हरिद्वार/ दिनांक 27 मई को स्नो पैक कम्पनी नियर अम्बेडकर चौक, बाहदराबाद औद्योगिक क्षेत्र, हरिद्वार में सुबह 8.30 बजे भगवान दयाल नामक मजदूर की मशीन में इमरजेन्सी ब्रेक लगाने के बाद भी मशीन चलने के कारण मौत हो गयी। मृतक मजदूर ग्राम अदकटा रब्बानी बेगम थाना और तहसील नवाबगंज जिला बरेली उत्तर प्रदेश के रहने वाला था।
फैक्टरी मालिकों द्वारा सुरक्षा मानकों की अनदेखी करने का परिणाम है कि फैक्टरियों में आये दिन ऐसे हादसे होते रहते हैं। इसी अनदेखी के चलते 22 साल के नौजवान मजदूर भगवान दयाल की मौत हो गई। फैक्टरी के मजदूर व मजदूर संगठन सुबह 9 बजे से देर रात तक फैक्टरी गेट पर मालिक व शासन-प्रशासन से मृतक मजदूर के परिवार के प्रति न्याय व उचित मुआवजा के लिए जद्दोजहद करते रहे।
अंततः मजदूरों ने जीत हासिल की और 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का समझौता सम्पन्न हुआ जो कि कम्पनी ने मजदूर के परिवार को भुगतान कर दिया है।
इस न्याय की लड़ाई में स्नो पैक के मजदूर जुझारू एकता के साथ और संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारी, इंकलाबी मजदूर केंद्र, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, फूड्स श्रमिक यूनियन आदि शामिल रहे।
संयुक्त मोर्चा द्वारा मजदूरों को विश्वास दिलाया गया कि कंपनी में सुरक्षा के इंतजाम और श्रम कानूनों का पालन करवाने के लिए श्रम विभाग एवं कारखाना निदेशक देहरादून के लिए पत्र भेजे जाएंगे और मजदूरों को न्याय दिलाया जाएगा।
मजदूर औद्योगिक दुर्घटनाओं का शिकार रोज आये दिन हो रहे हैं। मोदी सरकार ने 4 मजदूर विरोधी लेबर कोड्स में सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर मालिकों के पक्ष में कानून बना दिया है। जिसके कारण इन कानूनों के लागू होने के पहले ही आज फैक्टरी मालिक मजदूरों को मौत के मुंह में ढकेल रहे हैं। मजदूरों को एकता बनाकर अपने जीवन से खिलवाड़ करने वाले कानूनों के खिलाफ संघर्ष तेज करना होगा।
कहां तो एक मजदूर की हत्या के लिए प्रबंधन व मालिकों को जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए था। उन पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए था। पर आज मजदूर आंदोलन की कमजोर स्थिति के चलते हालात यह हो गये हैं कि मृतक मजदूर के परिवार को मुआवजा भी बगैर संघर्ष नहीं मिल पा रहा है। एक मजदूर की जान लेकर मालिकान चंद रुपये परिजनों को थमा (ज्यादातर तो वो भी नहीं) बेखौफ घूम रहे हैं। पूंजीवादी न्याय-कानून की यही असलियत है जहां मजदूर की जान की किसी को परवाह नहीं है। उक्त मजदूर को 10 लाख का मुआवजा मजदूरों की आंशिक जीत ही है। असली न्याय तो उसके हत्यारों को सजा दिलाकर ही मिलता। इस हत्या के दोषी केवल सुरक्षा मानकों की अनदेखी करने वाले मालिक-प्रबधंक ही नहीं हैं बल्कि उन्हें ऐसा करने की छूट देने वाले श्रम अधिकारी-लेबर इंस्पेक्टर भी हैं। स्थानीय पुलिस-प्रशासन के अधिकारी भी हैं तो इस अनदेखी को कानूनी स्वीकृति दिलाने वाली केन्द्र व राज्य सरकारें भी हैं। कुल मिलाकर पूंजीवादी व्यवस्था के हर अंग की मिलीभगत मजदूरों की जान ले रही है। आज मजदूर भले ही इन हत्यारों को कुछ खास सजा नहीं दिला पा रहे हैं पर आने वाले वक्त में मजदूर जागरूक हो हत्यारों के गिरोह का इंसाफ जरूर अपने हाथों करेंगे। तभी मजदूरों को न्याय हासिल होगा। -हरिद्वार संवाददाता
हरिद्वार : एक मजदूर की मौत पर मजदूरों का संघर्ष
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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।
आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।