गाजा के संघर्ष को बयां करते बहादुर पत्रकारों को सलाम!

फिलिस्तीन (गाजा) का संघर्ष लंबे समय से चल रहा है। इस लंबे संघर्ष ने फिलिस्तीनी जनता विशेष रूप से फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों के जीवन को बहुत तकलीफदेह बना दिया है।
    
इस बार 7 अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइल पर किए गए हमले के बाद इजरायल ने फिलिस्तीनी संघर्ष को समाप्त करने और फिलिस्तीन को पूरी तरह अपने कब्जे में लेने के लिए फिलिस्तीन के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। इस युद्ध में हजारों की संख्या जिसमें बच्चों की संख्या बहुत अधिक है, मार डाला।
    
इस हमले में उसने मानवाधिकार का दिखावा भी छोड़ दिया है। पहले उसने एक अस्पताल पर जिसमें घायलों का इलाज चल रहा था, हमला किया जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। और फिर गाजा में भुखमरी की स्थिति का सामना कर रहे लोगों को राहत पहुंचा रही वर्ल्ड सेंटर किचन की टीम पर हमला किया जिसमें 7 कर्मचारी मारे गए। 
    
इस भीषण युद्ध हमले के बावजूद इजरायल, फिलिस्तीनी जनता का हौंसला नहीं तोड़ पाया है। फिलिस्तीनी इजरायल के साथ संघर्ष के साथ-साथ अपने लोगों की भी हर संभव मदद करने का प्रयास कर रहे हैं। घायलों का इलाज कर रहे डाक्टर और मेडिकल स्टाफ की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। अपने जीवन का संकट होने पर भी वह अपने लोगों को इस मुश्किल घड़ी में छोड़कर कहीं नहीं भाग रहे हैं। 
    
इस भीषण युद्ध/हमले की विभीषिका को दुनिया के सामने लाने और इसके खिलाफ दुनिया में न्याय का पक्ष खड़ा करने में वहां के पत्रकारों की भी विशेष भूमिका रही है जिन्होंने संघर्ष कर रही जनता का पक्ष चुना। हमले में फिलिस्तीन की स्थिति को अपने कैमरे के माध्यम से बयां किया। उन्होंने अपने कैमरे से ली गयी तस्वीरों के माध्यम से दिखाया कि इजरायली सेना किस तरीके से रिहायशी इलाकों में हमला कर इमारतों को नेस्तनाबूद कर रही है। इन हमलों में फिलिस्तीन के मासूम बच्चे ज्यादा संख्या में चपेट में आए हैं। उन्होंने दिखाया कि किस तरीके से इजरायली सेना ने घायलों का इलाज कर रहे अस्पतालों में हमला किया। उन्होंने दिखाया कि किस तरीके से इजराइली हमले में मारे गए लोगों की सामूहिक कब्रें दफन हो रही हैं। किस तरीके से मां-बाप अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों को अपनी गोद में उठाकर इलाज के लिए भाग रहे हैं और जो बच्चे मर गए हैं उन बच्चों को रो-बिलख कर कब्रों में दफन कर रहे हैं। उन्होंने अपने द्वारा खींची गयी तस्वीरों के माध्यम से इस अन्यायपूर्ण युद्ध के खिलाफ दुनिया की इंसाफपसंद जनता को फिलिस्तीन की जनता के पक्ष में खड़ा किया। जिसका परिणाम है कि इस युद्ध के खिलाफ और फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में दुनिया भर में बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए और आज भी हो रहे हैं। 
    
फिलिस्तीनी जनता का पक्ष चुनने की पत्रकारों ने कीमत भी चुकाई है। केवल अक्टूबर माह से चल रहे इस युद्ध संघर्ष में ही 140 से ऊपर पत्रकारों की मौत हो गई है। कई पत्रकारों के परिवार भी इस युद्ध में मारे गए और उनके घर तबाह हो गये। आज जब पूरी दुनिया में कारपोरेट मीडिया के पत्रकार सत्ता के साथ सटकर अपना भविष्य चमका रहे हैं। ऐसे में इन विकट स्थितियों में जनता का पक्ष चुनने वाले इन बहादुर पत्रकार को सलाम।      -हरीश, दिल्ली

आलेख

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।