फिलिस्तीन में इजरायली हमले के खिलाफ दिल्ली में कन्वेंशन

फिलिस्तीन में इजरायली हमले के खिलाफ दिल्ली में कन्वेंशन

दिल्ली/ जन अभियान-दिल्ली द्वारा 25 अगस्त  को ‘इजरायली हमला और फिलीस्तीन मुक्ति संघर्ष की चुनौतियां’ विषय पर गढ़वाल भवन में एक कन्वेंशन का आयोजन किया गया। यह कन्वेंशन फिलिस्तीन में जारी इजरायली हमले के खिलाफ किया गया। गत वर्ष 7 अक्टूबर से लेकर अब तक इजरायली सेना ने अत्याधुनिक हथियारों और विध्वंसक हवाई बमबारी के द्वारा गाजा पट्टी को जमींदोज कर दिया है। गाजा पट्टी जिसमें 23 लाख से अधिक नागरिक आबाद थे, उनके 4 लाख से अधिक घरों को नेस्तनाबूद कर दिया गया है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व में इजरायली सेना ने अपने अत्याधुनिक हथियारों से अब तक 40,500 से अधिक फिलिस्तीनी लोगों को मार दिया है। इनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या दो तिहाई से अधिक है। 20,000 से अधिक लोग लापता हैं तथा एक लाख से अधिक लोग घायल हैं। फिलिस्तीनियों का कत्लेआम और उनको भगाने की कार्रवाई लगातार जारी है।
    

मजदूर-मेहनतकश और छोटे-मोटे व्यवसाय करने वाले लाखों लोगों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया है। वे लोग शरणार्थी शिविरों में बहुत ही खराब परिस्थितियों में रह रहे हैं। इनका जीवन पूरी तरह राहत सामग्री पर निर्भर है। शरणार्थी शिविरों में भोजन जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में यहां 80 प्रतिशत से अधिक लोग जिनमें महिलाओं व बच्चों की संख्या अधिक है, कुपोषण और बीमारी के शिकार हैं। 
    

कन्वेंशन में जन अभियान-दिल्ली के घटक संगठनों के सदस्य-कार्यकर्ताओं सहित कई बुद्धिजीवी, प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। कन्वेंशन में फिलिस्तीनी लोगों पर इजरायली सेना द्वारा की जा रही अमानवीय सैनिक कार्रवाई की कठोर शब्दों में निंदा की गई। कन्वेंशन में वक्ताओं ने इजरायली शासकों को अत्याचारी, कब्जाकारी व फिलिस्तीनियों का हत्यारा बताया। हमास और उसके लड़ाकों को खत्म करने के नाम पर इजरायली सेना की कार्रवाई का असल मकसद फिलिस्तीन की जमीन पर पूर्ण नियंत्रण कायम करना है। उसका मकसद वहां के मूल निवासियों को गुलामों की तरह दोयम दर्जे का नागरिक बनाना है अथवा उनको उनकी जमीन से भगा देना है। 
    

इजराइल का फिलिस्तीनियों पर ऐसा भयानक और अमानवीय आक्रमण पहली बार नहीं हुआ है बल्कि 1948 में जब फिलिस्तीन की धरती पर इजराइल नाम के देश को बसाया गया, तभी से साम्राज्यवादी अमेरिकी-ब्रिटिश शासकों की मदद से इजरायली सेना ने फिलिस्तीनियों पर अत्याचार शुरू कर दिया था। इजरायल ने अनेकों बार फिलिस्तीनियों पर हमला करके न केवल वहां के लाखों नागरिकों की हत्याएं की हैं बल्कि हर बार उनकी जमीन पर कब्जा करता रहा है। इजराइल ने फिलीस्तीनी महिलाओं और उनके बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न से लेकर भांति-भांति के अमानवीय अत्याचार को अंजाम दिया है। अत्याचारी जियनवादी इजरायल के खिलाफ हर फिलिस्तीनी के दिल में नफरत की ज्वाला जल रही है।                         
    

