जब देश के मुखिया को खुद के बायोलाजिकल की जगह दैवीय होने का भ्रम होने लगे तो फिर देश में कोई भी चमत्कार संभव है। ऐसा ही एक चमत्कार चुनावी वोटिंग मशीन ईवीएम ने कर दिखाया है। ईवीएम ने भी दावा कर दिया कि अगर मुखिया बायोलाजिकल की जगह दैवीय हो सकता है तो वह भी मैकेनिकल की जगह बायोलाजिकल तो हो ही सकती है। और फिर जब उसमें जीवों के गुण आ ही गये हैं तो वह कुछ वोट खा या कुछ वोट पैदा तो कर ही सकती है।
ईवीएम को जैविक बनने से रोकने की कुचेष्टा कुछ मानवों ने जरूर की थी। वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच कर मांग करने लगे थे कि चुनाव आयोग चुनाव के बाद मतों की संख्या बताने वाले फार्म 17 सी को वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दे। पर मानो चुनाव आयोग व सुप्रीम कोर्ट दोनों को ईवीएम के जैविक होने का पता था इसीलिए मानवों की इस कुचेष्टा को ठुकरा उन्होंने ईवीएम को जैविक बनने की छूट दे दी थी। ईवीएम बेचारी जो जैविक हो चुकी थी उसकी तो इस निर्णय से पूर्व सांस ही अटक गयी थी। पर जैसे ही यह निर्णय आया उसकी जान में जान आयी। अब वह बेखौफ होकर वोट खा और वोट पैदा कर सकती थी।
ईवीएम के जैविक होने के चलते हुआ यह कि बेचारे चुनाव आयोग ने किसी संसदीय क्षेत्र में जितने मत पड़़ने का डाटा चुनाव के हफ्ते भर बाद पूरी तसल्ली से जारी किया था, मतगणना के वक्त कहीं ईवीएम में उससे ज्यादा मत निकल आये और कहीं काफी कम मत निकले। 542 में 538 सीटों पर चुनाव आयोग के मतों की घोषित संख्या से भिन्न मत संख्या जनगणना में निकली। 362 लोकसभा क्षेत्रों में 5.54 लाख वोट ईवीएम में कम निकले व 176 लोकसभा क्षेत्रों में 35,093 वोट अधिक निकले।
उदाहरण के लिए तमिलानाडु के तिरूवल्लूर लोकसभा क्षेत्र में जहां पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान हुआ था। 25 मई को चुनाव आयोग ने बताया था कि यहां 14,30,738 ईवीएम वोट पड़े थे पर जब 4 जून को मतगणना हुई तो महज 14,13,947 ईवीएम वोट पाये गये। यानी 16,791 वोट गायब हो गये। इसी तरह असम के करीमगंज में चुनाव आयोग ने 11,36,538 वोट पड़ने की बात बताई। पर मतगणना में 11,40,349 वोट गिन लिये गये। यानी 3811 वोट अतिरिक्त आ गये।
जब ज्यादातर जगह यह गड़बड़ियां सामने आयीं तो चुनाव आयोग उ.प्र. ने इसके दो कारण बताये। पहला यह कि पीठासीन अधिकारियों ने चुनाव शुरू होने से पूर्व होने वाले मॉक पोल के मत मशीन से साफ नहीं किये होंगे व दूसरा यह कि उन्होंने 17 सी फार्म भरते समय वोटों की गलत संख्या भर दी होगी। खैर ये दोनों कारण इतने बड़े पैमाने पर वोटों की विसंगति को साबित नहीं करते। चुनाव आयोग अभी तक इस विसंगति का कोई स्पष्ट कारण नहीं बता सका है।
खैर दैवीय प्रधानमंत्री के राज में सब संभव है। भला दैवीय ताकत के आगे मशीन की क्या औकात। और अगर ईवीएम ही जैविक हो गयी है तब तो और जरूरी है कि व्यक्तियों के मताधिकार की सुरक्षा की खातिर ही ईवीएम को त्याग दिया जाये। अन्यथा आने वाले चुनाव में प्रत्याशी प्रचार की जगह जैविक बन गयी ईवीएम की पूजा करते नजर आयेंगे।
चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि पारदर्शिता की खातिर वो ईवीएम द्वारा पैदा किये गये और खा लिये गये एक-एक वोट का हिसाब दे। अन्यथा स्वीकार कर ले कि उसकी यह मशीन डाले गये मतों का सम्मान करने लायक नहीं है।
वोट जननी और वोट हंता ईवीएम
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