उधमसिंह के शहीदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

शहीद उधमसिंह हमारे देश के वो महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिये जिम्मेदार तत्कालीन गवर्नर जनरल ओ’ ड्वायर को लंदन जाकर गोली से उड़ा दिया था और हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गये थे। उधमसिंह अपने उद्देश्य के प्रति एकनिष्ठ रूप से समर्पित थे। वे 1917 की रूसी क्रांति से प्रेरित थे और शहीद भगतसिंह को अपना आदर्श मानते थे और उन्हीं की भांति वह भी भारत में शोषण-उत्पीड़न से मुक्त एक समाजवादी समाज कायम करना चाहते थे। वे सांप्रदायिक राजनीति करने वाली ताकतों को ब्रिटिश परस्त बताते हुये उनकी घोर भर्त्सना करते थे। 
    
प्रगतिशील-क्रांतिकारी संगठन प्रतिवर्ष शहीद उधमसिंह को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते हैं। इस वर्ष भी प्रगतिशील-क्रांतिकारी संगठनों द्वारा उनके शहीदी दिवस पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये और विचार गोष्ठी, श्रद्धांजलि सभा, बाइक रैली आदि कार्यक्रमों का आयोजन हुआ।
    
दिल्ली की शाहबाद डेरी में एक जुलूस का आयोजन कर जगह-जगह नुक्कड़ सभायें की गयीं। इस दौरान मजदूर-मेहनतकश जनों को शहीद उधमसिंह के जीवन, विचारों और उनके बलिदान से परिचित कराते हुये उनके कौमी एकता के संदेश को लोगों तक पहुंचाया गया। 
    
हरिद्वार में 30 जुलाई को उधमसिंह के शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर ‘‘कौमी एकता बाइक रैली’’ का आयोजन किया गया। बाइक रैली की शुरुआत भेल मजदूर ट्रेड यूनियन के कार्यालय से हुई और वह सिडकुल की मजदूर बस्तियों से होते हुये नवोदय नगर में समाप्त हुई। रैली के दौरान ही सलेमपुर में एक नुक्कड़ नाटक ‘‘अंधकार मिटाना है’’ का भी मंचन किया गया। 
    
समापन स्थल पर रैली एक सभा में तब्दील हो गई जिसमें वक्ताओं ने कहा कि शहीद उधमसिंह खुद एक मजदूर थे और उन्होंने अपना सब कुछ अपने देश-समाज को समर्पित कर दिया था। जनरल ओ’ ड्वायर को गोली से उड़ाकर तो उन्होंने अंग्रेजी शासन की चूलें ही हिला दी थीं।
    
जसपुर में उधमसिंह के शहीदी दिवस के अवसर पर शहीद यादगार कमेटी ने तहसील प्रांगण में शहीद उधमसिंह के चित्र पर फूल चढ़ाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने उनके जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुये कहा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद से घृणा के साथ उनके अंदर देश के भीतर पनप रही सांप्रदायिकता के विरुद्ध भी गहरा आक्रोश था। अंग्रेजों के विरुद्ध सभी धर्मों के लोगों की एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था।
    
रामनगर में उधमसिंह के शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन कर उधमसिंह के क्रांतिकारी जीवन पर विस्तार से बात की गई। साथ ही विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि आज सत्ता पर काबिज भाजपा ने अपनी नफरत भरी सांप्रदायिक राजनीति से पूरे ही देश में बहुत खतरनाक हालात कायम कर दिये हैं। मणिपुर का उदाहरण सबके सामने है। दरअसल आर एस एस-भाजपा जो हिंदू राष्ट्र कायम करने की बात करते हैं वह असल में एक हिंदू फासीवादी राज्य होगा, जो कि बड़े पूंजीपतियों के लिये काम करने वाली आतंकी-नंगी तानाशाही होगी। 
    
