इतिहास के लुटेरे

एक मई को यानी ऐन अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को देश के सत्ताधारी हिन्दू फासीवादियों की पार्टी भाजपा ने इंस्टाग्राम पर अपने आधिकारिक खाते से एक एनिमेशन वीडियो डाला। इसमें दिखाया गया कि प्राचीन काल में भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था क्योंकि यहां के लोग खूब समृद्ध थे। उनके पास खूब सोना और चांदी था। इसी कारण बाहरी लुटेरे (मुसलमान) यहां बार-बार आकर लूटते थे और लूट का माल बाहर ले जाते थे। अब एक बार फिर ऐसा ही होने वाला है। यदि कांग्रेस पार्टी इस चुनाव में जीत गई तो वह हिन्दुओं की सम्पत्ति छीन कर मुसलमानों में बांट देगी। यह वही राग था जिसे मोदी और भाजपाई कई दिनों से अलाप रहे थे। 
    
कुछ घंटे बाद ही यह वीडियो हटा दिया गया। लेकिन इसका उद्देश्य पूरा हो चुका था। इतनी देर में यह हर भाजपा समर्थक तक पहुंच चुका था। वे इसे आगे प्रसारित-प्रचारित करने के लिए डाउनलोड कर चुके होंगे। 
    
इस वीडियो की हर एक बात झूठी थी। पर यहां केवल एक ऐतिहासिक झूठ की बात की जायेगी। और वह यह नहीं है कि भारत कभी सोने की चिड़िया था। वह दूसरा झूठ है जो मुसलमान लुटेरों से संबंधित है। 
    
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जो मुसलमान शासक भारत आये वे यहीं बस गये। यहीं के होकर रह गये। इसी से तेरहवीं सदी से भारत में कई मुसलमान शासक वंशों की स्थापना हुई। गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, लोध वंश, मुगल वंश इत्यादि इनमें कुछ प्रमुख हैं। यह भी ध्यान रखने की बात है कि सारे मुसलमान शासक मुगल नहीं थे। मुगल वंश बाबर से शुरू होता है और बहादुर शाह जफर के साथ खत्म होता है। उनके पूर्वजों के मंगोल होने के चलते भारत में उन्हें पहले दूसरों ने उन्हें मुगल कहा जिसे बाद में उन्होंने खुद अपना लिया। मध्य काल में भारत आने वाले वास्तविक लुटेरे केवल तीन थे। (प्राचीन काल में शक-हूण आदि लुटेरे आ चुके थे जो इस्लाम के पैदा होने के पहले की बात है)। ये थे महमूद गजनवी, तैमूर लंग और नादिरशाह। ये तीनों अलग-अलग क्षेत्रों के शासक थे। ये शकों-हूणों की तरह लूटमार करने वाले कबीले नहीं थे बल्कि बड़े-बड़े क्षेत्रों के शासक थे। इनके द्वारा लूट वैसी ही थी जैसी उस जमाने के सारे राजा करते थे। 
    
इसमें भी महत्वपूर्ण बात यह है कि तैमूर लंग और नादिरशाह तब भारत आये जब दिल्ली और उत्तर पश्चिम में मुसलमान शासकों का राज था। शासक होने के चलते ज्यादातर सम्पत्ति भी उन्हीं के पास थी। यानी तैमूर लंग और नादिरशाह ने हिन्दुओं से ज्यादा मुसलमानों को लूटा। इसी तरह जब उन्होंने कत्लेआम किया (खासकर दिल्ली में नादिरशाह ने) तो उसमें हिन्दू से ज्यादा मुसलमान मारे गये। यह भी याद रखना होगा कि महमूद गजनवी ने अपने सत्रह बार के हमले में ज्यादातर मंदिरों को लूटा। मंदिरों की सम्पत्ति स्वयं गरीब मेहनतकश हिन्दुओं को लूटकर ही इकट्ठी की गयी थी। इस तरह एक लुटेरे ने दूसरे लूटेरे को लूट लिया। 
    
भारतीय इतिहास की ये सब सामान्य सच्चाईयां हैं। स्कूली किताबों में भी ये दर्ज हैं। पर हिन्दू फासीवादी इन सामान्य सच्चाईयों को झुठलाकर इतिहास को हिन्दू बनाम मुसलमान के संघर्ष के तौर पर पेश करना चाहते हैं। जिससे ‘हिन्दू राष्ट्र’ के लिए हिन्दुओं को गोलबंद किया जा सके। फिलहाल तो उनका लक्ष्य चुनाव जीतना है- झूठ-फरेब से भी। 

आलेख

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

/philistini-pratirodha-sangharsh-ek-saal-baada

7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।