नई संसद में मजेदार नजारा था। पक्ष आपातकाल के 49 साल पूरे होने पर विपक्ष को आइना दिखाने के बहाने धमका रहा था। मोदी के इशारे पर लोकसभा को पूरी तानाशाही से चलाने वाले ओम बिड़ला फिर से लोकसभा अध्यक्ष बनाये गये। और श्रीमान जी ने आसन संभालते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिये। छोटे मियां वही तो करेंगे जो बड़े मियां करेंगे। बड़े मियां ने साफ कर दिया वे जैसे थे वैसे ही रहेंगे।
विपक्ष पक्ष को संविधान की प्रति के जरिये आईना दिखाने की कोशिश कर रहा था पर पक्ष उसमें अपनी वहशी सूरत भला क्यों कर देखे। मोदी जी ऐसे व्यवहार कर रहे हैं मानो चुनाव में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसकी वजह से वे अपने को कच्चा महसूस करें। कांग्रेस अध्यक्ष ने ठीक ही कहा, ‘रस्सी जल गई पर बल नहीं गया’। ओम बिड़ला को अध्यक्ष बनाकर मोदी ने विपक्ष को संदेश दिया कि फिर वे संसद में 100 सांसदों के निलम्बन का खेल खेलेंगे।
मोदी, ओम बिड़ला घोषित आपातकाल का बार-बार जिक्र कर अपने अघोषित आपातकाल पर पर्दा डालना चाहते हैं। किसान, मजदूरों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अपने शासन के दस साल में किये अत्याचारों पर पर्दा डालना चाहते हैं। विपक्ष पक्ष के पापों को दिखाता है तो मोदी इतिहास के सच्चे-झूठे किस्सों से अपने गुनाहों पर पर्दा डालते रहते हैं।
नयी संसद में नये लोकसभा कार्यकाल में वही पुराना खेल चलेगा। आपातकाल पर ओम बिड़ला दो मिनट का मौन रखना चाहते थे और फिर हंगामे के कारण लोकसभा स्थगित कर दी गई।
घोषित आपातकाल बनाम अघोषित आपातकाल
राष्ट्रीय
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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।