सिलिकान वैली बैंक का डूबना : नये तूफान की आहट

10 मार्च 2023 को अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा बैंक सिलिकान वैली बैंक अचानक डूब गया। 2008 के वित्तीय संकट के बाद से यह डूबने वाला सबसे बड़ा बैंक है। इस बैंक के डूबने की खबर ने दुनिया भर के शेयर बाजारों में खलबली पैदा कर दी। अलग-अलग शेयर बाजारों में ढेरों बैंकों के शेयरों के भाव गिरने लगे। अगले दो दिनों में अमेरिकी बैंकों के शेयरों का कुल मूल्य 100 अरब डालर गिर चुका था तो यूरोपीय बैंकों के लिए यह राशि 50 अरब डालर थी। दुनिया भर के शेयर बाजारों का गिरना लगातार जारी है। भारतीय शेयर बाजार भी इससे अछूता नहीं रहा जहां बीते 4 दिनों से लगातार गिरावट देखी जा रही है। कुछ अर्थशास्त्री आने वाले दिनों में भारी गिरावट की भविष्यवाणी कर रहे हैं। अगर यही स्थिति बनी रहती है तो दुनिया एक बार फिर से खुद को वित्तीय संकट में फंसा पायेगी।

अमेरिकी शासक वर्ग बढ़-चढ़ कर दावे कर रहा है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत है और सिलिकान वैली अपेक्षाकृत छोटा बैंक है इसलिए इसका असर बाकी बैंकों व वित्तीय संस्थानों पर नहीं पड़ेगा। कि निवेशक व जमाकर्ता बैंकों पर विश्वास बनाये रखें। पर उनके पास इस दावे को साबित करने के कोई ठोस आधार नहीं हैं। वे बस जमाकर्ताओं में भगदड़ रोकने के लिए इस तरह के दावे कर रहे हैं। इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या वे दावे से कह सकते हैं कि सिलिकान वैली के डूबने का असर बाकी बैंकों व वित्तीय संस्थानों पर नहीं पड़ेगा तो राष्ट्रपति पहले तो अर्थव्यवस्था की मजबूती व उस पर भरोसा बनाये रखने की बात करते रहे पर पत्रकारों द्वारा घेरे जाने पर प्रेस कांफ्रेंस छोड़ कर चले गये।

बात अगर अमेरिकी बैंक सिलिकान वैली की करें तो यह व्यवसायिक बैंक अमेरिका का 16वां बड़ा बैंक है इसकी 13 देशों में शाखायें हैं। 1983 में स्थापित यह बैंक अमेरिका में 90 के दशक में डॉटकाम बूम के वक्त तेजी से फला-फूला। बाद में यह टेक कम्पनियों और इससे जुड़े स्टार्ट अप को ऋण देने वाला प्रमुख बैंक बन गया। चीन, भारत से लेकर तमाम यूरोपीय देशों में इसने अपनी शाखायें या सहयोगी बैंक स्थापित कर लिये। 2015 में बैंक ने बताया कि वह अमेरिका के 65 प्रतिशत स्टार्ट अप को ऋण मुहैय्या करवा रहा है। इसे अमेरिका का इकलौता ऐसा वित्तीय संस्थान कहा जाता रहा है जो क्रिप्टोकरेंसी के स्टार्ट अप को भी ऋण मुहैय्या कराता रहा है।

31 दिसम्बर 2022 तक इसके द्वारा 56 प्रतिशत ऋण ऐसी वेंचर कैपिटल फर्मों व प्राइवेट इक्विटी फर्मों को दिया गया था जो विभिन्न स्टार्ट अप में निवेश करते थे। 14 प्रतिशत ऋण उच्च सम्पत्ति वाले व्यक्तियों को तो 24 प्रतिशत ऋण टेक व स्वास्थ्य कंपनियों को दिया गया था। इनमें भी 9 प्रतिशत ऋण इन क्षेत्रों की स्टार्ट अप कम्पनियों को दिया गया था।

जब तक अमेरिका में केन्द्रीय बैंक द्वारा तय ब्याज दरें बेहद निम्न स्तर (लगभग शून्य के आस-पास थीं) तब तक बैंक तेजी से वृद्धि कर रहा था और जिन स्टार्ट अप कंपनियों को यह ऋण दे रहा था वे भी ऋण पर ब्याज बेहद निम्न होने की वजह से आगे तरह-तरह के निवेश में जुटी थीं। इनमें भी ढेरों निवेश जोखिम भरे या दूसरे देशों के शेयर बाजारों में सट्टेबाजी से जुड़े थे। पर जैसे ही अमेरिका में बढ़ती मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ायीं वैसे ही स्थिति बदलने लगी।

ब्याज दरें बढ़ने से अब ऋणों पर ब्याज की मात्रा बढ़ने लगी और ढेरों स्टार्ट अप कंपनियां अपना पहले सरीखा मनमाना निवेश करने की स्थिति में नहीं रहीं और वे घाटे की ओर जाने लगीं। जिसका सीधा असर सिलिकान वैली बैंक की सेहत पर पड़ा।

