है। मोदी ने बंदरगाहों-हवाई अड्डों के ठेके अडाणी को दिलाये। अडाणी की टक्कर के पूंजीपतियों को दबाव में लिया। बांग्लादेश-श्रीलंका में सरकारों पर दबाव कायम कर वहां भी अडाणी को ठेके दिलाये। सरकारी एल आई सी, स्टेट बैंक आफ इंडिया से भारी कर्ज अडाणी को दिलाया। पर अडाणी की चढ़ती में मोदी सरकार के साथ अडाणी व उसके भाईयों की कलाकारी की भी बड़ी भूमिका है। अडाणी ने अपने शेयरों के भाव बढ़ाने के लिए फर्जी कम्पनियां खड़ी कर उनकी खरीददारी की। इन फर्जी कम्पनियों ने अडाणी की कम्पनियों के खातों में रकम डाल-निकाल उनकी अच्छी सेहत का भ्रम पैदा किया। इन कम्पनियों के कारनामों से पैदा हुए शेयरों के भावों के उछाल से ही अडाणी दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच गया।
मोदी-अडाणी की मित्रता में किये गये उपरोक्त काम क्या आपराधिक काम हैं? कानून की निगाह में ये समस्त कृत्य आपराधिक हैं। पर आज के छुट्टे पूंजीवाद के दौर में ये सभी आपराधिक कृत्य आम चलन का हिस्सा हो चुके हैं। आज पूंजीपति सरकारों में मनपसंद व्यक्तियों को पहुंचा रहा है और सरकारें चहेते पूंजीपतियों की सेवा में अपने कानूनों की भी परवाह नहीं कर रही हैं।
छुट्टे पूंजीवाद के आज के दौर में इससे अलग कुछ संभव भी नहीं है। छुट्टे पूंजीवाद के दौर में वित्त पूंजी मुनाफे की खातिर कानूनों को तोड़ने से नहीं हिचकती। और वित्त पूंजी की सेवक-सरकारों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे वित्त पूंजी के कारनामों पर नियंत्रण करें।
इस मायने में अडाणी बाकी पूंजीपतियों की तरह ही कानूनों को धूल में मिला रहे थे। बस आगे बढ़ने की हवस में वे भूल गये कि कोई उनकी गिरावट में भी मुनाफा तलाश सकता है। हिंडनबर्ग ने यही किया।
अब जब अडाणी का गुब्बारा पिचकता जा रहा है तब इस पिचकते गुब्बारे पर राहुल गांधी-कांग्रेसी सवाल करने लगे हैं कि इसमें हवा भरने वाले मोदी थे और मोदी ने गैरकानूनी तरीके से इस गुब्बारे में हवा भरी थी।
क्या संसद व शीर्ष अदालत अडाणी-मोदी पर कार्यवाही करेगी? क्या अडाणी दुनिया के दूसरे नं. के पूंजीपति से जेल पहुंचेंगे। संसद व शीर्ष न्यायालय इस परिणाम की कल्पना भी नहीं करते। वे तो पूंजीवादी व्यवस्था की असलियत जगजाहिर करते मोदी-अडाणी की मित्रता को पर्दे के पीछे छिपाना चाहते हैं। राहुल गांधी भी इस भ्रम को मजबूती देना चाहते हैं कि मोदी-अडाणी मित्रता अपवाद है। पर वास्तविकता यही है कि सत्ता में आने पर राहुल भी पूंजीपति वर्ग की ही चाकरी करेंगे। पूंजीवाद में कुछ और संभव भी नहीं है। संसद-न्यायालय पूंजीपति वर्ग के हितों को ही साधने की संस्थायें हैं।