हाथरस प्रकरण : मनुस्मृति वाला न्याय

न्यायपालिका फिर कटघरे में

देश के बहुचर्चित हाथरस सामूहिक बलात्कार एवं हत्याकांड के दोषियों पर स्थानीय एससी-एसटी कोर्ट के फैसले ने देश की न्यायपालिका को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार एवं उसकी हत्या के दोषी चारों सवर्ण जाति के युवकों को बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार के आरोपों से साफ बरी कर दिया है और चारों में से सिर्फ एक अपराधी को गैर इरादतन हत्या एवं एससी-एसटी एक्ट के तहत दोषी मानते हुये उसे उम्र कैद की सजा सुनाई और पचास हजार रु. का जुर्माना लगाया। और ऐसा तब जबकि अपनी मृत्यु से पूर्व दलित युवती ने स्पष्ट बयान दिया था कि सवर्ण जाति के इन चार युवकों - संदीप सिसोदिया, लवकुश, रामकुमार और रवीन्द्र सिंह ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और गला घोंटकर जान से मारने की कोशिश की। इसी बयान के आधार पर सी बी आई ने चारों अपराधियों को सामूहिक बलात्कार और हत्या का दोषी मानते हुये चार्जशीट दाखिल की थी।

गौरतलब है कि आज से करीब ढाई साल पहले 14 सितम्बर, 2020 के दिन हाथरस के एक गांव में सवर्ण जाति के इन चार युवकों ने 19 वर्षीय दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसका गला घोंटकर जान से मारने की कोशिश की लेकिन उस समय युवती की जान बची रही। स्थानीय पुलिस ने उसे नजदीक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया लेकिन वहां युवती की हालत बिगड़ने पर उसे अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में रेफर कर दिया गया। परन्तु यहां भी युवती की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और तब उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेज दिया गया जहां 29 सितम्बर को उसने दम तोड़ दिया।

और तब सुबूत मिटाने के मकसद से उत्तर प्रदेश पुलिस ने दलित युवती के शव को उसके परिजनों को दिखाये बिना ही गांव में भारी पुलिस बल के पहरे में आग के हवाले कर दिया। इस तरह सवर्ण युवकों की हैवानियत की शिकार दलित युवती को योगी के राम राज में सम्मानजनक अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ। इस पर पूरे देश में हंगामा मचने पर इसकी जांच सी बी आई को सौंपी गई। और सी बी आई ने दलित युवती के अपनी मृत्यु पूर्व दिये गये बेहद महत्वपूर्ण बयान को आधार बनाकर ही चारों युवकों को सामूहिक बलात्कार और हत्या का दोषी मानते हुये कोर्ट में चार्ज शीट दाखिल की थी, इसके बावजूद कोर्ट ने चारों दरिंदों को सामूहिक बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया और चार में से सिर्फ एक को दोषी बताया और वो भी गैर इरादतन हत्या का!

युवती की परिजन एक महिला ने कोर्ट के इस फैसले के प्रति अपनी निराशा और गुस्से को जाहिर करते हुये कहा कि ‘‘यह जातिवादी और धर्मवादी फैसला है, कि हम हिन्दू भी नहीं हैं और हम किसी भी गिनती में नहीं आते हैं।’’ युवती के परिजनों ने स्थानीय एससी-एसटी कोर्ट के विरुद्ध ऊपरी अदालत में जाने का फैसला किया है। दूसरी ओर चौथे अपराधी को भी दोष मुक्त कराने के लिये दूसरे पक्ष ने भी ऊपरी अदालत जाने का फैसला किया है।

पहले 15 अगस्त के दिन बिल्किस बानो के साथ दरिंदगी करने वाले अपराधियों को रिहा करना और अब हाथरस की युवती के साथ दरिंदगी करने वाले चार में से तीन अपराधियों को दोषमुक्त कर देना और चौथे के अपराध को हल्का बना देना और ऐसे ही तमाम दूसरे फैसले न्यायपालिका पर हिंदू फासीवादियों के लगातार बढ़ते दबदबे को ही दिखला रहे हैं। साथ ही ये फैसले यह भी बतला रहे हैं कि आरएसएस-भाजपा के प्रभाव में स्थानीय न्यायालय भी किस कदर मुस्लिम विरोधी, मनुवादी, महिला विरोधी और कारपोरेट परस्त होते जा रहे हैं।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।