रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला - मसखरे जेलेन्स्की की हताशा भरी कार्रवाई

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

अब यह हर किसी को स्पष्ट हो गया है कि यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा नाटो के देशों के सहयोग से की गयी साजिशों का परिणाम है। ये साजिशें रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने के मकसद से यूक्रेन पर उन्हें हमला करने के लिए उकसाने के बतौर चल रही थीं। अब तक यह भी स्पष्ट हो गया है कि रूस को कमजोर करने तथा उसे तोड़ने के कोई भी प्रतिबंध काम नहीं आये। रूसी साम्राज्यवादियों ने यूक्रेन के रूसी भाषी इलाकों को अपने कब्जे में करने के लिए लगातार बढ़त बनाये रखी है। अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके नाटो सहयोगियों द्वारा यूक्रेन को तमाम किस्म के आधुनिक हथियारों से लैस करने, यूक्रेनी सेना को प्रशिक्षित करने, रूस के विरुद्ध यूक्रेन में तमाम देशों से भाड़े के सैनिकों को लगाने तथा प्रशिक्षण और तकनीकी मदद के नाम पर यूक्रेन में अपने विशेषज्ञों को तैनात करने के साथ ही रूस की फौजों की टोह और निगरानी करके यूक्रेन को जानकारी देने के बाद भी यूक्रेन के अंदर रूसी फौजें लगातार आगे बढ़ती जा रही हैं और यूक्रेन की जेलेन्स्की की सत्ता एक के बाद एक शिकस्त झेल रही है। 
    
वस्तुतः जेलेन्स्की की सत्ता की ये शिकस्तें कुल मिलाकर अमरीकी साम्राज्यवादियों और नाटो की भी शिकस्तें हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके नाटो सहयोगी इन शिकस्तों को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इसलिए अब वे रूसी इलाकों में जेलेन्स्की को हमला करने के लिए उकसा रहे हैं। जेलेन्स्की ने अमरीकी और नाटो देशों के हथियारों का इस्तेमाल करके इसी अगस्त महीने की शुरुआत में रूस के कुर्स्क इलाके में हमला करके अपनी पराजय को और नजदीक लाने में भूमिका निभाई है। बड़े पैमाने पर यूक्रेनी सेना कुर्स्क इलाके में घुसकर गांवों और कस्बों को रौंदते हुए आगे बढ़ती गयी। दो हफ्ते के भीतर यूक्रेनी सेना कुछ इलाकों में कब्जा करने का जश्न मनाने लगी। अमरीकी साम्राज्यवादी और यूरोपीय पूंजीवादी मीडिया इसका जोरशोर से प्रचार करने लगा कि युद्ध का पासा यूक्रेन के पक्ष में बदल गया है। यूक्रेन ने रूस के भीतर घुसकर रूस को रक्षात्मक स्थिति में धकेल दिया है और अब यूक्रेन के विजय अभियान का प्रचार किया जाने लगा है। 
    
जेलेन्स्की और उसके सेनापति सिरस्की अपनी विजय के गुणगान करने लगे थे। वे यह सोचते थे कि शायद रूस दोनवास के इलाके से अपनी फौज को वापस बुलाकर कुर्स्क इलाकों में ले जायेगा। रूस और यूक्रेन की सीमा 1600 किमी. से ज्यादा लम्बी है। कुर्स्क क्षेत्र में रूसी फौज बहुत थोड़ी तादाद में मौजूद थी। जेलेन्स्की ने इसका फायदा उठाया और दोनवास क्षेत्र की अग्रिम पंक्तियों की सेना को उसने कुर्स्क क्षेत्र में हमले में लगा दिया। जेलेन्स्की की सेना ने दोनवास क्षेत्र की सुरक्षा को कमजोर कर दिया। इससे रूसी सेना अब तेजी के साथ दोनवास क्षेत्र में आगे बढ़ने लगी। 
    
जेलेन्स्की और उसके सेनापति सिरस्की की यह योजना फेल हो गयी। रूसी हमले जहां दोनवास में तेज होने लगे वहीं कुर्स्क इलाके में रूस ने अपनी अन्य इलाकों की फौज को लाकर जेलेन्स्की की फौज की तात्कालिक बढ़त पर रोक लगा दी। 
    
जेलेन्स्की चाहते थे कि रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर कब्जा बढ़ा करके रूस के साथ वार्ता करने में अपनी सौदेबाजी की स्थिति को मजबूत कर लेंगे। लेकिन वह काम नहीं आयी। रूसी शासकों ने कह दिया कि उसके अविवादित क्षेत्र में कब्जा करके जेलेन्स्की की हुकूमत ने जो कार्य किया है, उससे फिलहाल कोई समझौता वार्ता नहीं होगी। जेलेन्स्की की हुकूमत ने बहुत शान से घोषणा की कि वह रूस और यूक्रेन के बीच एक ‘बफर जोन’ बना रहा है। ऐसे ‘बफर जोन’ से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से सुरक्षा मिलने में मदद मिलेगी, ऐसा जेलेन्स्की का सोचना था। 
    
