सैंक्को और वेंजेटी की अमर कहानी....

मज़दूर वर्ग के महान नेता सेक्को और वेंजेटी

अमेरिकी सरकार ने भारी विरोध के बावजूद झूठे मुकदमें में फांसी दी थी।

सैक्को और वैंजेटी को फांसी दिये हुए 97 वर्ष हो चुके हैं। 23 अगस्त 1927 को उनको फांसी दी गयी थी। ये दोनों इटली से संयुक्त राज्य अमेरिका में काम की तलाश में आये थे। जब इनको फांसी हुए पचास वर्ष पूरे हो गये थे, तब मैसाचुसेट्स के राज्यपाल डूकासिस ने उस न्यायिक प्रक्रिया की जांच करने के लिए एक पैनल का गठन किया था, जिसके तहत उनको फांसी दी गयी थी। उस पैनल का निष्कर्ष था कि उन दोनों के मामले में निष्पक्ष कार्रवाई नहीं की गयी थी। पैनल के इस निष्कर्ष ने बोस्टन में कुछ खलबली पैदा कर दी थी। एक अवकाशप्राप्त अमेरिकी राजदूत जान एम कैबोट ने अपना अपार गुस्सा व्यक्त करते हुए पत्र लिखा था और इस बात का जिक्र किया था कि ‘‘तीन अत्यन्त विशिष्ट और सम्माननीय नागरिकों’’- हारवर्ड के अध्यक्ष लोवेल, एमआईटी के अध्यक्ष स्टैटन और अवकाश प्राप्त न्यायधीश ग्राण्ट- द्वारा मुकदमे का विशेष पुनरीक्षण करने के बाद राज्यपाल फुलर ने मौत की सजा की स्वीकृति दी थी। 
    
इन तीन ‘‘विशिष्ट और सम्माननीय नागरिकों’’ से बिलकुल भिन्न दृष्टिकोण हेवुड ब्राउन का था जिसे उन्होंने न्यूयार्क वर्ल्ड के अपने लेख में राज्यपाल द्वारा स्वीकृत उनकी रिपोर्ट के तुरंत बाद लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था ‘‘प्रत्येक कैदी को हावर्ड विश्वविद्यालय का अध्यक्ष फांसी देने के लिए उपलब्ध नहीं है...यदि यह हत्या है तो कम से कम मछली बेचने वाला ‘सैक्को’ और उसका मजदूर दोस्त वैन्जेटी अपनी आत्मा को धन्य महसूस कर रहे होंगे क्योंकि वे औपचारिक पोशाक और विद्वानों का गाउन पहनने वाले व्यक्तियों के हाथों मारे गये होंगे। हेवुड ब्राउन न्यूयार्क वर्ल्ड के स्तम्भकार के बतौर ज्यादा समय तक नहीं रहे। वे बीसवीं सदी के अत्यन्त विशिष्ट पत्रकारों में से थे।
    
उनकी फांसी की 50वीं वर्षगांठ पर न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा कि मेयर वीगा की योजना है कि आगामी मंगलवार को ‘सैक्को और वैन्जेटी दिवस’ की घोषणा कर दी जाए। इसे विवाद को टालने के प्रयास में बाद में रद्द कर दिया गया।
    
50 वर्ष पुराने मामले में, जिसे अब 90 वर्ष हो चुके हैं, इतनी ज्यादा भावनायें भड़कने के कई कारण होंगे। यह इसलिए है कि सैक्को और वैन्जेटी की बात करके आज के मुद्दों से अवश्यम्भावी तौर पर ध्यान भटकाया जाये। आज के ज्वलंत मुद्दे हमारी न्याय प्रणाली, युद्ध और नागरिक स्वतंत्रताओं के बीच रिश्ते और अराजकतावाद के विचार, जो राष्ट्रीय सीमाओं को भुलाकर तथा युद्ध, गरीबी समाप्त करने और पूर्ण जनवाद को कायम करने से सम्बन्धित हैं।
    