दुनिया भर में मजदूर-मेहनतकश और इंसाफपसंद लोग हमास की कार्रवाई के लिए इजरायली शासकों और उसके आका अमेरिका को ही जिम्मेदार बता रहे हैं। अमेरिका की निगाह अरब देशों में मौजूद प्राकृतिक तेल भंडार पर है। वह इजरायल के माध्यम से पूरे मध्य पूर्व और अरब देशों पर अपना नियंत्रण कायम करने की मंशा से काम कर रहा है।
    

कन्वेंशन में इस बात को रेखांकित किया गया कि जब तक पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शोषण धरती पर मौजूद रहेगा, तब तक मजदूरों-मेहनतकशों, कमजोर राष्ट्रीयताओं एवं कमजोर राष्ट्रों का शोषण-दमन तथा उनको कुचलने की कार्रवाई लुटेरे शासकों द्वारा लगातार चलती रहेगी। आज समाज में मौजूद गरीबी, भुखमरी तथा भांति-भांति के पाशविक अपराध और नस्लीय, धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर चलने वाले युद्धों के पीछे पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शासक जिम्मेदार हैं। शोषण पर आधारित पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शासन व्यवस्थाओं को खत्म कर ही दुनिया भर में मौजूद तमाम सामाजिक समस्याओं और अमानवीय युद्धों को खत्म किया जा सकता है। ऐसा करके ही समूचे मानव समाज और प्रकृति को बचाया जा सकता है। इस काम को अंजाम देने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी मजदूरों-मेहनतकशों के कंधों पर है। क्योंकि लूट और युद्ध का दर्द और पीड़ा सबसे ज्यादा उन्हीं को भुगतनी पड़ रही है। फिलिस्तीन समस्या का समाधान भी दुनिया भर के मजदूरों-मेहनतकशों की पहल के बिना सम्भव नहीं है। हर हाल में मजदूरों-मेहनतकशों को आगे आना होगा।
    

जन अभियान-दिल्ली राजधानी में मजदूरों-मेहनतकशों के बीच काम करने वाले संगठनों का एक साझा मंच है। इस मंच को बनाने में इंकलाबी मजदूर केंद्र, डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट, लोक पक्ष, मजदूर सहयोग केंद्र, शहीद भगत सिंह छात्र नौजवान सभा, भाकपा (माले) मास लाइन तथा बेरोजगार मजदूर किसान यूनियन की महत्वपूर्ण भूमिका है। 
    

कन्वेंशन में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें निम्नलिखित मांगें प्रस्तावित हैं-

1. गाजा पट्टी में फिलीस्तीनी जनता पर भयानक हमले व जनसंहार पर तत्काल रोक लगे तथा वहां से इजरायली सेना का नियंत्रण खत्म किया जाए।
2. जमींदोज किए गए सभी घरों, स्कूलों, अस्पतालों इत्यादि का पुनर्निर्माण कर तथा पानी, बिजली एवं अन्य जरूरी सामग्रियों की आपूर्ति कर यथाशीघ्र शिविरों में रह रहे नागरिकों को वहां आबाद किया जाए। इसकी पूरी कीमत इजरायल से वसूल की जाए।
3. गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और जेरूशलम के फिलिस्तीनी क्षेत्र में 1967 के बाद बसाई गई इजरायली बस्तियों एवं सेना की चौकियों को हटाकर सेना की निगरानी को समाप्त किया जाए।
4. भारत सरकार अपनी विदेश नीति के अनुरूप फिलीस्तीन मुक्ति संघर्ष का खुला समर्थन करे तथा इजरायली हमले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ में आवाज उठाए।
5. भारत सरकार इजरायल एवं अमेरिका के साथ अपने सभी सैनिक समझौतों को रद्द करे तथा वहां किसी भी तरह के हथियारों की आपूर्ति बंद करे।
6. भारत सरकार अपने देश से इजरायली शासकों के लिए मजदूरों की आपूर्ति बंद करे तथा मजदूरों की आपूर्ति वाले किसी भी तरह के विज्ञापन पर रोक लगाए।
7. संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इजरायली गुलामी से फिलीस्तीन को आजाद कराने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाए। 
        -दिल्ली संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।