सर्वे कम्पनी के मजदूरों का शोषण

हल्द्वानी/ जीआईएस कंसोर्टियम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एच-112, प्रथम तल, सेक्टर 63, नोएडा, उत्तर प्रदेश, भारत, 201-301 ऑनलाइन सर्वे करने वाली कंपनी है, जिसने नगर निगम हल्द्वानी काठगोदाम उत्तराखंड में प्रापर्टी सर्वे का ठेका लिया था। यह गूगल मैप के माध्यम से क्षेत्र का मैप तैयार करती है। इसके लिए अलग-अलग विभागों से ठेका लेकर इन विभागों के लिए गूगल मैप के माध्यम से सर्वे करके इन विभागों को डाटा उपलब्ध कराती है। नगर निगम हल्द्वानी काठगोदाम ने भी इस कंपनी के द्वारा प्रापर्टी सर्वे का कार्य कराया था।
    
2022 से हल्द्वानी में संपत्ति सर्वे कराया  गया जिसमें निगम के अंतर्गत रहने वाले लोगों की संपत्ति के आधार पर टैक्स बनाया जाना था। इस काम को कराने में सहायक नगर आयुक्त नगर निगम हल्द्वानी की मोहर व हस्ताक्षर किया आई कार्ड जीआईएस कम्पनी में कार्य करने वाले कर्मचारियों को दिया गया जिसके माध्यम से कंपनी ने हल्द्वानी में कार्य कराया। उसके उपरांत 2023 में कम्पनी रुद्रपुर और देहरादून में भी कार्य कर चुकी है। लेकिन कंपनी ने हल्द्वानी में कार्य करने वाले कर्मचारियों का 3 साल से पूरा पेमेंट नहीं दिया है। यह काम कर्मचारियों को पहले सैलरी पर करने की बात की लेकिन बाद में कंपनी ने अपना फायदा देखकर कमीशन में कार्य कराना शुरू कर दिया लेकिन कमीशन को भी कंपनी ने अभी तक नहीं दिया। 
    
कर्मचारी कमीशन का कार्य करने के लिए तय जगह पर जाते थे, तो कंपनी सुपरवाइजर कर्मचारियों को दूसरे स्थान पर बुला लेते थे। शहर की दूरी व्यापक होने के चलते लोग टेंपो, रिक्शा या मोटरसाईकिल के माध्यम से दूसरे स्थान पर पहुंचते थे। वह सब भाड़ा भी अपनी जेब से ही देना पड़ता था। कर्मचारियां को इन स्थानों पर कार्य करने के दौरान कई प्रकार की समस्याओं को उठाना पड़ता था। जो समस्यायें नगर निगम से संबंधित होती थीं। जिसे ठेके में कार्य करने वाले जीआईएस के कर्मचारियों को सुनना पड़ता था। नगर निगम की समस्याओं में सफाई से संबंधित परेशानी, लाइट की समस्याएं, गूलों की सफाई, सड़कों से संबंधित समस्याएं आदि होती थीं, के लिए कर्मचारियों को लोगों की गाली-गलौच व मारपीट तक झेलनी पड़ती थी। इन परिस्थितियों में भी कर्मचारियों को प्रोपर्टी सर्वे के लिए लोगों से उनके घर की बिजली के बिल का डाटा, पानी के बिल का डाटा, आधार कार्ड नंबर, मोबाइल नंबर आदि को मांग कर ऑनलाइन मोबाइल के माध्यम से भरना पड़ता था। इतना काम पूरा करने पर कम्पनी एक घर का पच्चीस रुपया कमीशन देने और पूरा डाटा नहीं देने पर पांच रुपया मात्र देने की बात कंपनी ने तय की थी। यहां तक कि कई लोग तो डाटा मांगने पर मारपीट व गाली-गलौच तक के लिए भी आ जाते थे। 
    
कर्मचारियों ने इसके बाद भी यह कार्य पूरा किया। लेकिन यह कार्य करने के बाद भी तय पैसा सर्वे का कार्य साल भर पहले पूरा होने के बाद भी पेमेंट नहीं हुआ। कंपनी ने आधा पेमेंट मतलब 50 प्रतिशत तो कार्य पूरा होने के पांच-छः माह बाद दे दिया लेकिन बचा पेमेंट अब दूसरा साल हो गया है, नहीं दिया गया है। इस काम को करने वाले कई कर्मचारी शहर में किराए पर अपने बच्चों के साथ भी रहते हैं उन्होंने कमरे का किराया, दुकान की उधारी, बच्चों की फीस आदि कई समस्याओं को उठाया है। कंपनी के लोग बार-बार फोन करने के बाद भी कई प्रकार के बहाने बना देते हैं। कर्मचारी अभी अपनी मेहनत के पैसे के लिए आस लगाए बैठे हैं। लेकिन कंपनी के ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। इस तरह कंपनियों का यह शोषण का नया तरीका है, जिसमें सरकारें भी बरी हो जाती हैं और काम कराने वाले विभाग भी सभी कर्मचारियों से दूरी बनाते हुए कंपनी के ऊपर जिम्मेदारी डाल देते हैं अंत में पिसते हैं असंगठित कर्मचारी ही। 
    
कर्मचारियों को संगठित होकर अपनी आवाज कंपनी के खिलाफ उठानी पड़ेगी और सरकारों के ऊपर भी दवाब बना कर इस तरह की कंपनियों के खिलाफ कारवाई की मांग करनी पड़ेगी। तब तो कुछ मिल सकता है, नहीं तो कर्मचारियों के शोषण के नए तौर-तरीके कंपनियां इसी तरीके से अपना रही हैं। यह कंपनियों का चरित्र बन चुका है कि कर्मचारियों-मजदूरों का शोषण कर उनकी मेहनत-मजदूरी को अधिक से अधिक लूटा जा सके।                 -हल्द्वानी संवाददाता 
 

आलेख

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