वो चाहते हैं बांटना
हमारी रोटियों को हिंदू और मुसलमां में
चाहते हैं सींचना खून से युवा नस्लों को
ताकि काट सकें लहलहाती
वोटों की फसलों को।
वो छींट रहे हैं सांप्रदायिक बीज
नर्म मुलायम, भुरभुरी युवा मिट्टी में
लगा रहे हैं युवाओं की जड़ों में
खाद नफरत की
वो फैला रहे हैं विषबेल
हमारे छप्परों पर
कर देना चाहते हैं छिन्न-भिन्न
सामाजिक ताने-बाने को
उनके मंसूबे खतरनाक ही नहीं
घातक भी हैं जहरीले नाग के विष की तरह।
इन विषधारियों के दंश से
कोई नहीं बच पायेगा
आज अब्दुल का नंबर है
कल रमेश का भी जरूर आयेगा।।
-भारत सिंह