अमन 14 साल का मजदूर और छात्र है। अमन और उसका परिवार अगस्त महीने में बवाना (दिल्ली) में खेत मजदूरी करने के लिए आया। 8 सितंबर 2024 को पूठ खुर्द के साध मंदिर के सामने अमन से मुलाकात हुई। वहां पर अमन शनिवार को पूजा की सामग्री बेचने की दुकान पर मजदूरी करने आया था। लगभग 18 घंटे की मजदूरी का उसको 300 रुपये मिलना तय हुआ था। सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक उसको काम करना था।
अमन शाहजहांपुर (नजदीक गढ़ मुक्तेश्वर) उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। उसके माता और पिता खेत मजदूरी करते हैं। और उसके दादा और दादी फूल बेचकर गुजारा करते हैं और बारिश के समय घर पर रहते हैं। उत्तर प्रदेश में बुढ़ापा पेंशन या तो मिलती नहीं या बहुत कम मिलती है। अमन के दादा और दादी को बुढ़ापा पेंशन नहीं मिलती है। अमन सिसौदिया राजपूत है लेकिन उसके पास खेत नहीं हैं। अमन की दो बहनें और एक भाई है। अमन सबसे बड़ा बच्चा है इसलिए मां-बाप की मदद की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी उसकी है। अमन का परिवार बागवानी भी जानता है। जब अमन छोटा था तो उसका परिवार हापुड़ के गांव खड़खडी में बाग में काम करने चला गया। वहां अमन ने 5वीं तक पढ़ाई की। फिर बाग मालिक द्वारा झगड़ा करने के कारण उसका परिवार शाहजहांपुर वापिस आ गया। उसके गांव में उसका नाम तीसरी क्लास में लिखा गया। वहां पर कुछ दिन पढ़ाई की, उसके बाद उसका परिवार झज्जर में काम करने आ गया और वहां 2-3 साल रहा। वहां भी पढ़ाई नहीं हो सकी। अभी उसका परिवार दरियापुर(बवाना) दिल्ली में ज्वार काटने का काम कर रहा है। और कुछ दिन बाद कपास की चुगाई करने झज्जर चला जायेगा। परिवार के चारों बच्चे नहीं पढ़ पा रहे हैं। जब मैंने अमन से बातचीत की तो उसने बताया कि वह पढ़ना चाहता है लेकिन उसका परिवार रोजी-रोटी के चक्कर में घुमंतू बना हुआ है। और दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ राम राज लाने पर तुले हैं। आज उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं। आज मजदूर वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा तमाशा बन कर रह गई है। प्रवासी मजदूरों का इस मामले में बुरा हाल है और उसमें भी प्रवासी खेत मजदूरों के बच्चों की शिक्षा सर्वाधिक बाधित हो रही है। भट्ठा मजदूरों के बच्चों की भी यही कहानी है। आज छोटे छोटे बच्चों को मजदूरी करनी पड़ रही है। क्योंकि आजकल मजदूरी बहुत कम है और महंगाई आसमान छू रही है।
भारतीय राज्य व्यवस्था को शासक वर्ग लोकतंत्र बोलता है और उसके सर्वाधिक बुद्धिजीवी इसको बचाने के लिए एड़ी-चोटी एक किये हुए हैं। इस तथाकथित लोकतंत्र को बनाने का श्रेय भीमराव अंबेडकर को देकर, दलित आबादी को मूर्ख बनाया जा रहा है।
आज हकीकत यह है कि देश पर एकाधिकारी पूंजी का राज है। थोड़ा सा पूंजीपति वर्ग, देश की बहुसंख्यक जनता पर राज कर रहा है। बहुसंख्यक जनता की गुलामी को लोकतंत्र-लोकतंत्र चिल्लाया जा रहा है और गरीब मजदूरों-किसानों की गुलामी बदस्तूर जारी है।
-एक पाठक, दिल्ली
मजदूर वर्ग के बच्चों की शिक्षा और लोकतंत्र
राष्ट्रीय
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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।
आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।