जेलेन्स्की की यह भी सोच थी कि रूसी इलाके पर यूक्रेन के कब्जे से रूस के अंदर पुतिन की हैसियत में गिरावट होगी और रूसी आबादी पुतिन के विरुद्ध खड़ी हो जायेगी। इससे पुतिन को मजबूर होकर जेलेन्स्की की शर्तों पर समझौता वार्ता की मेज पर बैठना होगा, या/और पुतिन की सत्ता के विरुद्ध असंतोष भड़क जायेगा। 
    
जेलेन्स्की की सत्ता को रूसी आक्रमण के समय से ही अमरीका व नाटो के देशों से भारी पैमाने पर सैन्य और आर्थिक मदद मिलती रही है। जेलेन्स्की की फौज की लगातार हार के बाद इसे फौजी और आर्थिक मदद करने में कई देश आनाकानी करने लगे हैं। वे और अधिक हथियारों की आपूर्ति करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करने लगे हैं। कई नाटो देशों के शासकों को लगने लगा था कि यूक्रेन की फौजी मदद निरर्थक होती जा रही है। कई इस बात पर जोर देने लगे थे कि यूक्रेन को दिये जाने वाले हथियार काले बाजार में बिकने के लिए जा रहे हैं। 
    
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 
    
ऊपर बताई गयी बातों की वजह से कुर्स्क पर हमला करने की योजना जेलेन्स्की के मस्तिष्क में काम कर रही थी। जेलेन्स्की यह भी सोच रहे होंगे, यदि रूसी परमाणु संयंत्रों पर हमला कर दिया जाए तो रूस को आणविक हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। यदि रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा तो समूची दुनिया में उसके विरुद्ध एकजुटता बन सकती है और रूसी शासकों को गुनहगार सिद्ध किया जा सकेगा। 
    
कुर्स्क पर यूक्रेनी आक्रमण और कुछ इलाकों पर तात्कालिक कब्जे ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर द्वारा कुर्स्क इलाके में बड़े पैमाने के आक्रमण की याद ताजा कर दी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने सोवियत संघ के विरुद्ध युद्ध कुर्स्क के इलाके में बड़े पैमाने पर आक्रमण करके तेज कर दिया था। उस समय सोवियत समाजवादी संघ की सेना और सरकार ने हिटलर की सेना को काफी अंदर तक ले आने की योजना के अनुसार काम किया था। जब काफी अंदर तक हिटलर की सेना घुस आयी थी, तब सोवियत सेनाओं ने उसे चारों तरफ से घेरकर, उसकी आपूर्ति को काटकर उसको नेस्तनाबूद करने का रास्ता प्रशस्त किया था। लगता है कि कुछ इसी प्रकार की प्रक्रिया मौजूदा रूसी शासक भी अपना रहे हैं। इस समय कुर्स्क इलाके में यूक्रेनी सेना रूसी प्रत्याक्रमण से घिर गयी है। वे अब छिटपुट बिखरी हुयी कार्रवाइयों तक सीमित रह गये हैं। अब रूसी सेना कुर्स्क इलाके में जमीन से और हवाई बमबारी से यूक्रेनी सेना पर हमला कर रही है। यूक्रेनी सेना अब रक्षात्मक स्थिति में खुद कुर्स्क क्षेत्र में आ चुकी है। उसने कुर्स्क क्षेत्र के एक परमाणु संयंत्र को हमले का निशाना बनाने की कोशिश की है। इसी प्रकार जीपोराजिया में यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र पर कब्जा करके उसमें तोड़फोड़ करने की कोशिशें की हैं। 
    
यूक्रेन की इस तरह की तोड़फोड़ करने की कार्रवाई और रूस के अंदर नागरिक ठिकानों पर हमले करने की कार्रवाइयों के बारे में पुतिन की हुकूमत ने यह कहकर जवाब दिया कि यदि पश्चिमी साम्राज्यवादियों की संलिप्तता के साथ यूक्रेन इस तरह की कार्रवाई जारी रखता है तो रूस भी इसका प्रत्युत्तर समुचित तरीके से देगा और इसमें रणकौशलात्मक तौर पर सीमित मात्रा में परमाणु हमला भी हो सकता है। 
    
पुतिन के इस वक्तव्य के बाद अमरीकी और उसके नाटो के साम्राज्यवादी देश अब यह कहने लगे हैं कि यूक्रेन द्वारा कुर्स्क क्षेत्र में किये गये हमले की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी, कि वे यूक्रेन की इस कार्रवाई से सहमत नहीं हैं और कि उनके द्वारा प्रदत्त एफ-16 विमान और दूर तक मार करने वाली मिसाइलें और ताकतवर ड्रोन का इस्तेमाल वे रूसी क्षेत्र में करने के खिलाफ हैं।
    
