1. आजादी
हम आजादी चाहते हैं
पीले हीरे की तरह
धूल तो धूल से सही
पत्थर तो पत्थर से सही
हमारे नंगे हाथों का लहू
टपकता है चट्टानों के ऊपर
हम हर सांस में भरते हैं कोयला
हर सांस के साथ
बाहर आती है केवल आशा।
2. आशा और आजादी के बीज
गोलियों की
बारिश हो रही है
विधाता के हरे तकिये पर
बारिश
भय और इस्पात की
आशा और आजादी
के बीच पर
ये बीच
अंकुरित होंगे जरूर
(अंग्रेजी से अनुवाद : राजेश चन्द्र,
साभार : कविता कोश)