सच में ! बस अब बहुत हुआ !

राष्ट्रपति मुर्मू का बयान

‘‘बस, अब बहुत हुआ’’ राष्ट्रपति मुर्मू का बयान हर अखबार के फ्रंट पेज पर छपा। जो खूब चर्चा का विषय बना। 
    
कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कालेज में डाक्टर की दुष्कर्म के बाद हत्या पर प्रतिक्रिया देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ‘वह घटना से निराश और भयभीत हैं।’....... ‘अब बहुत हो गया, अब समय आ गया है कि भारत महिलाओं के खिलाफ अपराधों की ‘विकृति’ के प्रति जाग जाए और उस मानसिकता का मुकाबला करे जो महिलाओं को ‘कम शक्तिशाली, कम सक्षम, कम बुद्धिमान’ के रूप में देखती है।’...... ‘इतिहास का सामना करने से डरने वाले समाज सामूहिक भूलने की बीमारी का सहारा लेते हैं; अब समय आ गया है कि भारत इतिहास का सामना करे।’.... ‘सभ्य समाज इस तरह के अत्याचार की इजाजत नहीं दे सकता’ आदि आदि। 
    
राष्ट्रपति महोदया के बोल इसीलिए फूटे क्योंकि मामला बंगाल का था। यही नहीं प्रधानमंत्री जो हर समय महिला हित की बात करते हैं, उनका बयान भी बंगाल के ऊपर ही था। वह भूल जाते हैं गुजरात दंगा, मणिपुर, कठुआ, उन्नाव।
    
सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि 2014 से अब तक महिलाओं के साथ अपराध बहुत बढ़े हैं। इसमें से अगर देखें तो अल्पसंख्यकों, दलितों व आदिवासी महिलाओं पर हिंसा व बलात्कार की घटनायें ज्यादा हुई हैं। ऐसा नहीं है कि इससे पहले यौन हिंसा की घटनाएं नहीं होती थीं लेकिन अब तो चरम पर हैं। और राष्ट्रपति महोदया जो कह रही हैं वह बिल्कुल सही है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या वे वाकई में महिलाओं के साथ हिंसा पर चिंता कर रही हैं। अगर ऐसा होता तो वे बिलकिस बानो के साथ हुए बलात्कार पर भी बोलतीं जिसके साथ हुए जघन्य अपराध व कुकृत्य को दुनिया जानती है, जिसके परिवार को मार दिया गया था। पिछले साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री महिला सम्मान पर भाषण झाड़ रहे थे उसी वक्त गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो के बलात्कारी व हत्यारों को बरी कर दिया। हालांकि इसके बाद जनाक्रोश फूटने पर मोदी सरकार दबाव में आई और कोर्ट ने उनको जेल भेजा।
    
मणिपुर जलता रहा है। महिलाओं के साथ हिंसा हुई, उनको वस्त्र उतार कर घुमाया गया, न जाने कितनी महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और ऐसा खुद मुख्यमंत्री ने भी स्वीकारा। तब न मोदी न महामहिम ने मुंह तक नहीं खोला। उस समय पूरा देश स्तब्ध था। 
    
महिला पहलवानों ने देश का नाम रोशन किया। उनके साथ यौन उत्पीड़न हुआ। यौन उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण सिंह के खिलाफ महिला पहलवान आंदोलन करती रहीं और दिल्ली पुलिस उन महिला पहलवानों को सड़क पर घसीटती रही। न्याय की गुहार लगाती रहीं। आप उस समय कहां थीं महामहिम। गुंडा प्रवृत्ति का अपराधी बृजभूषण यौन उत्पीड़नकारी भाजपा सरकार में बना रहा है। 
    
महोदया राम रहीम तो बार-बार पैरोल पर बाहर आ रहा है जा रहा है जो एक बलात्कारी साबित हो चुका है। आप क्यों नहीं बोलती हैं। 
    
कर्नाटक में भाजपा के करीबी प्रज्ज्वल रवन्ना ने सैकड़ों महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया है और सीडी बनाई है। आप ने मुंह तो खोला नहीं महोदया। 
    
उत्तराखंड में अंकिता भंडारी की हत्या करने वाला भाजपाई नेता का बेटा है कहिये ना इन पर। 
    
आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन को छीना जा रहा है। अगर वे विरोध करते हैं तो अर्ध सैनिक बल आदिवासी महिलाओं के साथ क्या करते हैं किसी से छुपा नहीं है। 
    
आज जो लोग सत्ता में बैठे हैं वो देश की आजादी से लेकर अब तक नफरत, धर्म, जाति व लिंग की राजनीति करते हुए महिलाओं को चाहरदीवारी में कैद करने से लेकर, ओढ़ने-पहनने व शादी किससे करेगी; सब पर कानून बनाने की बात कर रहे हैं। आज संसद में सबसे ज्यादा भाजपा के सांसद हैं जिन पर महिला हिंसा के आरोपों का अंबार लगा है। 
    
जिस समाज व सभ्यता में आप महोदया सत्ता सुख भोग रही हैं वह पतित अश्लील, उपभोक्तावादी पूंजीवादी संस्कृति वाला समाज है जिसके मूल में निजी सम्पत्ति है। जिसमें महिलाओं को एक माल या यौन वस्तु की तरह देखा जाता है। फिल्म, गाने, सीरियल व पोर्न साइटों से पूंजीपति खूब मूनाफा कमा रहे हैं। इन्हीं की वजह से इस तरह की मानसिकता वाले लोग पैदा हो रहे हैं। घर, गांव, समाज, स्कूल, कालेज, फैक्टरी हो या उच्च संस्थान हर जगह पर महिलाओं के साथ हिंसा, अपराध, बलात्कार हो रहे हैं। इस तरह की मानसिकता पैदा करने वाली पूंजावादी व्यवस्था के खिलाफ आप बोलेंगी! नहीं.....! 
    
महोदया आप पूंजीवादी व्यवस्था की सेवक हैं। इंदिरा गांधी, ममता बनर्जी, शीला दीक्षित, मायावती जैसी शासक वर्ग की महिला। 
    
आज इन अपराधों को रोकने के लिए सख्त कानून नहीं, बल्कि अपराधी पैदा करने वाली पतित अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति वाली पूंजीवादी व्यवस्था का समूल नाश करना होगा। और ये काम मजदूर मेहनतकशों द्वारा किया जायेगा। रूस में क्रांति के बाद समाजवादी व्यवस्था कायम हुई थी।  जहां पर महिलाओं के साथ अपराध, वेश्यावृत्ति तथा भयंकर नशाखोरी आदि समस्याओं को हल कर दिया गया था। 
    
मजदूर, मेहनतकश महिलायें अब इस व्यवस्था में उत्पीड़न-हिंसा झेलकर थक चुकी हैं। इसलिए वे कहेंगी- सच में! बस अब बहुत हुआ। 
 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।