
दक्षिण कोरिया में 3 दिसम्बर की शाम राष्ट्रपति यून सोक योल ने अचानक मार्शल ला लगाये जाने की घोषणा कर दी। मार्शल लॉ के तहत सेना ने समस्त प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। सेना संसद सदस्यों की गिरफ्तारी के लिए संसद की ओर जाती है और प्रेस पर नियंत्रण कायम करने का प्रयास करती है पर मार्शल लॉ के खिलाफ द.कोरिया की लाखों की तादाद में जनता सड़कों पर उतर आती है। और चंद घण्टों में राष्ट्रपति को मार्शल लॉ वापस लेने को मजबूर कर दिया जाता है।
मार्शल लॉ लगाने के इस नाटकीय घटनाक्रम के बाद इसका षड्यंत्र रचने के आरोप में रक्षा मंत्री को व कुछ पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। रक्षा मंत्री हिरासत में आत्महत्या करने का प्रयास करते हैं। विपक्षी दलों द्वारा संसद में राष्ट्रपति को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने का एलान कर दिया जाता है।
द. कोरिया की संसद में राष्ट्रपति की पार्टी पीपल्स पावर पार्टी अल्पमत में है। उसके पास 300 सदस्यीय सदन में लगभग 108 सांसद हैं। और विपक्षी दलों के पास 192 सांसद हैं। महाभियोग प्रस्ताव की सफलता के लिए 200 सांसदों का समर्थन जरूरी है। संसद से पारित होने के पश्चात प्रस्ताव न्यायपालिका के पास जाता है जहां 9 जजों में से 6 के समर्थन देने पर ही महाभियोग पारित हो पाता है। वर्तमान में न्यायपालिका में शीर्ष स्तर पर 6 जज ही नियुक्त हैं अतः महाभियोग सफल बनाने के लिए सभी 6 जजों का समर्थन जरूरी है।
3 दिसम्बर की रात से ही द.कोरिया के मजदूर-छात्र-कर्मचारी-महिलायें हर दिन लाखों की तादाद में सड़कों पर उतरे हुए हैं। वे किसी भी कीमत पर राष्ट्रपति को हटाने की मांग कर रहे हैं। वे देश को तानाशाही की ओर ढकेलने के षड्यंत्र से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। द.कोरिया में मार्शल ला लगाकर तानाशाही कायम करने का पुराना इतिहास रहा है। 1980 में इसी तरह देश को तानाशाही की ओर धकेल दिया गया था तब सैन्य बलों ने 2000 लोगों की हत्या कर डाली थी। 80 के दशक के अंत में व्यापक संघर्षों के दम पर ही जनता तानाशाही का अंत करवा पायी थी। 80 के दशक की यादें जनता के दिलों में ताजा हैं इसीलिए वह किसी भी कीमत पर सत्ता हथियाने के राष्ट्रपति के प्रयासों को सफल होने से रोकना चाहती है।
राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने के पीछे तर्क दिया कि विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी उत्तर कोरिया के साथ सांठ-गांठ कर रही है। वह संसद में बजट प्रस्तावों पर अनुचित फेरबदल कर देश को कमजोर कर रही है। इसलिए वह मार्शल लॉ लगाकर देश व लोकतंत्र की रक्षा करना चाह रहे थे। हालांकि राष्ट्रपति के इन कुतर्कों का प्रदर्शनरत जनता पर कोई असर नहीं पड़ा।
राष्ट्रपति को बचाने के प्रयास में उनकी पार्टी के प्रधानमंत्री ने वायदा किया कि राष्ट्रपति को शांतिपूर्ण ढंग से इस्तीफे को राजी किया जायेगा और उन्हें राज्य के मामलों में कोई भूमिका नहीं निभाने दी जायेगी। हालांकि द.कोरिया के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है और सेना अभी भी राष्ट्रपति के नियंत्रण में है। सेना प्रमुख ने भी राष्ट्रपति को बचाने के मद््देनजर घोषित कर दिया कि अगर वे पुनः मार्शल लॉ लगाने का प्रयास करते हैं तो वे उनके आदेश को नहीं मानेंगे।
राष्ट्रपति की पार्टी के राष्ट्रपति को बचाने के इन प्रयासों का परिणाम यह निकला कि संसद में पहले महाभियोग प्रस्ताव के वक्त पी पी पी पार्टी के महज 3 सांसद ही महाभियोग के पक्ष में मतदान को तैयार हुए व शेष सदस्य मतदान का बहिष्कार कर सदन से चले गये। परिणामतः पहला महाभियोग प्रस्ताव गिर गया। विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ने घोषित किया कि वो तब तक महाभियोग प्रस्ताव लाती रहेगी जब तक राष्ट्रपति को पद से हटा नहीं दिया जाता। उसने 12 दिसम्बर को दूसरा महाभियोग प्रस्ताव पेश कर दिया है। उधर राष्ट्रपति ने फिर से अंतिम दम तक लड़ने की बात कही है। उसने पिछले चुनाव को धांधली वाला बता चुनाव आयोग की जांच हेतु मार्शल लॉ लगाने के अपने कदम को सही ठहराने का प्रयास किया है।
