पत्र

वी वी डी एन कम्पनी में मजदूरों का शोषण

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आईएमटी मानेसर में स्थित वी वी डी एन कम्पनी के 6 प्लांट हैं। भारत के स्तर पर 10 डिजाइन सेंटर और कुल 7 प्लांट हैं। यह कंपनी इंजीनियरिंग, निर्माण, डिजिटल नेटवर्क के क्षेत्र

क्या यह जनप्रतिनिधि हैं?

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हरियाणा विधानसभा के चुनाव हाल में ही सम्पन्न हुए हैं। इसमें जीत कर आए विधायकों द्वारा भारत निर्वाचन चुनाव आयोग के समक्ष दाखिल हालफनामा के विवरण के आधार पर एसोसिएशन फार डे

हरियाणा में चुनाव आयोग की हार या भाजपा की जीत

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हरियाणा के चुनाव में भाजपा की जीत अप्रत्याशित है। इसकी अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीके से व्याख्या कर रहे हैं। तब मन में एक सवाल तो बनता है कि भाजपा जीत गयी तो उसके जीत के कारण

कुत्तों का शोकगीत

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चले गए मालिक हमारे अलविदा ! 
टाटा मालिक ! 
दुखी हैं हम सब कुत्ते दुनियां के कुत्ते 
फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन के कुत्ते
मसलन 2005 में पैदा हुए सलवा जुडूम के पिल्ले

विश्वकर्मा पूजन

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कल सुबह 9 बजे पूजन है। उसके बाद की क्या प्लानिंग है? रामू अपने बाकी मजदूर साथियों के साथ बातचीत में लगा हुआ है। कल आना है क्या? अगर नहीं आए तो क्या अप्सैंट लगेगी?

वक्त की पुकार

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चल उठ ओ नौजवान
कब से सोया है? सपनों में खोया है
तेरे सामने जिंदगी खड़ी है
आ कदम मिला तू कर ले फैसला
ये इम्तिहान की सख्त घड़ी है।

तानाशाह

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साहेब को रंग बदलते देख कर
अब तो गिरगिट भी शरमाने लगा है
अच्छे दिन कब आयेंगे पता नहीं
विकसित भारत के नाम पर भरमाने लगा है।

एच आर

हल्के पीले रंग में रंगी हुई बिल्डिंग। करीने से बिल्डिंग के सामने कुछ पेड़ लगे हुए हैं जो स्थानीय वनस्पति से मेल नहीं खाते। कुछ गमलों में फूल के पौधे लगे हैं जिनके साथ उन्ह

अतिक्रमण

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आज देश समाज में आला अफसर अधिकारियों और सरकारों के द्वारा अतिक्रमण नामक बीमारी फैलायी जा रही है। मीडिया चैनलों पत्रिकाओं, अखबारों, टीवी चैनलों पर हो-हल्ले के साथ बहस हो रह

आलेख

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

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7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।