सैक्को और वैंजेटी का मामला अत्यन्त स्पष्ट तरीके से उजागर करता है कि हमारे न्यायालयों के दरवाजों पर अंकित ‘‘कानून के समक्ष न्याय की समानता’’ हमेशा एक झूठ रहा है। ये दो व्यक्ति एक मछली विक्रेता और दूसरा मोची, अमेरिकी व्यवस्था में न्याय पाने में असफल हुए क्योंकि न्याय धनी की तुलना में गरीबों को समान रूप से नहीं मिलता, यहां पैदा होने वालों की तुलना में बाहर से आये मजदूरों को समान रूप से नहीं मिलता, कठमुल्लों की तुलना में परिवर्तनवादियों को समान रूप से नहीं मिलता, यह श्वेत लोगों की तुलना में रंग वाले व्यक्तियों को समान रूप से नहीं मिलता। और यद्यपि आज अन्याय ज्यादा सूक्ष्म रूप से तथा ज्यादा पेचीदा तरीके से मिलता है जितना कि सैक्को और वैंजेटी के इर्द गिर्द भौंड़ी परिस्थितियों में दिया गया था, तब भी इसका सारतत्व एक है।
    
अपनी प्रक्रिया में असमानता बेइन्तहा थी। आप पर डकैती और हत्या के आरोप थे, लेकिन अभियोक्ता, न्यायाधीश और ज्यूरी के दिमाग और व्यवहार में महत्वपूर्ण बात यह थी, जैसा कि अपने उल्लेखनीय उपन्यास बोस्टन में अप्टन सिंक्लेयर ने कहा था कि आप गंदे, विदेशी, मेहनतकश गरीब, परिवर्तनवादी हो।
    
यहां पुलिस की पूछताछ का एक नमूना है
पुलिस : क्या तुम एक नागरिक हो?
सैक्को : नहीं।
पुलिस : क्या तुम कम्युनिस्ट हो?
सैक्को : नहीं।
पुलिस : अराजकतावादी हो?
सैक्को : नहीं।
पुलिस : क्या तुम हमारी सरकार पर विश्वास करते हो?
सैक्को : हां, कुछ मुद्दों को मैं भिन्न तरीके से पसंद करता हूं। 
    
इन मुद्दों का साउथ ब्रैन्टी, मेसाचुसेट्स की जूता फैक्टरी की डकैती से और फैक्टरी मालिक व गार्ड पर गोली चलाने से क्या लेना-देना है?
    
सैक्को ने निस्संदेह झूठ बोला था। नहीं, मैं कम्युनिस्ट नहीं हूं। नहीं, मैं अराजकतावादी नहीं हूं। आप पुलिस से झूठ क्यों बोलते हैं? एक यहूदी गेस्टापो से क्यों झूठ बोलता था? दक्षिण अफ्रीका में एक अश्वेत व्यक्ति अपने पूछताछ करने वालों से क्यों झूठ बोलता था? ....क्योंकि वे जानते हैं कि न्याय उनके लिए उपलब्ध नहीं है।
    
क्या अमेरिकी व्यवस्था में गरीबों, रंग वाले लोगों और क्रांतिकारियों के लिए कभी भी न्याय रहा है? जब 1886 में हे मार्केट के दंगों के बाद (हालांकि ये दंगे पुलिस ने कराये थे) शिकागो के आठ अराजकतावादियों को मौत की सजा दी गयी, वह इसलिए नहीं थी क्योंकि उनके और पुलिस के पास किसी ने जो बम फेंका था, के बीच कोई सम्बन्ध था। प्रमाण का कोई सूत्र भी नहीं था। उनको इसलिए फांसी दी गयी थी क्योंकि वे शिकागो के अराजकतावादी आंदोलन के नेता थे।
    
जब प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यूगीन डेब्स और दूसरे हजारों लोगों को जासूसी अधिनियम के तहत जेल में डाल दिया गया था, तो क्या वे जासूसी काम के अपराधी थे। यह अत्यन्त संदेहजनक है। वे समाजवादी थे और युद्ध के विरुद्ध खुलेआम बोलते थे। जब यूजीन डेब्स को 10 वर्ष की सजा दी गयी थी, तब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ओलीवर वेन्डेल होम्स ने बहुत स्पष्ट शब्दों में यह कहा था कि डेब्स को जेल जाना चाहिए। और उसने डेब्स के भाषण को उद्धृत किया था : मालिक वर्ग हमेशा युद्ध चाहता है, जबकि दबे-कुचले लोग हमेशा लड़ाइयां लड़ते हैं।’’
    
होम्स जिसे बहुत उदारवादी न्यायविद माना जाता है, ने उदारवाद की सीमायें स्पष्ट कर दीं, उसने बदला लेने वाले राष्ट्रवाद द्वारा इसकी सीमायें तय कर दी थीं। सैक्को और वैंजेटी की तमाम अपीलें समाप्त हो जाने के बाद उनका मामला सर्वोच्च न्यायालय में खुद होम्स के सामने आया था, जिन्होंने मुकदमे का पुनरीक्षण करने से इंकार कर दिया और फैसला बरकरार रखा था।
    
