मजदूर वर्ग के बच्चों की शिक्षा और लोकतंत्र
अमन 14 साल का मजदूर और छात्र है। अमन और उसका परिवार अगस्त महीने में बवाना (दिल्ली) में खेत मजदूरी करने के लिए आया। 8 सितंबर 2024 को पूठ खुर्द के साध मंदिर के सामने अमन से
अमन 14 साल का मजदूर और छात्र है। अमन और उसका परिवार अगस्त महीने में बवाना (दिल्ली) में खेत मजदूरी करने के लिए आया। 8 सितंबर 2024 को पूठ खुर्द के साध मंदिर के सामने अमन से
पूंजीवादी लोकतंत्र में पूंजीपति वर्ग और इसके समर्थक लोग सभ्यता की दुहाई देते नहीं थकते। यह वर्ग समाज में अपने आप को ही सभ्य मानता है। मेहनतकश वर्ग को असभ्य कहकर उससे घृणा
साइकिल से फैक्टरी पहुंचने में दस मिनट लगते हैं। 8 बजकर 10 मिनट ये वो अंतिम समय है जिस वक्त तक मजदूरों को फैक्टरी में पहुंच जाना होता है। उसके बाद लेट आने पर गेट पर रोका भ
मैं हिन्दू नहीं हूँ?
हजारों साल तक मुझे
मंदिर में नहीं घुसने दिया,
फिर भी मैं हिन्दू हूं
क्योंकि मैं मुसलमां नहीं हूं।
पिछले दिनों पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्या के मामले में सभी पुरुष प्रधानता के पक्षधर सोशल मीडिया में कूद पड़े। ज्योति मौर्या के पीछे हाथ धोकर पड़ गए। इस तरह एक निजी पारिवारिक
संघ-भाजपा का नफरती चेहरा दिन-प्रतिदिन जनता के सामने उजागर होता जा रहा है। संघ भाजपा के ढेरों लोग संवैधानिक पदों पर विराजमान हैं। संघी मण्डली के लोग मुस्लिम समुदाय के लोगो
एक कमजोर हैसियत का इंसान, इतना कमजोर कि दो जून की रोटी के भी लाले पड़े हैं। पर वैचारिक रूप से बिलकुल रूढ़िवादी हो और रूढ़िवाद का प्रचारक भी हो। रूढ़िवादी साहित्यों के अलावा अ
सिस्टम की लापरवाही ने स्कूल जा रही छात्रा की जान ले ली। 7 जुलाई 2023 को 10वीं में पढ़ने वाली मठ लक्ष्मीपुर की छात्रा लक्ष्मी स्कूल जाते समय पानी भरी सड़क में फिसल गई। क्यूं
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को
7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।