बेलसोनिका मजदूरों का संघर्ष मजदूर आन्दोलन के लिए उदाहरण

बेलसोनिका के मजदूर अपनी एकता को और ज्यादा मजबूत कर मजदूर आंदोलन के लिए उदाहरण पेश कर रहे हैं।
    

जैसा कि आपको पता है कि बेलसोनिका प्रबंधन और बेलसोनिका यूनियन के बीच में छंटनी को लेकर गतिरोध जारी है। इसी संघर्ष के दौरान कंपनी प्रबंधन हमारे 30 साथियों को अब तक निकाल चुका है जिसमें से 13 साथी निलम्बित और 17 साथी बर्खास्त हैं। 
    

बेलसोनिका यूनियन हर मजदूर के सुख-दुख में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। यूनियन, जो साथी निकाले गए हैं, उनकी आर्थिक मदद के लिए एक प्रस्ताव लाई है। यूनियन ने प्रस्ताव रखा कि काम कर रहे साथी प्रत्येक बर्खास्त और निलंबित साथी के लिए 15 रु. के हिसाब से सहयोग करें जो 450 रु. होता है जिसमें सभी मजदूर साथियों ने बढ़-चढ़ कर योगदान किया।
    

संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए यूनियन  4 मई से क्रमिक भूख हड़ताल पर है जिसमें 2-3 साथी हिस्सेदारी करते हैं। इसके अलावा सभी निलंबित और बर्खास्त साथियों के साथ कई मजदूर साथी लगातार धरना स्थल पर बने रहते हैं।
    

कई मजदूर साथी ए शिफ्ट जो सुबह 6.20 पर शुरू होती है, के साथी रात को भी धरना स्थल पर पहुंच जाते हैं और सुबह उठकर अपनी ड्यूटी ज्वाइन करते हैं। इसी तरह दोपहर की बी शिफ्ट के साथी रात को 12ः20 बजे शिफ्ट छूटने के बाद धरना स्थल पर ही पहुंच जाते हैं।
    

सी शिफ्ट के मजदूर साथी सुबह शिफ्ट छूटने के बाद धरना स्थल पर ही आराम करते हैं। इस तरीके से वह अपनी एकता और संघर्ष को मजबूत कर रहे हैं। 
    

इसी प्रकार से कई मजदूर साथी अपने घरों से धरना स्थल पर बैठे साथियों के लिए खाने-पीने से लेकर सोने-बिछाने के इंतजाम में भी भरपूर योगदान दे रहे हैं।         -जैनेंद्र, बेलसोनिका मजदूर

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।