बांग्लादेश में लंबे समय से आरक्षण विरोधी आंदोलन और प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अराजकता का माहौल बना हुआ है। क्योंकि ये आंदोलन केवल आरक्षण तक सीमित नहीं रहा बल्कि सामाजिक समस्याओं- भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, अन्याय के खिलाफ पहुंच गया। अभी भारत ने शेख हसीना को शरण दे रखी है। अंतरिम सरकार बन चुकी है लेकिन अभी भी बांग्लादेश में शांति कायम नहीं हो सकी और अराजकता फैली हुई है।
इस अराजकता का असर हमारे देश भारत में भी दिखाई दे रहा है। आर एस एस और हिन्दू रक्षा दल जैसे कट्टरपंथी संगठन बांग्लादेश में बिगड़े हुए हालातों को हिन्दू-मुस्लिम के एजेंडे के रूप में पेश कर रहे हैं और वहां के हिंदुओं के नाम पर यहां पर रह रहे बांग्लादेशी लोगों के साथ मार-पीट कर रहे हैं।
ऐसी ही एक घटना उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के कवि नगर इलाके में हुई। हिन्दू रक्षा दल संगठन के लोगों ने कवि नगर के इलाके में झुग्गी में रहने वाले लोगों को बांग्लादेशी बता गाली-गलौज की, उनके साथ डंडों से मारपीट की, उनकी झोपड़ियां तोड़ दीं, उनके सामान में आग लगा दी।
हिन्दू रक्षा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी उर्फ पिंकी चौधरी ने 7 अगस्त को एक वीडियो जारी किया जिसमें उसने खुलेआम धमकी देते हुए कहा था कि भारत में रहने वाले बांग्लादेशियों को नहीं छोडूंगा। भूपेन्द्र चौधरी ने धमकी देते हुए कहा था कि बांग्लादेश में अगर 24 घंटे के भीतर हिंदुओं पर अत्याचार बंद नहीं हुआ तो भारत में रहने वाले बांग्लादेशियों के साथ वैसा ही सलूक किया जाएगा।
इसके बाद 8 अगस्त को गाजियाबाद से दिल्ली जाकर हिंदू रक्षा दल कार्यकर्ताओं ने शास्त्री पार्क इलाके में स्लम एरिया में रहने वाले युवकों को बांग्लादेशी बताकर पीटा था। उन्हें इलाका छोड़कर चले जाने के लिए कहा। पुलिस जांच में पता चला कि 8 अगस्त की घटना में मुख्य भूमिका हिंदू रक्षा दल से जुड़े दक्ष चौधरी की रही है। ये वही दक्ष है, जिसने दिल्ली में कन्हैया कुमार को थप्पड़ मारा था और अयोध्या में भाजपा की हार पर अयोध्यावासियों को गद्दार कहा था। और फिर 10 अगस्त को हिन्दू रक्षा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने अपने साथियों के साथ गाजियाबाद के कवि नगर की घटना को अंजाम दे दिया।
पुलिस ने देर शाम हिंदू रक्षा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को गिरफ्तार कर लिया है। तथा भूपेन्द्र चौधरी सहित 15-20 अज्ञात लोगों के खिलाफ मधुबन बापूधाम थाने में मुकदमा दर्ज हो गया है।
देखा जाए तो 7 अगस्त को वीडियो जारी होता है तब पुलिस प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं करता है। 8 अगस्त की घटना के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। 10 अगस्त की बड़ी घटना होती है तब जाकर उसको गिरफ्तार किया जाता है। इससे तो साफ जाहिर होता है कि इन जैसे धार्मिक कट्टरपंथी संगठनों को पुलिस प्रशासन की शह मिली हुई है।
भारत में तो हिन्दू फासीवादियों का यह मुख्य एजेंडा रहा है कि किसी भी तरह यहां की मुस्लिम आबादी को तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाये।
रही बात बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले की तो खबरों से देखा जा सकता है कि बांग्लादेश के इस पूरे घटनाक्रम में 400 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, तमाम संपत्ति का नुकसान हुआ है। मारे गए लोगों में अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। जिसमें पुलिस की गोलियों से भी मारे गए लोग हैं। और ऐसे आंदोलनों में अराजकता होती है और तमाम कट्टरपंथी लोग ऐसे माहौल का फायदा उठाते हैं। कट्टरपंथी बांग्लादेश में भी इस माहौल का फायदा उठा रहे हैं और भारत में भी।
दूसरा बांग्लादेश से तमाम ऐसी फोटो-वीडियो देखने में आ रही हैं जिसमें मुस्लिम छात्र व लोग हिन्दू घरों, मंदिरों के आगे पहरा लगा रहे हैं ताकि कोई उनको नुकसान न पहुंचा सके। वहां पर रहने वाले हिंदुओं की जान, संपत्ति को बचाने की कोशिश वहां की आम मेहनतकश जनता कर रही है।
मेहनतकश जनता हमेशा ही कट्टरपंथियों से बचाने का काम करती है चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान।
बांग्लादेश की आम मजदूर मेहनतकश जनता अपने मूल मुद्दों - शिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई आदि के खिलाफ संघर्ष कर रही है। लेकिन इसमें हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा भारतीय मीडिया के कुछ चैनल व कट्टरपंथी संगठन उछाल रहे हैं। ताकि आम मेहनतकश जनता अपने जीवन की समस्याओं को पैदा करने वाले असली दुश्मन को न पहचान पाए।
बांग्लादेश, भारत तथा दुनिया के तमाम देशों की मजदूर-मेहनतकश जनता की समस्याओं को पैदा करने वाला एक ही दुश्मन है वह है पूंजीवाद।
मजदूर-मेहनतकश जनता के जीवन में समस्याओं को लाने वाली इस पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म किए बिना मजदूर-मेहनतकश जनता के जीवन में खुशहाली नहीं आ सकती। इसलिए मजदूर मेहनतकशों को एकजुट होकर पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म कर एक नए समाज का निर्माण करना होगा।
-दिल्ली संवाददाता
गाजियाबाद में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बांग्लादेशियों पर हमला
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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।