ऐसा क्या हो सकता है कि कोई एक साथ ही गुलाम और गुलाम मालिक के साथ खड़ा हो जाये। अपराधी और अपराध के शिकार का साथ साथ-साथ दे। बाघ और बकरी को एक ही घाट में पानी पिला दे।
जो बाइडेन ने एक तरफ कहा कि इजरायल को आत्मरक्षा का अधिकार है और उसने गाजा पट्टी में बेशुमार बम गिराकर हजारों फिलीस्तीनियों की हत्या को जायज ठहरा दिया और दूसरी तरफ फिलीस्तीन को 100 मिलियन डालर की सहायता देने की घोषणा की।
जो बाइडेन एक ओर इजरायल को हथियारों की सप्लाई कर रहा है, अपने हथियारों से लैस युद्धपोत को इजरायल की सहायता के लिए भेज रहा है। तो दूसरी ओर यह दावा कर रहा है कि फिलीस्तीन को एक राष्ट्र का दर्जा मिलना चाहिए।
7 अक्टूबर के बाद जब इजरायल ने गाजा पट्टी पर कहर बरपाया तो जो बाइडेन तुरन्त इजरायल पहुंच गया। सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था। बाइडेन को इजरायल के साथ एकजुटता दिखाने के बाद मिश्र, फिलीस्तीन के राष्ट्रपति व जार्डन के राजा से मुलाकात करके शांति का ताज अपने हाथ से अपने सिर पर पहनना था। हो सकता है कि अपने पूर्व बॉस बराक ओबामा की तरह शांति का नोबेल पुरूस्कार पाने की चाहत रही होगी। जो बाइडेन की योजना पर उसके लठैत इजरायल ने ही पानी फेर दिया। लठैत ने मालिक की फजीहत करा दी।
जो बाइडेन की इजरायल यात्रा के ठीक पहले उसने गाजा पट्टी के अस्पताल में भीषण हमला कर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी। इजरायल की इस काली करतूत का पूरी दुनिया में तुरंत विरोध शुरू हो गया। मिश्र के राष्ट्रपति, जार्डन के राजा और फिलिस्तीन के नाम मात्र के राष्ट्रपति ने जो बाइडेन से अपनी मुलाकात रद्द कर दी। जो बाइडेन को इजरायल से मुंह चुरा के भागना पड़ा। ‘चौबे जी चले थे छब्बे जी बनने पर रहे गये दुबे जी’। एक धूर्त की जो फजीहत हुयी वह देखने लायक थी। उसके बाद से जनाब अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। कह रहे हैं कि हमास ने इसलिए इजरायल पर हमला किया कि वह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप की उसकी महत्वाकांक्षी योजना को पलीता लगा दे।
जो बाइडेन का मानसिक संतुलन अपनी फजीहत के बाद लगता है गड़बड़ा गया है।
एक धूर्त की फज़ीहत
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को