हमारे समय में, ईनोल और जुलियस रोजेनबर्ग को फांसी दे दी गयी। क्या इसलिए कि वे अपराधी थे, बिना किसी उचित संदेह के वे सोवियत संघ को परमाणु गोपनीय जानकारी देने के अपराधी थे? या यह इसलिए था क्योंकि वे कम्युनिस्ट थे? जैसा कि न्यायाधीश की स्वीकृति से अभियोक्ता ने स्पष्ट किया था? क्या यह इसलिए भी नहीं था क्योंकि देश कम्युनिस्ट विरोधी दुष्प्रचार अभियान के दौर से गुजर रहा था, जब चीन में कम्युनिस्टों ने सत्ता प्राप्त कर ली थी, कोरिया में युद्ध चल रहा था और इन सभी का बोझ दो अमेरिकी कम्युनिस्टों पर डाल दिया गया था?
    
जार्ज जैक्सन को 70 डालर की चोरी के लिए क्यों कैलीफोर्निया की जेल में दस साल के लिए डाल दिया गया था और बाद में रक्षकों द्वारा गोली से उड़ा दिया गया था? क्या यह इसलिए नहीं था कि वह गरीब, अश्वेत और क्रांतिकारी था?
    
क्या कोई मुसलमान आज ‘‘आतंक के विरुद्ध युद्ध’’ के वातावरण में कानून के समक्ष समान न्याय का विश्वास करता है? पुलिस उनके पड़ोसी की कार को उठाकर क्यों ले जाती है, यदि उसने किसी यातायात के नियमों का उल्लंघन नहीं किया है और उसके बाद पूछताछ और अपमानित करती है? क्या यह वह इसलिए करती है कि वह काली चमड़ी वाला ब्राजीलवासी है जो दिखने मे मध्य पूर्व के मुसलमान जैसा लगता है?
    
संयुक्त राज्य अमेरिका की जेलों में 20 लाख लोग और जमानत पर 60 लाख लोग क्यों हैं, जिनकी निगरानी की जाती है या पेरोल पर हैं। इनमें सबसे अधिक काले रंग वाले या गरीब लोग हैं। एक अध्ययन बताता है कि न्यूयार्क की जेलों में कैद 70 प्रतिशत लोग गरीब और परेशान लोगों वाले सात इलाकों के बाशिंदे हैं। 
    
वर्ग के साथ अन्याय हमारे इतिहास के सभी दशकों और सभी शताब्दियों के दौरान होता रहा है। सैक्को और वैंजेटी मुकदमे के मध्य में मैसाज्यूट्स के मिल्टन नामक जगह के एक धनी व्यक्ति ने एक व्यक्ति को गोली इसलिए मार दी थी क्योंकि वह उसकी सम्पत्ति से लकड़ी इकट्ठा कर रहा था और वह मर गया। उस धनी व्यक्ति ने आठ दिन जेल में बिताये, इसके बाद वह जमानत पर रिहा हो गया और उसे सजा नहीं दी गयी। धनी के लिए एक कानून, गरीब के लिए अलग कानून, यह हमारी न्याय प्रणाली का निरंतर लक्षण रहा है। 
    
लेकिन सैंक्को और बैन्जेटी का मुख्य अपराध यह नहीं था कि वे गरीब थे। वे इटली के निवासी थे, आप्रवासी थे, अराजकतावादी थे। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के दो वर्ष भी नहीं बीते थे। उन्होंने युद्ध का विरोध किया था, सेना में भर्ती होने से इंकार किया था। उन्होंने क्रांतिकारियों और विदेशियों के विरुद्ध बढ़ रहे पागलपन को देखा था, न्याय विभाग के एटार्नी जनरल पाल्कर द्वारा की जा रही छापेमारियों को देखा था, जो बिना किसी न्यायालय के आदेश के रात को घरों में टूट पड़ता था, लोगों को बंदी बनाकर किसी से मिलने नहीं देता था और बेरहम पिटाई करता था। 
    
बोस्टन में 500 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उनको जंजीरों में बांध कर सड़कों से ले जाया जाता था। लुइगी गैलियानी, जो अराजकतावादी समाचार पत्र क्रोनाका सोल्वेर्सिवा का सम्पादक था, को गिरफ्तार किया गया और तत्काल देश से बाहर भेज दिया गया। इस समाचार पत्र के सैक्को और वैंजेटी ग्राहक थे। 
    
