हल्द्वानी में फिर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश

हल्द्वानी/ बीते 20 जून को बनभूलपुरा थाना क्षेत्र की दो नाबालिग हिंदू लड़कियां व एक नाबालिग मुस्लिम लड़का घर से चले गये। 6 दिन बाद 25 जून को पुलिस-प्रशासन ने उनको बरामद कर लिया। किशोर को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) को सौंप दिया गया। चार लोगों पर पॉस्को एक्ट व अन्य धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया गया है।
    
तीनों नाबालिगों के साथ जाने से क्षेत्र के हिंदूवादी संगठन विश्व हिंदू परिषद, गौ रक्षक दल, बजरंग दल, शिवसेना, भाजपा युवा मोर्चा आदि संगठनों ने इस विषय को अपने राजनीतिक फायदे के तौर पर लिया। उन्होंने बनभूलपुरा थाने का घेराव किया। उसके पश्चात हल्द्वानी कोतवाली में दिनभर हंगामा करने बैठ गये। इस दौरान इलाके का सांप्रदायिक माहौल खराब करने की कोशिश की गई। पुलिस-प्रशासन पर दबाव बनाने,  प्रशासन पर लड़कियों को वापस लाने के नाम पर अपनी घृणित साम्प्रदायिक हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति करने लगे।
    
इसी सांप्रदायिक माहौल के तहत शहर में गन्ने के जूस का ठेला लगाने वाले एक मुस्लिम दुकानदार के साथ कुछ लोगों ने मार-पिटाई कर, उसका सामान फेंक दिया। और उसको वहां पर दुबारा दुकान खोलने पर जान से मारने की धमकी दी गई।
    
हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करने वाले यह हिंदूवादी संगठन उत्तराखंड के अंकिता भंडारी के मामले में चुप्पी साध लेते हैं। जहां पर आरोपी भाजपा नेता पुलकित आर्य ने वीआईपी को खुश न करने पर अपने रिजॉर्ट में काम करने वाली नवयुवती अंकिता की हत्या कर दी। इनके नेता महिलाओं के वोट बटोरने के लिए ’बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ’ का नारा तो लगाते हैं। लेकिन बेटियों के साथ अन्याय करने वाले भाजपा नेताओं के मामले में चुप्पी साध लेते हैं। वह चाहे देश के महिला पहलवान खिलाड़ी हों जिनको भाजपा सांसद वृज भूषण शरण सिंह से अपने लिए न्याय मांगने के लिए सड़कों पर सरकार की लाठी-डंडे खाने को मजबूर होना पड़ा। या मणिपुर की महिलाएं हों उनके साथ न्याय शब्द के लिए भी मोदी जी सहित यह सब मौन धारण कर लेते हैं।
    
इनके राज में आए दिन महिलाओं के साथ यौन दुराचार और हिंसा की खबरें आती रहती हैं। इन पर यह चुप्पी लगा लेते हैं परंतु जहां पर इनको सांप्रदायिक तनाव पैदा करने का मौका मिलता हैं वहां अपने राजनीतिक हितों के लिए यह सक्रिय होकर सांप्रदायिक माहौल पैदा करने लगते हैं। तब उनकी नज़रें देश भर की महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय को देखना बंद कर देती हैं। यहीं इनका दोगलापन उजागर हो जाता है। इनकी दूषित और विषैली राजनीति को उजागर करने व साम्प्रदायिक तनाव के खिलाफ व्यापक संघर्ष करने की जरूरत है।         -हल्द्वानी संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।