दुर्घटनाओं में मजदूरों की मौतों का सिलसिला जारी है

भारत के अलग-अलग हिस्सों से आये दिन फैक्टरियों में दुर्घटनाओं की खबरें आ रही हैं। ताजा घटना में 3 अप्रैल को तेलंगाना राज्य के संगारेड्डी जिले के हथनूर मंडल में चंदपुरा गांव में स्थित एक दवा कम्पनी एस बी आर्गेनिक्स में रिएक्टर में विस्फोट होने से 6 लोगों की मौत हो गयी और करीब 17 लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। मारे गये लोगों में 1 प्रबंध निदेशक के अलावा 5 मजदूर हैं।
    
इसी तरह राजस्थान के बालोतरा जिले के औद्योगिक क्षेत्र में 12 अप्रैल 2024 को शुक्रवार के दिन दोपहर 2 बजे महालक्ष्मी प्रोसेस हाउस कपड़ा फैक्टरी में बॉयलर फटने से भीषण हादसा हो गया। बॉयलर पर काम कर रहे दो मजदूरों के चिथड़े उड़ गए। धमाके से उड़े मजदूरों के शरीर के अंग मलबे में मिले। इस घटना में दो मजदूरों की मौत हो गई और 4 मजदूर घायल हो गये। 
    
अपनी जान गंवाने वालों में जवाहरलाल (21) और मेघाराम (52) बालोतरा निवासी बताए जा रहे हैं। घायल मजदूरों का नाम देवेंद्र (20), खेताराम (28), सवाई (23) है जिनका इलाज चल रहा है। 
    
9 अप्रैल को महाराष्ट्र के विरार में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के अंदर सफाई का कार्य करते हुए 4 मजदूरों की मौत हो गयी। इनकी मौत का कारण दम घुटने से होना बताया जा रहा है। इन 4 मजदूरों में से एक सागर इलेक्ट्रिशियन था जिसके पिता का आरोप है कि उसकी मौत करंट लगने से हुई है।
    
मृतक चारों दोस्त थे और विरार पूर्व के भवखालपाड़ा और डोंगरापाडा में रहते थे। एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक एक निजी एजेंसी प्लॉयकाम को विरार पश्चिम की ग्लोबल सिटी में संदीपनी परियोजना के तहत 142 इमारतों का ठेका दिया गया था। 
    
सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद मज़दूरों को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में उतारा जा रहा है जो उनकी मौत का कारण बन रहा है। मैन्युअल स्कैवेंजिग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह प्रतिबंधित है और अगर किसी विषम परिस्थिति में भेजा जाता है तो उसके लिए 27 तरह के नियम कानूनों का पालन किया जाना जरूरी होता है लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं होता है।
    
आये दिन किसी न किसी फैक्टरी में हादसे हो रहे हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में औद्योगिक दुर्घटनाओं में प्रतिदिन 3 मजदूर अपनी जान गंवाते हैं व 47 मजदूर घायल होते हैं। हर महीने औद्योगिक दुर्घटनाओं में दौरान 90 मजदूर मर जाते हैं। हर साल 1100 मौतें हो जाती हैं और 4000 मजदूर घायल हो जाते हैं।
    
पूंजीपतियों के मुनाफे की भेंट चढ़ते मजदूरों की मौत के ये आंकड़े सरकारी हैं। लेकिन वास्तविक स्थिति इससे भी ज्यादा है। हर कोई अपने अनुभव से जानता है कि पुलिस बहुत से मामलों को दर्ज ही नहीं करती है। 
    
मजदूरों ने लम्बे संघर्षों के द्वारा फैक्ट्रियों में सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान लागू करवाए। लेकिन ये कानून तब तक ही लागू होते रहे जब तक मजदूर संगठित रहे और उनकी यूनियन अस्तित्व में रहीं (आज भी जिन फैक्टरियों में यूनियन हैं वहां ही मजदूरों के सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान लागू होते हैं)। 
    
लेकिन 1991 में कांग्रेस के नेतृत्व में नई आर्थिक नीतियां (निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण) लागू की गयीं और मजदूरों की ठेके व संविदा पर भर्ती की रफ्तार बढ़ती गयी और जब से मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आयी तब से श्रम कानूनों को बदलने की मुहिम ही तेज हो गयी। और मजदूरों की ट्रेड यूनियनों को खत्म कर बचे हुए मजदूरों को भी ठेके/संविदा पर रखने की रफ्तार बढ़ने लगी है और पूंजीपति वर्ग बेलगाम होता गया। 
    
पहले मालिक को फैक्टरी दुर्घटना होने पर यूनियन और श्रम कानूनों का थोड़ा डर रहता था (हालांकि पहले भी उसको सजा नहीं हो पाती थी) लेकिन आज मोदी राज में उसे इसका भी भय नहीं रह गया है। और मजदूर जो आज संगठित नहीं है, अपनी नौकरी खोने के भय से इन दुर्घटनाओं पर बोल नहीं पाता है। अगर इन दुर्घटनाओं पर कुछ होता भी है तो वह केवल कुछ देर का ही हो पाता है। मजदूरों का संगठित आक्रोश न होना और सरकार का पूंजीपरस्त होना बाकी पूंजीपतियों को इस बात के लिए मजबूर नहीं कर पाता कि वे फैक्टरियों में मजदूरों की सुरक्षा का प्रबंध करें। और परिणाम यह हो रहा है कि आये दिन फैक्टरियों में दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।
    
अगर इन फैक्टरी दुर्घटनाओं पर रोक लगानी है तो मजदूर वर्ग को इसके लिए संगठित होकर पहलकदमी लेनी होगी और पूंजीपति वर्ग को इस बात के लिए मजबूर करना होगा कि वह फैक्टरियों में मजदूरों की सुरक्षा व्यवस्था का ध्यान रखे।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।