दिसम्बर 22 के अंत में सिलिकान वैली बैंक ने घोषित किया कि ब्याज दरों में वृद्धि व टेक कम्पनियों में गिरावट के चलते वह घाटे का सामना कर रहा है। और घाटे की भरपाई के लिए वह अमेरिकी बांड व अपने 2.25 अरब डालर के शेयर बेचेगा। इस खबर के फैलते ही तमाम टेक कम्पनियों जिन्होंने अपनी पूंजी सिलिकान वैली बैंक में जमा कर रखी थी, उनमें दहशत फैल गयी और लोग अपनी धन निकासी के लिए बैंक की ओर जा पहुंचे। बैंक के पास नकदी समाप्त हो गयी और उसे लेन-देन पर रोक लगानी पड़ी। इसके चलते 10 मार्च को कैलीफोर्निया डेवलपमेंट आफ फाइनेंशियल प्रोटेक्शन एण्ड इन्नावेशन (DFPI) को बैंक पर अपना नियंत्रण कर उसे फेडरल डिपोजिट इंश्योरेंस कारपोरेशन (FDIC) के हवाले करना पड़ा। इस संस्था ने तत्काल एक नया बैंक सिलिकान वैली ब्रिज बैंक बना मूल बैंक की परिसम्पत्तियों के निपटारे व जमाकर्ताओं के धन वापसी का जिम्मा लिया है। हालांकि यह संस्था केवल बीमाकृत जमा राशि को लौटाने के लिए उत्तरदायी है और मूल बैंक में जमा राशि का 80 प्रतिशत से अधिक राशि गैर बीमाकृत थी।

इस तरह बैंक के लगभग 9000 कर्मचारियों के साथ-साथ तमाम टेक कम्पनियों के कर्मचारियों जिनकी तनख्वाह सिलिकान वैली बैंक में आती थी, को अपना वेतन तक मिलने का संकट झेलना पड़ रहा है। हालांकि एफ डी आई सी ने 13 मार्च से नए बैंक के दफ्तर खोल दिये हैं।

तमाम विश्लेषक सिलिकान वैली के डूबने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों को बढ़ाने को मुख्य कारण बता रहे हैं। पर यह अर्द्धसत्य ही है। दरअसल यह बात सही है कि ब्याज दरों में बढ़ती ने इस बैंक के खराब ऋणों को एक झटके में सामने ला दिया पर यह भी बात उतनी ही सही है कि 2008-09 के वित्तीय संकट के बाद बैंक व वित्तीय संस्थान कम ब्याज दरों का लाभ उठा ऐसे भारी जोखिम वाले सौदे में लगे रहे हैं जिनके बड़े हिस्से कभी भी डूब सकते थे। ये सट्टेबाजी से लेकर भांति-भांति के भारी मुनाफे से प्रेरित कारोबार में जुटे रहे। 2008-09 का संकट वित्त पूंजी के इन्हीं कारोबारों का परिणाम था। संकट के बाद वित्त पूंजी पर लगाम लगाने की बातें भी जोर-शोर से हुईं पर अंत में पाया गया कि वित्तपतियों के लिए काम करने वाली सरकारें वित्त पूंजी पर किसी भी नियंत्रण में अक्षम हैं। आज के उदारीकरण-वैश्वीकरण वाले छुट्टे पूंजीवाद के दौर में वित्त पूंजी पर ऐसी कोई रोक लगाना संभव भी नहीं है।

209 अरब डालर सम्पत्ति वाला सिलिकान वैली बैंक डूब चुका है। इसके प्रभाव में बाकी बैंक डांवाडोल हो रहे हैं। अभी अमेरिकी सरकार यद्यपि उक्त बैंक को बचाने आगे नहीं आ रही है पर जैसे ही कुछेक और वित्तीय संस्थान डूबने की ओर बढ़ेंगे वैसे ही अमेरिकी सरकार बेल आउट लेकर आने को मजबूर होगी।

सिलिकान वैली बैंक डूबना 2007-08 से शुरू हुए वित्तीय संकट में एक नया मोड़ बिन्दु बन सकता है। फिलहाल अमेरिकी शासक वर्ग इस आशंका को टालने पर पूरा जोर लगा रहे हैं पर यह देखते हुए कि अमेरिकी बैंक 600 अरब डालर के खराब कोटि के कर्जों व परिसम्पत्तियों तले दबे हैं, कोई भी चिंगारी दावानल कभी भी बन सकती है। जाहिर है अमेरिका से अगर ऐसा संकट फिर शुरू होता है तो वह 2007-08 से कहीं ज्यादा गंभीर व वैश्विक स्वरूप वाला होगा।

2007-08 से जारी संकट और भविष्य का संभावित संकट बीते 3-4 दशकों की उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों का परिणाम है। इसके साथ ही यह पूंजीवादी व्यवस्था की आम गतिकी का भी परिणाम है। पूंजीवादी व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जो बारम्बार आर्थिक संकटों में फंसने को अभिशप्त है। हर ऐसा संकट और उससे उपजा मेहनतकशों के जीवन का संकट प्रदर्शित करता है कि यह व्यवस्था सड़ गल रही है कि धरती पर साम्राज्यवाद-पूंजीवाद के बने रहते मानवता को बार-बार संकट जन्य तबाही झेलनी पड़ेगी।

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