भाजपा का दोगला चरित्र

    हमारे देश में दोहरा चरित्र दर्शाने वाले ऐसे तमाम नेता, राजनेता, सांसद, विधायक बेनकाब होते रहे हैं जो बातों में, प्रवचनों में महिलाओं की बराबरी, महिलाओं के सम्मान, महिला सशक्तिकरण की डींगें हांकते हैं, महिलाओं को देवी तुल्य बताते फिरते हैं लेकिन अपनी सोच में, अपने चरित्र में महिला विरोधी होते हैं। ये नेता महिलाओं के शारीरिक उत्पीड़न व बलात्कार में भी लिप्त रहते हैं। विडम्बना यह है कि हमारे देश की भाजपा सरकार ऐसे अपराधी लोगों को बचाने में लगी रहती है। वह सरकार जो कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजना का प्रचार-प्रसार करने पर ही सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर दे रही है। इसी पार्टी की सत्ता में संवैधानिक पदों पर बैठे लोग लड़कियों-महिलाओं का यौन उत्पीड़न करते फिर रहे हैं और सरकार/पार्टी उनके खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय उनको बचाने में लगी हैं। इस तरह भाजपा सरकार का दोहरा चरित्र स्पष्ट दिखाई देता है
    भारतीय कुश्ती की महिला पहलवानों ने महासंघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाये हैं। जनवरी 2023 में भारतीय कुश्ती पहलवान महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न करने के खिलाड़ियों द्वारा आरोप लगाये गये। तब एक जांच कमेटी गठित कर मामला रफा-दफा करने का प्रयास किया गया। अब मामले में कोई कार्यवाही न होने पर खिलाड़ी दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। इसमें औलंपिक्स, एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को कई पदक दिलाने वाली महिला कुश्ती खिलाड़ी विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया समेत देश की दिग्गज महिला पहलवान शामिल हैं। 
    महिला पहलवानों ने बताया कि कुछ कोच महिला खिलाड़ियों को परेशान कर रहे हैं, उनके साथ अभद्रता भी करते हैं। भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष खिलाड़ियों की निजी जिंदगी में दख़ल देते हैं। उनका मानसिक उत्पीड़न के साथ-साथ यौन उत्पीड़न किया जाता रहा है। इसके अलावा महिला पहलवानों ने प्रशिक्षण व खेलने के दौरान होने वाली समस्याओं को भी चिन्हित किया है। 
    जनवरी में महिला पहलवानों ने प्रधानमंत्री से गुहार लगाई थी कि वह मामले को संज्ञान में लेकर बृजभूषण के खिलाफ कार्यवाही करे। फेडरेशन ने इस मामले की जांच करने के लिए एक कमेटी बनाई थी।
    अब तक इस मामले में बृजभूषण के खिलाफ कोई कार्यवाही न होने पर फिर से महिला पहलवान धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। जब थाने में भी बृजभूषण के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई तब महिला पहलवानों ने इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी लगाई है। कोर्ट के दबाव में अंततः बृजभूषण के खिलाफ 2 एफ आई आर दर्ज हुईं पर अभी भी खिलाड़ियों का संघर्ष जारी है।
    अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ियों के आरोप लगाने के बावजूद भी बृजभूषण के खिलाफ कोई कार्यवाही करने को तैयार नहीं था। न ही फेडरेशन, न ही थाने, और न ही प्रधानमंत्री जी। आखिर क्यों?
    बृजभूषण के रसूख और पहुंच की बात करें तो 1991 में पहली बार गोंडा से सांसद बने बृजभूषण भारतीय जनता पार्टी के दबंग नेताओं में गिने जाते हैं। वे साल 2011 से ही कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भी हैं। 2019 में वे कुश्ती महासंघ के तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए। बृजभूषण शरण सिंह ने अपनी छवि एक हिंदूवादी नेता के तौर पर बनाई है और वो अयोध्या के बाबरी मस्जिद ढांचे को गिराने के अभियुक्त भी रहे हैं। अपने विवादित बयानों के चलते वे हमेशा सुर्खि़यों में रहे हैं। अतीत में उन पर हत्या, आगजनी और तोड़-फोड़ करने के भी आरोप लग चुके हैं। पिछले दिनों झारखंड में अंडर-19 नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप के दौरान उन्होंने एक रेसलर को मंच पर ही थप्पड़ मार दिया था। अब महिला पहलवानों के गंभीर आरोप के बाद भी अभी तक उन पर पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह चीज पूरी भारतीय जनता पार्टी को सवालों के घेरे में खड़ा करती है।
    कुश्ती खेलने वाली महिलाओं ने भाजपा नेताओं के असली चरित्र की पोल खोल दी है। इस तरह की घटनाएं इस पूंजीवादी समाज में महिलाओं के साथ होने वाली यौन गैर बराबरी को उजागर करती हैं। पर्दे के पीछे छुपी वीभत्स सच्चाई को सामने लाती हैं। पाखण्ड, झूठे आचरण से ढंकी-छुपी गंदगी बाहर आ ही जाती है। 
    इस मामले से यह बात और पुख्ता हो जाती है कि देश में घर से लेकर स्कूल-कॉलेज, कार्यक्षेत्र हर जगह महिला यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। लेकिन इसके साथ-साथ इनका प्रतिरोध भी बढ़ रहा है। इन प्रतिरोधों को और व्यापक स्तर पर करने की जरूरत है।  व्यापक स्तर पर मजदूर वर्ग की महिलाओं के साथ गोलबंद होने की जरूरत है। पितृसत्तात्मक व सामंती मूल्यों-मान्यताओं से संघर्ष करते हुए पूर्ण रूप से महिला मुक्ति की लड़ाई को लड़ने की जरूरत है।
 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।