लेकिन पुतिन की सेना इतने पर ही नहीं रुकी। उसने यूक्रेन के सभी क्षेत्रों में छोटे-बड़े शहरों में उसके फौजी डिपो और बिजली संयत्रों तथा अवरचनागत संस्थाओं पर बड़े पैमाने पर एक साथ हमले किये। यूक्रेन का बड़ा हिस्सा अंधेरे में चला गया। कई फौजी डिपो तबाह हो गये। राजधानी कीव सहित कई शहरों में खतरे के साइरन लगातार बजने लगे। लोग डर के मारे अपनी सुरक्षा के लिए बंकरों और भूमिगत मेट्रो स्टेशनों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गये। 
    
अब स्थिति यहां पहुंचती जा रही है कि नाटो की और अमरीकी फौज यदि खुलकर यूक्रेन के मैदान में रूस के विरुद्ध लड़ने के लिए उतरती है तो यह एक बड़े युद्ध में तब्दील हो सकता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं। एक तरफ उनके हर कदम एक बड़े पैमाने के युद्ध के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं और दूसरी तरफ वे अपने खुद के विनाश से बचने के लिए ऐसा युद्ध नहीं चाहते। 
    
इधर नाटो देशों के बीच, यूरोपीय संघ के देशों के बीच रूस के विरुद्ध युद्ध में यूक्रेन की मदद करने के सम्बन्ध में मतभेद बढ़ते गये हैं। हंगरी पहले से ही रूस के ऊपर लगाये गये प्रतिबंधों के विरुद्ध रहा है। तुर्की लगातार रूस के साथ आर्थिक-राजनीतिक-कूटनीतिक सम्बन्धों को बढ़ाने की बात करता रहा है। कई यूरोपीय देशों को रूसी प्राकृतिक गैस और तेल की आपूर्ति टेढ़े-मेढ़े रास्ते से होती रही है। वे इस आपूर्ति को सीधे चाहते हैं। 
    
हालांकि अभी भी अमरीकी साम्राज्यवादियों के नेतृत्व में नाटो के देश रूस के विरुद्ध यूक्रेन के साथ आम तौर पर हैं। लेकिन उनकी यूक्रेन के साथ एकता और एकजुटता में कमी आयी है। 
    
जहां तक जेलेन्स्की की सत्ता का सम्बन्ध है, वह अपनी कानूनी अवधि पूरी कर चुकी है। यह सत्ता मार्शल ला के तहत युद्ध की वजह से है। यूक्रेन की अच्छी खासी आबादी यूरोप के अलग-अलग देशों में शरण में है। यूक्रेन की आबादी को जबरन फौज में भर्ती किया जा रहा है। अनुभवी फौजी काफी बड़े पैमाने पर हताहत हुए हैं। नये रंगरूटों को थोड़ा सा प्रशिक्षण देकर मोर्चे की अग्रिम पंक्तियों में लड़ने के लिए भेजा जा रहा है। और वे मोर्चे में मरने के बजाय रूसी सैनिकों के समक्ष आत्मसमर्पण करने में ही अपना भला समझते हैं। यदि वे मोर्चे से पीछे हटने की कोशिश करते हैं तो उनके साथी अफसर उन्हें गोली से उड़ा देते हैं। ऐसी बातें कई समर्पण करने वाले सैनिकों ने पत्रकारों को बताई हैं। 
    
जेलेन्स्की को खुद न तो कोई खास राजनीतिक अनुभव है और फौजी अनुभव तो बिलकुल ही नहीं है। मौजूदा सेनापति सिरस्की को एक जोखिमबाज सेनाधिकारी समझा जाता है। कहा जाता है कि बखमुत की लड़ाई में इन महाशय के कारण ही यूक्रेनी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। 
    
जेलेन्स्की एक हारे हुए युद्ध में हताशा के शिकार हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले ये नाटकों में मसखरे की भूमिका निभाते थे। राष्ट्रपति बनने के बाद ये राजनीतिक मसखरा हैं। ऐसा राजनीतिक मसखरा जो अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके नाटो सहयोगियों के हाथों का मोहरा बना हुआ है। 
    
इस मसखरे ने यूक्रेन को तबाह किया है  और उसके संसाधनों पर अमरीकी व पश्चिमी साम्राज्यवादियों को कब्जा करने में मदद की है। रूसी और पश्चिमी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को बढ़ाने या उसे कायम रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं। रूसी साम्राज्यवादी यूक्रेन को अपनी छत्रछाया में लाने के लिए यह युद्ध लड़ रहे हैं और अमरीकी साम्राज्यवादी यूक्रेन को रूस को घेरने और उसे कमजोर करके अपने प्रभाव में लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी और रूसी साम्राज्यवादियों के प्रभाव क्षेत्र के विस्तार युद्ध का अखाड़ा यूक्रेन है। यूक्रेन का मौजूदा राष्ट्रपति मसखरा है। वह यूक्रेन की व्यापक मजदूर-मेहनतकश आबादी का दुश्मन है। उसकी कुर्स्क पर हमला व तात्कालिक तौर पर कुछ क्षेत्र पर कब्जा करने की कार्रवाई एक हताशा भरी कोशिश है। 
    
इस कोशिश की नाकामी पहले से निश्चित है। 

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