न्यू कैलेडोनिया में फ्रांस सरकार ने आपातकाल लगाया

न्यू कैलेडोनिया द्वीप समूह दक्षिण प्रशांत सागर में स्थित है। यह फ्रांसीसी शासन के अंतर्गत है। यहां के मूलवासी मुख्यतः कनक हैं जो यहां की आबादी का लगभग 42 प्रतिशत है। फ्रांस ने अपनी औपनिवेशिक सत्ता के तहत यहां यूरोपीय आबादी को बसाया था। यूरोपीय आबादी यहां की लगभग चौथाई है। कनक आबादी फ्रांस की अधीनता से मुक्त होना चाहती है। यूरोपीय आबादी फ्रांस की अधीनता में रहना चाहती है। कनक आबादी का अधिकांश हिस्सा गरीब है। यूरोपीय आबादी तुलनात्मक रूप से सम्पन्न है। न्यू कैलेडोनिया में दुनिया का लगभग एक चौथाई निकिल खनिज का भण्डार है। निकिल का इस्तेमाल मुख्यतः स्टेनलेस स्टील और युद्ध सामग्री के निर्माण में होता है। हाल के वर्षों में यहां के निकिल उद्योग में संकट आया हुआ है। निकिल के खनन और परिशोधन उद्योग से मजदूर निकाले गये हैं। एक तो पहले से ही कनक मजदूरों की हालत खराब थी, दूसरे इस संकट ने उनके जीवन को और अधिक नारकीय बना दिया है। इस नारकीय जिंदगी ने उस समय विस्फोट का रूप ले लिया जब फ्रांसीसी संसद ने न्यू कैलेडोनिया में चुनावी सुधार को लागू करने का प्रस्ताव पारित किया। इस चुनावी सुधार के तहत यूरोपीय लोगों को न्यू कैलेडोनिया की प्रांतीय और अन्य संस्थाओं में मत देने का अधिकार दिया गया। कनक आबादी जो यह नहीं चाहती थी, वह सड़कों पर विरोध के लिए निकल पड़ी। वहीं दूसरी ओर फ्रांस के साथ रहने की चाहत रखने वाली आबादी भी सड़कों पर निकल पड़ी। 
    
इस प्रकार, दो विरोधी गुट बड़े पैमाने पर एक दूसरे के विरुद्ध बड़े संघर्ष में कूद पड़े।kaladonia लगभग गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गयी। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रान के चुनाव सुधार ने बड़े पैमाने पर सामाजिक और राजनीतिक असंतोष को बढ़ा दिया है। इसने सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर लोगों द्वारा कब्जा करने की प्रक्रिया को बढ़ाया। स्थानीय अधिकारियों ने यह स्वीकार किया कि वे स्थिति पर अपना नियंत्रण खो चुके हैं। इन टकराहटों में 6 लोगों की जानें चली गयीं, इनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। राजधानी नौमिया के क्षेत्र में 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया और 300 लोग घायल हुए। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रान ने आनन-फानन में बख्तरबंद वाहन और हैलीकाप्टर भेजकर विद्रोह को कुचलने का कार्य किया। उन्होंने टिकटाक पर रोक लगा दी, जिससे कि लोग एक दूसरे से सम्पर्क न स्थापित कर सकें। इसके पहले 1985-86 के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन को बेरहमी से कुचला गया था। उस समय 19 कनक लोगों की हत्या की गयी थी। 
    
शासक वर्ग हमेशा सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा का बहाना बनाकर मजदूर-मेहनतकश व न्यायप्रिय आजादी के लिए संघर्षरत लोगों का दमन करता है। न्यू कैलेडोनिया में भी कनक आबादी के साथ यही हो रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि यूरोपीय मूल की बुर्जुआ वर्ग (कैडोल्पे) की ताकतें मौत के दस्तों का आयोजन कर रहे हैं। 
    
यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि आजादी समर्थक और आजादी विरोधी, दोनों दलों का नेतृत्व बुर्जुआ वर्ग की ताकतें कर रही हैं। आजादी समर्थक सोशलिस्ट नेशनल लिबरेशन फ्रंट (एफ.एल.एन.के.एस.) वस्तुतः न्यू कैलेडोनिया में अन्य कई दलों के समर्थन से प्रांतीय सत्ता में है। यह फ्रांसीसी सरकार पर जनान्दोलन व जन संघर्ष का दबाव बनाकर कुछ रियायतें हासिल करना चाहता है। यह फ्रांसीसी अधीनता से मुक्ति की लड़ाई नहीं लड़ना चाहता। 
    
फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों के लिए न्यू कैलेडोनिया पर नियंत्रण बनाये रखना इसके भू-रणनीतिक महत्व के चलते जरूरी है। वह निकिल के उत्पादन पर नियंत्रण चाहता है जिसका सैन्य महत्व है। वह यहां पर अपना फौजी अड्डा बनाये हुए है और उसका विस्तार कर रहा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यह अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा चीन को घेरने की रणनीति का भागीदार है। 
    
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमरीकी साम्राज्यवादियों का विभिन्न टापू देशों में नियंत्रण है। वहां इनके फौजी अड्डे हैं। दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में उसके सहयोगी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड हैं। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की मदद से वह इस क्षेत्र के टापू समूह के देशों पर अपने नियंत्रण को बनाये रखने की कोशिश कर रहा है। 
    
इन टापू देशों में कुछ के साथ चीनी साम्राज्यवादी अपने न सिर्फ आर्थिक रिश्तों को आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि सुरक्षा सम्बन्धी भी समझौते कर रहे हैं। सोलोमन द्वीप समूह के साथ चीन का सुरक्षा सम्बन्धी समझौता हुआ है। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी सोलोमन की सरकार को तख्तापलट कराने की भी धमकी दे चुके हैं। इसी प्रकार पापुआ न्यू गिनी के साथ चीनी साम्राज्यवादियों ने अपने आर्थिक सम्बन्धों को और मजबूत किया है और हाल ही में वहां हुए दंगों से निपटने में चीनी साम्राज्यवादियों ने वहां की पुलिस व्यवस्था को मजबूत करने में मदद करने की पेशकश की है। इन दोनों ही मामलों में अमरीकी साम्राज्यवादी, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड सशंकित हो गये हैं। वे हर तरह से चीनी साम्राज्यवादियों की घुसपैठ को इन टापू देशों से रोकने की कोशिश कर रहे हैं। 
    
एक तरफ तो अमरीकी साम्राज्यवादी क्वाड और आकस के जरिए आक्रामक होकर चीन की घेराबंदी कर रहे हैं और दूसरी तरफ चीनी साम्राज्यवादियों के प्रभाव को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। वे जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, फिलीपीन्स इत्यादि के जरिये अपने गठबंधन बना रहे हैं और फौजी अड्डों का विस्तार कर रहे हैं। इसी कड़ी में फ्रांसीसी साम्राज्यवादी उनकी मदद करने के लिए दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में अपनी फौजी ताकत बढ़ा रहे हैं। 
    
फ्रांसीसी साम्राज्यवादी, जिस तरह से यूक्रेन युद्ध में हिस्सेदारी करके वहां की मजदूर-मेहनतकश आबादी पर अपने हमले तेज कर रहे हैं, उसी तरह वह न्यू कैलेडोनिया में भी वहां की मजदूर-मेहनतकश आबादी को तोप के चारे के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए उन्हें अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा अपना प्रभुत्व बनाये रखने की मुहिम में इस्तेमाल कर रहे हैं। 
    
ताइवान में अमरीकी साम्राज्यवादी अपने हथियारों की बिक्री सहित अपनी फौजी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। इसका जवाब चीनी साम्राज्यवादी अपने फौजी अभ्यास बढ़ाकर दे रहे हैं कि ताइवान में हस्तक्षेप अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए सीधे चीन के साथ युद्ध में जाना होगा। 
    
कुल मिलाकर दोनों तरफ से घेरेबंदी और प्रतिघेरेबंदी हो रही है। दुनिया अधिकाधिक युद्ध के करीब पहुंचती लग रही है। 
    
शासकों के भीतर के ये संघर्ष और टकराहटें मजदूर-मेहनतकश आबादी के बीच इनके असली आदमखोर चरित्र को उजागर करती जा रही हैं। 