रुद्रपुर में उधमसिंह के शहीदी दिवस पर श्रमिक संयुक्त मोर्चा की कलेक्ट्रेट परिसर स्थित शहीद उधमसिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि देने की योजना थी, लेकिन जिला प्रशासन ने कलेक्ट्रेट के गेट पर ही लोगों को रोक दिया और मूर्ति पर माल्यार्पण नहीं करने दिया। इस पर आक्रोशित मजदूर यूनियनों व जन संगठनों के साथियों ने कलेक्ट्रेट के गेट पर ही उधमसिंह का शहीदी दिवस मनाया।
    
इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि शहीद उधमसिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण से रोककर उधमसिंह के नाम पर ही बने इस जिले का प्रशासन और प्रदेश सरकार हमारे साथ अंग्रेजों जैसा ही व्यवहार कर रही है। 
    
इसके अलावा यजाकि वर्कर्स यूनियन ने कंपनी गेट पर शहीद उधमसिंह के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
    
पंतनगर में विश्वविद्यालय परिसर में जुलूस निकाला गया और शहीद स्मारक पर अमर बलिदानी उधमसिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि बड़े पूंजीपतियों और संघ-भाजपा के गठजोड़ से कायम केंद्र की मोदी सरकार देश में सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाते हुये जनता के जनवादी अधिकारों को कुचल रही है। आज भारत में हिटलर के नाजीवाद की तर्ज पर हिंदू फासीवादी निजाम कायम करने की साजिशें हो रही हैं।
    
सभा के दौरान उधमसिंह के शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर विश्वविद्यालय के अधिकारी की शिकायत पर पुलिस द्वारा प्रचार अभियान चलाने से रोकने और पर्चा जब्त कर कार्यकर्ताओं को थाने में बैठाकर धमकाने की कार्यवाही को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला घोषित कर इसकी घोर निंदा की गई। 
    
हल्द्वानी में इस अवसर पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर शहीद उधमसिंह को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये। सभा में वक्ताओं ने कहा कि आज आर एस एस-भाजपा के हमलों के जवाब में हमें शहीद उधमसिंह की विरासत की मशाल को थामकर चलना होगा। 
    
कालाढूंगी में शहीद उधमसिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस दौरान हुई सभा में शहीद उधमसिंह की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हुये हिंदू फासीवाद के विरुद्ध संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। 
    
बिंदुखत्ता, कार रोड पर एक नुक्कड सभा का आयोजन कर उधमसिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 
    
बरेली में इस मौके पर ‘‘शहीद उधमसिंह की क्रांतिकारी विरासत और हिंदू फासीवाद का बढ़ता खतरा’’ विषय पर एक विचार गोष्ठी की गई। गोष्ठी की शुरुआत प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच द्वारा प्रस्तुत क्रांतिकारी गीत ‘‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’’ से की गई। 
    
कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। साथ ही हरिद्वार से संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा, सीमेंस वर्कर्स यूनियन, एवेरेडी मजदूर यूनियन, एवेरेडी मजदूर संघ (नोएडा), राजा बिस्कुट मजदूर संगठन, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन एवं प्रगतिशील भोजन माता संगठन से जुड़े लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं, रुद्रपुर से श्रमिक संयुक्त मोर्चा, भाकपा (माले), राने मद्रास यूनियन, पी डी पी एल वर्कर्स यूनियन, इंटरार्क मजदूर यूनियन, रैकेट इंडिया यूनियन से जुड़े कार्यकर्ताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं, रामनगर से उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी, जसपुर (काशीपुर) से सीपीएम, सीपीआई, कांग्रेस पार्टी, भारतीय किसान यूनियन, पीस क्लब, पंतनगर से ठेका मजदूर कल्याण समिति, हल्द्वानी से अम्बेडकर मिशन, भाकपा (माले), भीम आर्मी, मूल निवासी संघ से जुड़े कार्यकर्ताओं, बिन्दुखत्ता से भीम आर्मी, कालाढूंगी से क्रांतिकारी किसान मंच, भीम आर्मी, एकता मिशन, बरेली से प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच, आटो-टेम्पो चालक वेलफेयर एसोसिएशन, बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन एवं बरेली कालेज की मजदूर यूनियन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। -विशेष संवाददाता

आलेख

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तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

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यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।