बहन मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनन्द को ठीक चुनाव के पहले अपनी पार्टी बसपा का राष्ट्रीय समन्वयक और उत्तराधिकारी घोषित किया था। आकाश आनन्द ने चुनाव में ऐसे-ऐसे बयान दिये कि हर कोई हैरान था कि बसपा को क्या हो गया। मोदी सरकार की तुलना तालिबान से कर डाली थी। मामला बिगड़ता उससे पहले बहन मायावती ने ठीक चुनाव के बीच में यह कहकर आकाश आनन्द को राष्ट्रीय समन्वयक के पद और अपने उत्तराधिकार से वंचित कर दिया कि वे अभी ‘‘अपरिपक्व’’ हैं।
इधर चुनाव निपटे, चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुला। पर बहन मायावती को चुनौती देने वाले चन्द्रशेखर रावण संसद में पहुंच गये। चुनाव परिणाम के बाद अभी दो हफ्ते भी नहीं बीते कि न जाने क्या करिश्मा हुआ। आकाश आनन्द ‘‘परिपक्व’’ हो गये। बहन मायावती ने फिर से अपने लाडले भतीजे को बसपा का राष्ट्रीय समन्वयक और अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। बहन जी! आकाश आनन्द इतनी जल्दी कैसे परिपक्व हो गये। इतनी जल्दी तो चूजा भी मुर्गा नहीं बनता।
इतनी जल्दी तो चूजा भी मुर्गा नहीं बनता
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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
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7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।