लालकुआं/ 18 मई 2023 को रेलवे प्रशासन ने स्थानीय पुलिस-प्रशासन के साथ मिलकर लालकुआं, उत्तराखंड की नगीना कालोनी को जमींदोज करना शुरू कर दिया। तोड़-फोड़ की यह प्रक्रिया रेलवे द्वारा पूर्व में घोषित 200 मीटर की सीमा को लांघकर आगे बढ़ी। यह प्रक्रिया अगले दिन 19 मई को बस्ती के बड़े हिस्से को तोड़ने तक चली गयी। बस्ती के शेष बचे कुछ घरों को 26 मई को तोड़ने के नोटिस चस्पा किये गये। 26 मई को नगीना कालोनी का अस्तित्व ही हमेशा के लिए समाप्त कर दिया गया।
बस्तीवासियों सहित सामाजिक संगठन प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और इंकलाबी मजदूर केंद्र लगातार प्रशासन की इस गलत कार्यवाही का विरोध कर रहे थे। 18 मई की सुबह 7 बजे से ही बस्तीवासी व सामाजिक संगठन रेलवे-स्थानीय प्रशासन की इस गलत कार्यवाही के खिलाफ दमदार तरीके से मोर्चे पर डटे हुए थे। पुलिस-प्रशासन ने दल-बल के साथ आकर विरोध कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज किया। गाली-गलौज, बदतमीजी, अभद्र व्यवहार करने के बाद इस संघर्ष का नेतृत्व कर रही प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की केंद्रीय अध्यक्ष बिन्दू गुप्ता, कार्यकारिणी सदस्य पुष्पा सहित 12 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। प्रशासन की इस जोर जबरदस्ती के बाद बस्ती में बुलडोजर चलने शुरू हो गए। एक-एक कर मेहनतकशों के सालों पुराने आशियाने उजाड़ने शुरू कर दिये गये। 26 मई को बस्ती उजाड़ने का विरोध कर रहे भारतीय किसान यूनियन के युवा नेता सुब्रत विश्वास को गिरफ्तार कर लिया। उनके साथ भी मार पिटाई और बदतमीजी की गई। गिरफ्तार लोगों को देर रात निजी मुचलके पर रिहा किया गया।
ज्ञात हो 3 मई को रेलवे ने 10 दिन के अन्दर घर खाली करने के अल्टीमेटम के साथ नगीना बस्तीवासियों को नोटिस दिया। नोटिस में रेलवे ने बस्ती को ‘अवैध कब्जा’ कहा और 10 दिन के अन्दर खाली न करने पर घरों को उजाड़ने का खर्चा भी लोगों से ही वसूलने का फरमान सुना दिया। अचानक आशियाना उजड़ने की तलवार सिर पर टंगी देख गरीब बस्तीवासी अपनी नगीना कालोनी बचाओ संघर्ष समिति के साथ बैठक करके सबसे पहले 5 मई को स्थानीय भाजपा विधायक के पास अपना दर्द लेकर पहुंचे। विधायक ने रेलवे अधिकारी से बात कर बस्तीवासियों को दो टूक कह दिया कि ‘‘बस्ती तो टूटेगी ही, आप लोग रेलवे की जगह में बैठे हो’’। यह वही विधायक थे जो साल भर पहले विधानसभा चुनाव, 2022 के दौरान इस बस्ती के लोगों से भी अपने लिए वोट मांग रहे थे। तमाम चुनावी वायदे कर रहे थे। विधायक की बातों से लोग आहत हुए। अपने घरों को बचाने के लिए बाकी रास्ते ढूंढने लगे। संघर्ष के लिए आगे बढ़ते रहे।
नगीना कालोनी बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले 7 मई को उत्तराखंड के विभिन्न सामाजिक संगठनों को आमंत्रित करते हुए एक आपातकालीन बैठक की गयी। बैठक के बाद बस्तीवासियों और आन्दोलन को सहयोग कर रहे प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र व अन्य सामाजिक संगठनों की सर्वसहमति से आन्दोलन और उच्च न्यायालय में अपील करने का तय किया गया। इसी बीच 9 मई को रेलवे प्रशासन का जिलाधिकारी नैनीताल को लिखा पत्र सामने आया जिसमें 18 मई को बस्ती खाली कराने के लिए फोर्स, नोडल अधिकारी व अन्य इंतजाम की मांग की गयी थी। इसी क्रम में 10 मई को लालकुआं शहर में दमदार प्रदर्शन कर तहसीलदार के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया गया। 