इस राजनैतिक उठापटक के बीच द.कोरिया में हजारों की तादाद में सैन्य मौजूदगी रखने वाले अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने मार्शल लॉ के घटनाक्रम से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि उन्हें इसकी सूचना नहीं थी। दरअसल यह संभव ही नहीं है कि द.कोरिया में मार्शल लॉ लगे और अमेरिका इससे पूर्व में सूचित न हो।
द.कोरिया में अमेरिकी साम्राज्यवादी वहां की सेना के प्रशिक्षण, उन्हें हथियार मुहैय्या कराने आदि में तरह-तरह से भूमिका निभाते हैं। बीते दिनों चीन के खिलाफ अमेरिका-जापान व द.कोरिया ने एक तरह का गठबंधन बना सैन्य तैयारियां तेज कर दी थीं। मौजूदा राष्ट्रपति ने उ.कोरिया के साथ तनातनी को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया था। उ.कोरिया के हमले का भय दिखाकर ही वह सत्ता पर कब्जा करना चाहता था।
कुछ माह पूर्व हुए चुनाव में राष्ट्रपति की पार्टी की हार ने उसके सामने नयी मुसीबतें खड़ी कर दी थीं। संसद में तरह-तरह के कटौती वाले बजट पर विपक्षी दल साथ देने को तैयार नहीं थे। संसद राष्ट्रपति के कई निर्णयों में टांग अड़ाने का काम कर रही थी। ऐसे में राष्ट्रपति मार्शल लॉ के जरिये सारी सत्ता अपने हाथ में लेना चाहते थे।
पर राष्ट्रपति की तानाशाही कायम करने के मंसूबे की राह में कोरिया के मजदूर-मेहनतकश एक अडिग चट्टान की तरह आ खड़े हुए। वे 3 दिसम्बर की रात से लगातार सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। मोमबत्तियां हाथ में लिये इन प्रदर्शनों को मोमबत्ती क्रांति का नाम दिया जा रहा है। मार्शल लॉ से देश को बचाने का श्रेय विपक्षी दलों से ज्यादा इस मेहनतकश जनता को जाता है। इसके दबाव में ही सत्ताधारी पार्टी को राष्ट्रपति से दूरी बनाने का दिखावा करना पड़ रहा है।
सड़कों पर उतरी यह जनता केवल लोकतंत्र बचाने के लिए ही सड़कों पर नहीं है। दरअसल वो अपने जीवन में हो रही कटौतियों से पहले से क्षुब्ध रही है। ट्रेड यूनियनों के फेडरेशन कोरियाई ट्रेड यूनियन परिसंघ (के सी टी यू) जो डेमोक्रेटिक पार्टी से सम्बद्ध है, ने घोषणा की है कि वो राष्ट्रपति के इस्तीफा देने तक अनिश्चितकालीन आम हड़ताल करेगा। फिलहाल उसने रुक-रुक कर हड़तालें करने की घोषणा की है। इनमें से कुछ हड़तालें तो अपनी गिरती जीवन परिस्थितियों के मद्देनजर पहले ही घोषित की जा चुकी है।
सियोल के स्कूली अध्यापक-कर्मचारियों ने नियमितीकरण व वेतन वृद्धि को लेकर 6 दिसम्बर को हड़ताल की। हुंडई मोटर्स के 43,000 कर्मचारियों ने 6 व 8 अक्टूबर को 4-4 घंटे की आंशिक हड़ताल की। जनरल मोटर्स कोरिया, हुंडई मोबिस व हुंडई स्टील जैसी कम्पनियों में भी मजदूरों ने आंशिक हड़तालें कीं।
मजदूरों की गिरती हालातों के पीछे बीते कुछ वर्षों में वास्तविक मजदूरी में 2-3 प्रतिशत की गिरावट बड़ी वजह रही है। द.कोरिया की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भी 2010 में 6.8 प्रतिशत से गिरकर वर्तमान समय में लगभग 2 प्रतिशत पर आ गयी है। शासकों के कटौती कार्यक्रम व बढ़ती महंगाई मजदूर-मेहनतकश जनता का जीवन और दूभर कर रहे हैं।
ऐसे में जनता सड़कों पर अपनी गिरती हालत को बचाने के लिए भी जुटी है। कोई मजबूत क्रांतिकारी नेतृत्व के अभाव में वह विपक्षी दलों को अपने हितों में काम करने को मजबूर कर रही है। हालांकि बगैर क्रांतिकारी नेतृत्व के वह अपने हित एक हद से आगे नहीं बढ़ा सकती।
जनता के इस उभार के चलते अमेरिकी साम्राज्यवादी शह पर मार्शल लॉ लगाने का व तानाशाही कायम करने का प्रयास असफल होता दिख रहा है।