न्यू कैलेडोनिया व फ्रांसीसी साम्राज्यवादी

प्रशांत महासागर में स्थित न्यू कैलेडोनिया जो फ्रांस का एक विदेशी द्वीप हैं, में 15 मई को प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में अब तक 5 लोगों के मारे जाने की खबर है और दर्जनों लोग घायल हैं। सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। फ्रांस ने अपने इस विदेश द्वीप में 15 मई से 12 दिनों के लिए आपातकाल लगा दिया है। 
    
यह हिंसा उस समय भड़की जब फ्रांस की नेशनल असेंबली ने एक बिल पारित किया। इस बिल के मुताबिक कैलेडोनिया में 10 साल से अधिक समय से रह रहे फ्रांसीसी नागरिकों को भी स्थानीय नगरपालिकाओं और 54 सदस्यीय नेशनल कांग्रेस में वोट देने का अधिकार मिल जाएगा। 
    
ज्ञात हो कि फ्रांस में अप्रैल से ही इस बिल को पारित करने की प्रक्रिया चल रही थी और तभी से न्यू कैलेडोनिया में आजादी के समर्थक रैली निकालकर प्रदर्शन कर रहे थे। इस प्रदर्शन में ज्यादातर वहां की मूल आबादी है जिन्हें कनक कहा जाता है।
    
दरअसल न्यू कैलेडोनिया फ्रांस से 17,000 किलोमीटर दूर एक द्वीप है। इस पर फ्रांस का 171 सालों से कब्जा है जो उसने 1853 में किया था। यह द्वीप आस्ट्रेलिया से 1500 किलोमीटर दूर है। यहां तीन नगरपालिका हैं जो उत्तर, दक्षिण और लायलिटी द्वीप में हैं। 
    
इस बिल को पारित करने के समर्थक राजनीतिक दल न्यू कैलेडोनिया में रह रहे उन फ्रांस के नागरिकों को वोट देने का अधिकार देना चाहते हैं जो अभी तक वहां वोट देने के अधिकार से वंचित हैं। यह आबादी वहां की आबादी की 20 प्रतिशत है। लेकिन न्यू कैलेडोनिया में आजादी के समर्थक इसे अपनी आजादी के लिए सही नहीं मानते। 
    
5 मई 1998 को न्यू कैलेडोनिया के शहर नौमेई में एक समझौता हुआ था और इसे नौमेई समझौता कहा जाता है। इस समझौते के तहत फ्रांस अगले बीस सालों में न्यू कैलेडोनिया को स्वायत्तता देगा और उसके बाद 2018, 2020 और 2021 में जनमत संग्रह कराया जायेगा। इस जनमत संग्रह में 1994 से 2014 के बीच लगातार वहां रह रहे लोगों को भाग लेने दिया जायेगा।
    
जब 2018 और 2020 में जनमत संग्रह हुए तो उसमें न्यू कैलेडोनिया को फ्रांस के साथ रहने पर ही निर्णय हुआ। 2021 में जब जनमत संग्रह हुआ तो कोरोना के कारण वहां की मूल आबादी कनक ने इसका बहिष्कार किया। 
    
फ्रांस अपने से 17,000 किलोमीटर दूर स्थित न्यू केलेडोनिया को किसी भी तरह अपने साथ रखने के लिए कोशिश कर रहा है। इसके लिए ही वह वहां 10 साल से अधिक समय से रह रहे फ्रांसीसी नागरिकों को वहां स्थानीय नगरपालिकाओं और नेशनल कांग्रेस में मत देने का अधिकार देना चाहता है ताकि उसकी पकड़ मजबूत हो सके। 
    
आखिर फ्रांस ऐसा क्यों चाहता है। इसकी मुख्य दो वजह हैं। एक तो प्रशांत महासागर में अपनी उपस्थिति और दूसरा न्यू कैलेडोनिया में मिलने वाला निकिल। निकिल के उत्पादन के मामले में न्यू कैलेडोनिया दुनिया में तीसरा बड़ा उत्पादक है। 
    
दुनिया में बढ़ती अंतर साम्राज्यवादी प्रतियोगिता और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की चाहत साम्राज्यवादी देशों को मजबूर कर रही है कि वे अपने अधीन देशों पर अपने कब्जे को न छोड़ें। और इसका शिकार न्यू कैलेडोनिया की मूल आबादी हो रही है।

आलेख

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

/philistini-pratirodha-sangharsh-ek-saal-baada

7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।