केन्द्र में बैठी भाजपा सरकार मजदूरों पर नित नये हमले कर रही है वहीं राज्य सरकारें भी इसमें पीछे नहीं हैं। अभी हाल में ही कर्नाटक की भाजपा सरकार ने मजदूरों पर एक नया हमला बोला है। कर्नाटक विधान सभा ने 1 मार्च को श्रम कानूनों में बदलाव पारित किया। द फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एप्पल फोन बनाने वाली ताइवानी कम्पनी फाक्सकान ने लाबिंग के जरिये कर्नाटक सरकार से श्रम कानूनों में भारी बदलाव करवाये हैं। इन बदलावों में काम को दो शिफ्टों में करवाने यानी 12 घंटे का कार्यदिवस का कानून पारित किया है। कानून के तहत महिलाओं को भी अब रात की पाली में काम करना होगा। महिलाएं शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे तक काम करेंगी। सुरक्षा के नाम पर सीसीटीवी और जीपीएस युक्त परिवहन व्यवस्था देने की बातें की गयी हैं। मजदूरों को अब तीन दिन की छुटटी लेने से पहले चार दिन लगातार 12 घंटे काम करना होगा। सप्ताह में अधिकतम काम की सीमा यद्यपि 48 घंटे ही रखी गयी है। तीन महीने में ओवर टाइम की सीमा 75 घंटे से बढ़ाकर 145 घंटे कर दी गयी है। कहने को मजदूरों से 12 घंटे का काम हफ्ते में 4 दिन ही लिया जायेगा व उन्हें 3 दिन अवकाश मिलेगा। पर भारत में फैक्टरियों में हो रहे व्यवहार से समझा जा सकता है कि मजदूरों से सातों दिन 12 घंटे काम करवाया जायेगा। इस तरह व्यवहारतः कार्य दिवस 12 घंटे का बन जायेगा। गौरतलब है कि फाक्सकान एप्पल के आईफोन बनाती है जिसका सबसे बड़ा कारखाना चीन में झेंगझोऊ में है। यहां पिछले समय मजदूरों के भारी शोषण के कारण मजदूरों का आक्रोश फूटा था। यहां मजदूरों के आक्रोश के मुख्य कारण बोनस भुगतान में देरी, काम की खराब स्थितियां, खाद्य आपूर्ति में कमी आदि रहे हैं। कोविड के कारण लगे लॉकडाउन और मजदूरों के आक्रोश से यहां फाक्सकान की आपूर्ति में व्यवधान पैदा हुआ था। फाक्सकान तमिलनाडु में अपना एक संयंत्र पहले से ही चलाती है। वह और भी संयंत्र यहां खोलना चाहती है। लेकिन वह चाहती है उसे चीन की तरह श्रम की लूट की छूट मिले। इसीलिए वह सरकारों से लाबिंग कर रही है, और मनमाने कानून बनवा रही है। इसी के तहत कर्नाटक सरकार ने श्रम कानूनों में मौजूदा संशोधन किये हैं। 1 मार्च को श्रम कानूनों में संशोधनों से उत्साहित होकर मंत्री घोषणा करने लगे कि 300 एकड़ जमीन पर एप्पल फोन का कारखाना लगेगा। लेकिन अभी तक एप्पल फोन या फाक्सकान ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की है। एप्पल, फाक्सकान के प्रयासों से पहले ही केन्द्र और राज्य की सरकारें ऐसे कानून बनाने के लिए बड़ी तत्पर रही हैं। क्योंकि मजदूरों के श्रम की लूट देशी और विदेशी दोनों पूंजीपतियों की चाहत है। और भाजपा सरकार उनकी चाहत को परवान चढाने के लिए ही सत्ता में आयी है। वह यह काम सारी शर्मो हया ताक पर रखकर कर रही है। मोदी सरकार का यही विकास का माडल है जिसमें वह मजदूरों को ‘राष्ट्रवाद’ का पाठ पढ़ाती है। उन्हें धर्म, जाति का चश्मा पहनाती है। और दूसरी ओर विदेशी पूंजीपतियों के साथ सांठ-गांठ करके मजदूरों को लूटने की योजनाएं बनाती है।
कर्नाटक : देशी-विदेशी पूंजी के इशारे पर मजदूरों पर एक और हमला
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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।