पेरिस में तीन कुर्दों की हत्या के बाद प्रदर्शन

फ्रांस की राजधानी पेरिस के 10वें जिले में कुर्द सांस्कृतिक केन्द्र पर 23 दिसम्बर को एक हमलावर ने गोलीबारी कर तीन कुर्दों की हत्या कर दी। यह घटना उस समय हुई जब 10 साल पहले तीन कुर्दिश महिलाओं की याद में एक कार्यक्रम की तैयारी चल रही थीं। हमलावर 69 वर्षीय था जो कुछ समय पहले ही एक साल पहले पेरिस में एक शरणार्थी कैम्प पर हमले के मामले में बाहर निकला था।

घटना के बाद कुर्द लोगों ने पेरिस में प्रतिबंधित कुर्दिस पार्टी के झण्डे के साथ रिपब्लिक स्क्वेयर पर प्रदर्शन किया जहां पुलिस से उनकी झड़प हुयी। उसके बाद शनिवार 24 दिसम्बर को फिर से प्रदर्शन का आयोजन किया गया। बाद में यह प्रदर्शन हिंसक हो उठा और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की गाड़ी पलट दी और सड़क पर टायर जलाकर मार्ग अवरुद्ध कर दिया। एक प्रदर्शनकारी का कहना था कि जो लोग गुजर रहे थे उन्होंने प्रदर्शनकारियों को उकसाने का काम किया। इस प्रदर्शन में कई लोग घायल हुये।

दरअसल दस साल पहले कुर्दिश पार्टी की संस्थापक महिला के साथ दो और महिलाओं की हत्या 9-10 जनवरी 2013 को पेरिस में उनके सिर और गर्दन में गोलियां मार कर कर दी गयी थी। उसके बाद से उनके कातिल को सजा दिलाने की मांग को लेकर प्रदर्शन आयोजित होते रहे हैं। इस तिहरे हत्याकाण्ड के संदिग्ध व्यक्ति की 2019 में ट्रायल के दौरान ही मौत हो चुकी है। कुर्द लोगों का मानना था कि इनकी हत्याओं के पीछे तुर्की का हाथ था।

अब 10 साल बाद फिर से तीन कुर्दों की हत्या होने के बाद कुर्द लोगों में भय का वातावरण बन गया है। वे अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं और इस घटना को वे आतंकी घटना की तरह ले रहे हैं और फ्रांस की सरकार से भी यही मांग कर रहे हैं कि इस घटना को आतंकी घटना करार दिया जाये।

जिस हमलावर ने इस घटना को अंजाम दिया है उसका कहना है कि उसे गैर यूरोपीयन लोगों से घृणा है और वह उस दिन इसी उद्देश्य से गया था। जब उसे पास ही में ऐसे लोग मिल गये जो गैर यूरोपीयन थे तो उसने उन पर गोलीबारी कर दी। उसे व्यक्तिगत रूप से उनसे कोई दुश्मनी नहीं थी।

आज दक्षिणपंथी ताकतें दुनिया के हर समाज में हावी हो रही हैं। ऐसी ताकतें नस्लीय, धार्मिक, जातीय आदि के आधार पर समाज को बांट रही हैं और अपनी ताकत बढ़ा रही हैं। उनके विचार पर खड़े लोग अपनी या समाज की समस्याओं के लिए देश में मौजूद गैर नस्ल या गैर धर्म के लोगों को दोषी मान रहे हैं। और वे उनसे घृणा की उस हद तक पहुंच जा रहे हैं जहां वे उन्हें जान से मार दे रहे हैं।

पेरिस में तीन कुर्द लोगों की हत्या के लिए ऐसी ही दक्षिणपंथी ताकतें जिम्मेदार हैं। और इन दक्षिणपंथी ताकतों को नेस्तनाबूत कर ही ऐसे नरसंहार को रोका जा सकता है।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।