हरिद्वार/ उत्तराखंड के हरिद्वार जनपद में सिडकुल में बहुचर्चित राजा बिस्किट कंपनी में 17 साल काम कराने के बाद मालिक और प्रबंधन स्थाई कर्मचारियों को बाहर करना चाह रहे हैं। मजदूरों के खून-पसीने से पैसा कमा कर कलकत्ता व बनारस में मालिक ने कई नए प्लांट तैयार कर लिए हैं।
28 फरवरी 2022 से कंपनी में उत्पादन लगभग बंद है। जुलाई 2022 तक मजदूर कुछ न कुछ काम कंपनी में करते रहे हैं। 1 अगस्त से कंपनी प्रबंधन ने ‘‘ले ऑफ’’ लागू कर दिया। 2 फरवरी 2023 तक मजदूरों द्वारा कंपनी गेट पर उपस्थिति लगाई गई। 2 फरवरी के बाद कंपनी प्रबंधन ने उपस्थित रजिस्टर हटाकर कंपनी बंदी का नोटिस लगा दिया। तभी से सभी मजदूर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। मजदूरों द्वारा मशीनों व सामान को रोकने हेतु हाईकोर्ट नैनीताल में पहले सिंगल बेंच में उसके बाद डबल बेंच में स्टे हेतु अपील की गई। कंपनी गेट से मजदूरों को 500 मीटर दूरी तक हटाने हेतु स्टे को रोकने हेतु हरिद्वार के जिला कोर्ट के निचली कोर्ट व ऊपरी कोर्ट में कैविएट लगा दी गई। इसके बाद राजा प्रबंधन भी मजदूरों को गेट से हटाने हेतु कोर्ट में पहुंचा है। कैविएट लगी होने के कारण 14 मार्च को मजदूर प्रतिनिधियों को अपना पक्ष रखने हेतु कोर्ट में तारीख लगी है। प्रबंधन जहां 1 वर्ष पूर्व मजदूरों से कहता था कि आप त्यागपत्र दे दो आपका जो हिसाब बनेगा वह आपको भेज दिया जाएगा। जबकि राजा प्रबंधन का इतिहास यह रहा था कि जिस मजदूर ने भी त्यागपत्र दिया या छोड़ कर गया उसका हिसाब कभी नहीं हुआ।
इसी अनिश्चितता के कारण मजदूर अपने कानूनी हिसाब के लिए जगह-जगह भटके और इसके बाद इंकलाबी मजदूर केन्द्र के पास आये। तब संगठन द्वारा मजदूरों को बताया गया कि जो आपका कानूनी देय बनता है उसे तो मालिक देगा ही। कंपनी बंद करने पर मुआवजा भी देना पड़ेगा और जो आप से 12 घंटे काम कराकर 8 घंटे का वेतन दिया है उसका भी पैसा मालिक को भुगतान करना पड़ेगा। पर यह सब संघर्ष के दम पर ही संभव होगा।
मजदूरों की 7 सदस्यों की कमेटी बनाकर एक मांग पत्र श्रम विभाग में केस लगाया गया। 4 साल का ओवरटाइम का केस श्रम न्यायालय हरिद्वार में लगाया गया। इसमें मजदूरों का औसतन 6 से 10 लाख रुपये तक बैठ रहा है। फिलहाल श्रम न्यायालय में मजदूरों ने अपने ओवरटाइम के सबूत जमा कर दिए हैं। निर्णय आना बाकी है। मजदूरों ने संघर्ष करके जुलाई तक का पूरा वेतन लिया। अगस्त से दिसंबर तक ‘‘ले आफ’’ का आधा वेतन भी प्राप्त किया। 6 फरवरी को डीएलसी हरिद्वार के कार्यालय में वार्ता के दौरान कहा गया था कि कंपनी बंदी विधि के अनुरूप नहीं है अतः उपस्थिति रजिस्टर यथावत रखा जाए। परंतु कंपनी प्रबंधन ने बिना मजदूरों के त्यागपत्र के दिसंबर 2022 तक का अपनी मनमर्जी से फुल एण्ड फाइनल हिसाब खातों में डाल दिया (684 रुपये से लेकर 3 लाख 66 हजार रुपये तक)। और प्रबंधन अपने आप 15 दिन तक कंपनी से गायब रहा। हिसाब के बारे में प्रबंधन से पूछा गया तो उनका जवाब था कि हमें नहीं पता यह जो कुछ हुआ है वह हेड ऑफिस से हुआ है। 6 फरवरी को ही सेवा समाप्ति के पत्र भी मजदूरों के घरों में भेज दिए गए। तब पूरे सिडकुल में राजा प्रबंधन के खिलाफ रैलियां, जुलूस, गुमशुदगी के पोस्टर लगाकर जुलूस, 13 फरवरी को डीएलसी कार्यालय तक जुलूस व 17 फरवरी को डीएम कार्यालय तक जुलूस निकालकर न्याय की गुहार लगाई गई।
19 फरवरी को मजदूर महापंचायत की गई। पूरे सिडकुल में कई हजार पर्चे वितरित किये गए और मजदूरों से आर्थिक सहयोग लेकर महापंचायत को सफल बनाने में योगदान कराया गया। 19 फरवरी की मजदूर महापंचायत में 10 से 12 ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की व कुछ सामाजिक संगठनों की भागीदारी से 20 फरवरी को प्रबंधन वर्ग पुनः प्रकट हुआ और वार्ताओं में उपस्थित होने को तैयार हुआ। पहले 2 मार्च और उसके बाद 20 मार्च की अगली तारीख लगी है। धरना अनिश्चितकालीन चल रहा है। कुछ वार्ताएं कंपनी के अंदर भी हुई हैं। मजदूरों का इतिहास रहा है कि जो कुछ भी उन्होंने पाया है वह संघर्षों के दम पर पाया है। यहां भी मजदूरों ने विगत 1 साल से जो भी पाया है वह संघर्षों के दम पर ही पाया है। यहां तक कि जो मजदूर 5 साल पहले काम छोड़ चुके थे उन्हें भी अलग-अलग राज्यों से बुलाकर त्याग पत्र लेकर हिसाब किया गया है। कदम-कदम पर मजदूर जीते हैं। आगे भी मजदूर अपने संघर्षों के दम पर जीतेंगे। -हरिद्वार संवाददाता