17 मई को हल्द्वानी में प्रदर्शन कर कुमाऊं कमिश्नर को ज्ञापन प्रेषित कर बस्तीवासियों को राहत देने की मांग की गयी। 17 मई को ही ज्ञात हुआ कि उच्च न्यायालय नैनीताल के फैसले से बस्तीवासियों को कोई राहत नहीं मिली। तुरत-फुरत में लोग सर्वोच्च न्यायालय में अपनी अपील लगाने पहुंचे जहां उस पर पिटिशन भी फाइल नहीं हो पायी थी कि 18 मई को रेलवे और स्थानीय प्रशासन ने मिलकर बस्ती को उजाड़ने के लिए बुलडोजर चला दिया। हजारों मजदूर-मेहनतकशों को बेरहमी से सड़क पर पटक दिया। उनको घरों से सामान निकालने का समय भी नहीं दिया।
अवगत रहे बस्ती में लगभग 5000 लोगों की आबादी रहती थी। गरीब, मजदूरों-मेहनतकशों की इस बस्ती में कच्चे मकान, टिनशेड व झोंपड़ियां थीं। यह लोग यहां पर पिछले 40-50 सालों से निवास कर रहे थे। इनके पास स्थाई निवास, जाति प्रमाण पत्र, वोटर आईडी कार्ड आदि पहचान पत्र बने हुए थे। सड़क, बिजली, पानी, 2 सरकारी प्राइमरी स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र सहित तमाम सरकारी सुविधाएं यहां निवास कर रहे लोगों को सालों से मिली हुई थीं। इस सब के बावजूद भी नगीना कॉलोनीवासियों को रेलवे की भूमि में ‘अवैध’ बताकर तहस-नहस कर दिया गया। जबकि रेलवे के पास भूमि के मालिकाने संबंधी कोई दस्तावेज नहीं थे। बस्तीवासियों द्वारा बार-बार आरटीआई लगाने के बावजूद भी रेलवे ने दस्तावेज संबंधित कागज कभी उपलब्ध नहीं कराए। सबसे मेहनतकश और कमजोर आर्थिक-सामाजिक स्थिति वाले इन लोगों के 500 कच्चे मकानों, झोपड़ियों को बुलडोजर से जल्दी में ही तहस-नहस कर दिया गया। अब ये लोग अपना बचा-खुचा सामान समेटते हुए, अपने लिए दूसरा आशियाना ढूंढने के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। दर्जनों परिवार आज भी गर्मी, आंधी-तूफान बारिश में अपने छोटे-छोटे बच्चों सहित खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। बूढ़े, बीमार और औरतें खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। सैकड़ों छात्रों की पढ़ाई व स्कूल बर्बाद कर दिए गए हैं। कहां तो मोदी जी का नारा था ‘‘जहां झुग्गी, वहां मकान’’ और यहां असलियत ये है कि झुग्गी भी तहस-नहस कर दी। इस हालत में समाज के जनपक्षधर व इंसाफपसन्द लोग जहां बस्तीवासियों की हर संभव मदद कर रहे हैं वहीं शासन-प्रशासन, सत्ताधारी दल भाजपा के लोग गायब हैं।
नगीना बस्ती ढहाने में सफल होने के बाद प्रशासन ने दो किलोमीटर पर स्थित वी आई पी गेट के लोगों को भी अतिक्रमण हटाने के नोटिस दे दिये। इस बीच नैनीताल के अतिक्रमण वाले स्थानों की सूची में लालकुआं के बिन्दुखत्ता का नाम देखकर यहां की जनता परेशान हो गयी। बिन्दुखत्ता वासियों ने एक संघर्ष समिति बनायी और संघर्ष की शुरूआत कर दी है। 7 जून को एक प्रदर्शन की तैयारी की जा रही है।
नगीना कालोनी की लड़ाई अभी उच्चतम न्यायालय में जारी है। जहां पर उजाड़े गए लोगों के पुनर्वास, मुआवजे का संघर्ष जारी है। इसको मजबूती से लड़ने की जरूरत है।
नगीना बस्ती के गरीब मेहनतकश केंद्र सरकार, राज्य सरकार, रेलवे और न्यायालय की भेंट चढ़ चुके हैं। आज सभी न्यायप्रिय लोगों को इस दुख की घड़ी में नगीना बस्तीवासियों के साथ हर संभव मदद के लिए आगे आने की जरूरत है। साथ ही वैध-अवैध, जन विरोधी विकास के नाम पर देशभर के अंदर उजाड़े जा रहे गरीब, मजदूर-मेहनतकशों के पक्ष में खड़े होने की जरूरत है। और व्यापक मजबूत एकता बनाकर सरकारों के इन जनविरोधी कदमों को पीछे धकेलने की जरूरत है। -लालकुआं संवाददाता