कुछ और भयानक बातें हुयी थीं। सैक्को और वैंजेटी का एक साथी जो अराजकतावादी था, आंद्रिया साल्सेडो नामक टाइपिस्ट न्यूयार्क में रहता था। उसको एफ.बी.आई. एजेण्टों द्वारा अगवा कर लिया गया तथा पार्क से बिल्डिंग की 14वीं मंजिल के कार्यालयों में रखा गया। उसे अपने परिवार, दोस्तों या वकीलों से बात करने की इजाजत नहीं दी गयी और एक अन्य कैदी के अनुसार उससे पूछताछ की गयी और पीटा गया। उसके बंदी बनाकर रखने के आठवें सप्ताह के दौरान, 3 मई 1920 को साल्सेडो का शरीर कुचला हुआ पार्क की इमारत के नजदीक एक खाली जगह पर घुटनों तक नुचा पाया गया और एफ.बी.आई. ने घोषणा कर दी कि साल्सेडो ने 14वीं मंजिल की खिड़की से कूदकर ठीक उसी कमरे से जहां उनको रखा गया था, आत्महत्या कर ली। 
    
आज 1975 में संसदीय रिपोर्ट के परिणामस्वरूप हम जानते हैं कि एफ.बी.आई. का प्रति खुफिया कार्यक्रम होता है जिसके तहत इसके एजेण्ट घरों और कार्यालयों में जबरन घुस जाते हैं, गैरकानूनी तौर पर माइक्रोफोन लगा देते हैं, हत्या की हद तक हिंसा के कार्यों में संचालित रहते हैं और 1969 में दो ब्लैक पैंथर नेताओं की हत्याओं में शिकागो पुलिस के साथ मिलकर सांठगांठ में संलिप्त थे। एफ.बी.आई. और सी.आई.ए. ने बार-बार कानून का उल्लंघन किया है। उनके लिए कोई सजा नहीं है। ............
    
इसलिए सैक्को और वैंजेटी के विरुद्ध भी मुकदमा ठीक प्रथम विश्व युद्ध के डेढ़ वर्ष बाद शुरू हो गया। यह वह समय था जब मौत और देशभक्ति का ताण्डव अभी खतम ही हुआ था, जब समाचार पत्र राष्ट्रवाद की लफ्फाजी से भरे रहते थे। 
    
मुकदमा शुरू होने के बारह दिनों बाद अखबारों ने सूचना दी कि तीन सैनिकों के शव फ्रांस के युद्ध मैदान से ब्रोकटान कस्बे में लाये गये हैं और कि समूची आबादी देशभक्तिपूर्ण त्यौहार मनाने के लिए निकल पड़ी। समाचार पत्रों में इन सभी बातों को ही ज्यूरी पढ़ सकती थी। 
    
सैक्को से अभियोजक काट्जमान ने पूछताछ कीः
प्रश्नः क्या मई 1917 के अंतिम सप्ताह के दौरान तुम इस देश को प्यार करते थे?
सैक्कोः श्रीमान काट्जमान, एक शब्द में इसे अभिव्यक्त करना बहुत कठिन है।
प्रश्नः श्रीमान सैंक्को तुम हां या ना, इन दो शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हो। कौन सा शब्द?
सैक्कोः हां!
प्रश्नः इस देश संयुक्त राज्य अमेरिका को अपना प्रेम प्रदर्शित करने के लिए जब मैं तुम्हें सैनिक बनने के लिए बुलाने वाला था तो क्या तुम मैक्सिको भाग गये थे?...
    
सैक्को और वैंजेटी समझते थे कि कोई भी कानूनी तर्क उन्हें वर्ग के अन्याय से नहीं बचा सकता था। सैक्को ने न्यायालय से कहा : ‘‘मैं जानता हूं कि सजा दो वर्गों के बीच होगी, उत्पीड़ित और धनिकों के बीच होगी....इसीलिए मैं इस समय अभियुक्त के बतौर हूं जो उत्पीड़ित वर्ग के लिए है।’’
    
वैंजेटी जानता था कि कानूनी तर्क उन्हें नहीं बचा सकते। जब तक लाखों-लाख अमरीकी संगठित नहीं होते, वह और उसका दोस्त सैक्को मारे जायेंगे। शब्द नहीं लड़ो। कोई अपील नहीं, मांगें पेश करो।...
    
