श्रम सघन उद्योगों का घटता निर्यात : लाखों मजदूरों का जीवन दांव पर

भारत से वस्तुओं का निर्यात यद्यपि स्थिर बना हुआ है। जबकि श्रम सघन उद्योगों से निर्यात में तेज गिरावट हुई है। ये श्रम सघन उद्योग हैं कपड़ा एवं वस्त्र उद्योग, जेम्स एंड ज्वेलरी उद्योग, चमड़ा उद्योग और समुद्री उत्पाद। इन चार सेक्टरों से कोरोना महामारी के पहले के वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2023-24 में निर्यात में 12 प्रतिशत की कमी आयी है। इसके दो कारण हैं। जहां एक ओर विकसित देशों में इस समय इन उत्पादों की मांग में कमी बनी हुई है वहीं दूसरी ओर वियतनाम और बांग्लादेश से इन उत्पादों के निर्यात में कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है। 
    
पिछले वित्त वर्ष में संपूर्ण वस्तुओं के निर्यात में 3 प्रतिशत की कमी आयी है जबकि कपड़ा एवं वस्त्र उद्योग, चमड़ा उद्योग, जेम्स एंड ज्वेलरी उद्योग और समुद्री उत्पाद के निर्यात में 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। वर्ष 2022-23 में इन श्रम सघन सेक्टरों में निर्यात 86.32 अरब डालर का हुआ था और वह वर्ष 2023-24 में घटकर 78 अरब डालर का रह गया। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 में इन श्रम सघन उद्योगों के उत्पाद का निर्यात क्रमशः 90 अरब डालर और 88.14 अरब डालर का था। table
    
पिछले 7 साल से भारत का कपड़ा एवं वस्त्र निर्यात 35 अरब डालर के आस-पास बना हुआ है। जबकि वियतनाम और बांग्लादेश मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) और सबसे कम विकसित देशों (LDC) की श्रेणी में आने के कारण इनके निर्यात पर 10-15 प्रतिशत आयात शुल्क कम लगते हैं। इसका लाभ मिलने के कारण इन दोनों देशों ने व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली है। परिणामस्वरूप हमारे देश के छोटे और मध्यम स्तर के टेक्सटाइल उद्योग के कारखाने बंद होने की कगार पर हैं। इस उद्योग से जुड़े बुनकरों एवं मजदूरां की आजीविका पर प्रश्न चिह्न लग गया है। आज के भूराजनैतिक तनाव के दौर में इन वस्तुओं की मांग पर और बुरा प्रभाव पड़ा है और इसने इन उद्योगों के संकट को और बढ़ाया है। 
    
ग्लोबल ट्रेड एंड रिसर्च इनीशियेटिव (GTRI) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में चीन द्वारा 114 अरब डालर, यूरोपीय संघ द्वारा 94.4 अरब डालर, वियतनाम द्वारा 81.6 अरब डालर और बांग्लादेश द्वारा 43.8 अरब डालर का वस्त्र निर्यात किया गया। जबकि भारत द्वारा मात्र 14.5 अरब डालर का वस्त्र निर्यात किया गया। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत वस्त्र के निर्यात में चीन और यूरोपीय संघ से ही पीछे नहीं है बल्कि यह बांग्लादेश और वियतनाम से भी बहुत पीछे है। 
    
2013 से 2023 के दस वर्षों में वस्त्र निर्यात में बांग्लादेश से 69.6 प्रतिशत और वियतनाम से 81.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि भारत से वस्त्र निर्यात में इन दस वर्षों में मात्र 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप 2015 से 2022 के बीच वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी घट गयी। बुने हुए वस्त्र की हिस्सेदारी 3.85 प्रतिशत से घटकर 3.10 प्रतिशत और बिना बुने हुए वस्त्र की हिस्सेदारी 4.6 प्रतिशत से घटकर 3.7 प्रतिशत हो गयी है। 
    
भारतीय निर्यातक महासंघ (FIEO) के अनुसार पिछले 5 सालों में वैश्विक स्तर पर बुने हुए वस्त्र के व्यापार में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि भारत से निर्यात इस क्षेत्र में घटा है। बांग्लादेश और वियतनाम क्रमशः 6 प्रतिशत और 4 प्रतिशत निर्यात बढ़ाने में सफल रहे हैं।
    
भारत से सम्पूर्ण वस्तु निर्यात की तुलना में संपूर्ण वस्तु आयात बढ़ता गया है। कोरोना महामारी से पूर्व के वर्ष 2017-18 में कुल निर्यात 300 अरब डालर की तुलना में वर्ष 2023-24 में कुल निर्यात 433 अरब डालर हुआ। यह 44 प्रतिशत की वृद्धि को दिखाता है। वर्ष 2017-18 में कुल आयात 465 अरब डालर की तुलना में वर्ष 2023-24 में कुल आयात 677 अरब डालर का हुआ। यह आयात में 46 प्रतिशत की वृद्धि दिखाता है। इससे एक महत्वपूर्ण बात यह निकल कर आती है कि वर्ष 2017-18 में भारत का व्यापार घाटा 165 अरब डालर का था वह वर्ष 2023-24 में बढ़कर 234 अरब डालर का हो गया। 
    
भारत में इलेक्ट्रोनिक विनिर्माण क्षेत्र में मूल्य संवर्धन में वृद्धि देखी गयी। सरकार द्वारा प्रचार किया गया था कि इससे काफी रोजगार पैदा होंगे। लेकिन फोन मैनुफैक्चरिंग में उच्च तकनीक सघन होने के कारण बहुत कम रोजगार का सृजन हुआ। 
    
वर्ष 2017-18 की तुलना वर्ष 2023-24 में इलेक्ट्रोनिक सामानों का निर्यात 288 प्रतिशत बढ़ा जबकि इस दौरान इलेक्ट्रोनिक सामानों के आयात में 61 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 
    
दूसरे सेक्टर जिस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं वह है रत्न और आभूषण क्षेत्र, जिसमें सरकार के अनुसार करीब 50 लाख लोग काम करते हैं। इसका वर्ष 2017-18 में निर्यात 41.54 अरब डालर का हुआ था जबकि वर्ष 2023-24 में 32.7 अरब डालर का निर्यात हुआ। अतः वर्ष 2017-18 की तुलना में इसके निर्यात में 20 प्रतिशत की गिरावट हुई। इस क्षेत्र की बहुत सी कम्पनी कर्ज में डूबी हुई हैं और अपनी देनदारी पूरी करने की स्थिति में नहीं हैं। 
    
फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष के कारण लाल सागर में चल रही उठापटक के कारण वस्तुओं का निर्यात खर्च ढाई-तीन गुना बढ़ गया है जिसके कारण श्रम सघन वाले सेक्टर जिसमें मुनाफा मार्जिन कम होता है जैसे वस्त्र उद्योग, चमड़ा उद्योग, रत्न और आभूषण उद्योग तथा समुद्री उत्पाद उद्योग पर संकट और बढ़ गया है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव इसमें काम करने वाले लाखों मजदूरों पर पड़ रहा है।  

आलेख

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