23 अगस्त, 1927 को यूनियन स्क्वायर पर भारी तादाद में लोग इकट्ठा हुए। आधी रात से कुछ मिनट पहले पोल की रोशनी मद्धिम पड़ी। जैसे ही इन दोनों को बिजली की कुर्सी में जला दिया गया। न्यूयार्क वर्ल्ड ने इस दृश्य का इस तरह चित्रण किया था : ‘‘भीड़ ने भयंकर शोर से इसका प्रत्युत्तर दिया। 15 से 20 स्थानों पर महिलायें बेहोश हो गयीं।’’ अन्य हतप्रभ थे, स्टूलों पर बैठे थे और अपने हाथों से सिर झुकाये हुए थे। मनुष्य दूसरे मनुष्यों के कंधों पर सिर रखे हुए थे और रो रहे थे।’’
......
    
सैक्को और वैंजेटी के मुकदमे से हमें आज सिर्फ पीड़ा ही नहीं होती है बल्कि प्रेरणा भी मिलती है। उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी, लेकिन जब वे बोले तो एक किस्म की कविता हो गयी। वैंजेटी ने अपने दोस्त के बारे में कहा थाः सैक्को एक हृदय, एक विश्वास, एक चरित्र, एक मानव है। एक ऐसा मानव है जो प्रकृति और मानवता से प्यार करता है। एक ऐसा मानव है जिसने अपना सब कुछ, आजादी के मकसद के लिए और मानवता के प्रति अपने प्रेम के लिए न्यौछावर कर दिया। धन, आराम, दुनियावी आकांक्षायें, उसकी अपनी पत्नी, बच्चे, खुद और उसका अपना जीवन, सब कुछ न्यौछावर कर दिया। आह, हां, मैं उसकी तुलना में ज्यादा हाजिर जबाव या बोलने वाला हो सकता हूं, लेकिन उसकी साहसपूर्ण आवाज को जब कई-कई बार कानों में सुनकर उसके सर्वोच्च बलिदान की तुलना में अपने को छोटा महसूस करता हूं। और मैं इस बात के लिए अपने को रोकता हूं कि कहीं मेरे आंसू उसके सामने न दिखें, मेरा हृदय कहीं इतना न फट जाये कि उसके सामने मेरा गला रुंध जाये। कहीं मैं उसके सामने रो न पडूं : उस व्यक्ति के सामने जिसे गंदा, हत्यारा और अभिशप्त बताया गया है। 
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सैक्को ने अपने पुत्र दांते को यह लिखाः इसलिए, पुत्र, रोने के बजाय, मजबूत बनो, जिससे कि तुम अपनी मां का सहारा बनने में समर्थ हो सको... मां को देहातों में लम्बी-लम्बी दूरी तक घूमने के लिए ले जाओ और चुपचाप इधर-उधर से जंगली धूल इकट्ठा करो, पेड़ों की छाया के नीचे आराम करो..लेकिन दांते, हमेशा याद रखो कि खुशी का यह खेल सिर्फ तुम्हारी सेवा के लिए ही नहीं है...प्रताड़ित और पीड़ित लोगों की मदद करो क्योंकि वे तुम्हारे सबसे अच्छे दोस्ते हैं....जीवन के इस संघर्ष में तुम्हें ज्यादा प्यार मिलगा और तुमसे प्रेम किया जायेगा।’’
...............
    
जिस दिन वैंजेटी को गिरफ्तार किया गया था उसकी जेब में एक पर्चा था जिसमें पांच दिन बाद होने वाली मीटिंग की सूचना थी। उक्त पर्चे में लिखा थाः
    
‘‘वे सभी युद्धों में लड़े हैं। उन्होंने सभी पूंजीपतियों के लिए काम किया है। वे सभी देशों में गये हैं। क्या उन्हें अपनी मेहनत के फल हासिल हुए हैं, अपनी विजयों के इनाम मिले हैं? क्या अतीत आपको सुकून देता है। क्या वर्तमान मुस्कराता है? क्या भविष्य किसी चीज का वायदा करता है? क्या उन्हें ऐसी कोई जगह मिली है जहां वे मानव की तरह रह सकें और मानव की तरह मर सकें?
    
इन मुद्दों पर, अस्तित्व के संघर्ष के इन तर्कों पर बार्तोलोमेड बैंजेटी उक्त मीटिंग में बोलेंगे।’’
    
यह मीटिंग कभी नहीं हुई। लेकिन उसकी भावना आज उन लोगों के बीच मौजूद है जो पूरी दुनिया में विश्वास करते हैं और प्यार करते हैं तथा लड़ते हैं। 

(प्रस्तुत लेख हावर्ड जिन की पुस्तक ‘‘A Power Governments Can not Suppress’’ से लिया गया है। इसे Rebelion.org से साभार लिया गया है।)

आलेख

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यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।