3 छात्रों की मौत या हत्या?

दिल्ली के ओल्ड राजेन्द्र नगर में यूपीएससी की तैयारी करने वाले 3 छात्रों की मौत ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं। ओल्ड राजेन्द्र नगर यूपीएससी की तैयारी कराने वाले कोचिंग सेन्टरों का गढ़ है। देश भर से छात्र यहां यूपीएससी की तैयारी करने आते हैं। राव आईएएस स्टडी सर्किल के कोचिंग के बेसमेंट में पानी भरने से इन तीन छात्रों की मौत हो गयी। कोचिंग सेंटर बेसमेंट में अवैध तरीके से लाइब्रेरी चला रहा था। जब बारिश के बाद बेसमेंट में पानी भरा तो कई छात्र इसमें फंस गये। लेकिन दो छात्राओं और एक छात्र की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी। वे डूबकर मर गये।
    
विकसित होते भारत और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होते भारत की यही हकीकत है कि यहां जीवन इतना सस्ता हो गया है। विश्व गुरू बनते भारत में छात्रों को यूं मौत के घाट उतारना आम बनता जा रहा है। 
    
आंदोलित छात्रों का कहना है कि कोचिंग सेंटर में 300 से 400 छात्र लाइब्रेरी में थे। यही हाल राजेन्द्र नगर के अन्य कोचिंग सेंटरों का है। भ्रष्ट प्रशासन और कोचिंग माफियाओं की मिलीभगत का आलम यह है कि सैकड़ों कोचिंग ऐसे ही बिना एनओसी और अवैध तरीके से बेसमेंट में लाइब्रेरी व अन्य गतिविधियों को संचालित कर रहे हैं। कहने को तो बेसमेंट में सिर्फ पार्किंग व सामान रखने की ही इजाजत है लेकिन ये कोचिंग माफिया खुले आम नियमों की न सिर्फ धज्जियां उड़ा रहे हैं बल्कि छात्रों के जीवन से खेल रहे हैं। इनके इसी खूनी खेल में ये तीन छात्र मारे गये। गेट से करंट लगने के कारण एक सप्ताह पूर्व ही एक एस्परेंट की मौत पटेलनगर में हुई थी। पिछले सप्ताह में दिल्ली में 7 लोग करंट से मारे गये। लेकिन तीन छात्रों की मौत के बाद प्रशासन की ये खूनी लापरवाही निशाने पर आ पाई।
    
इस घटना के बाद प्रशासन ने 13 कोचिंग सेटरों के बेसमेंट को सील किया है। आंदोलित छात्रों ने कहा कि अन्य सेंटरों में बेसमेंट का प्रयोग लाइब्रेरी व माक टेस्ट के लिये किया जाता है। 
    
26 जून को एक छात्र ने इन गैरकानूनी बेसमेंट के प्रयोग की शिकायत की। छात्र ने लिखा कि बेसमेंट के ऐसे प्रयोग से जान का खतरा है। यही नहीं छात्र ने 15 व 22 जुलाई को दो-दो रिमाइंडर एमसीडी को भेजे। लेकिन हुआ वही जो इस सिस्टम में होता है। कोई कार्यवाही नहीं। प्रशासन अब सांप गुजरने के बाद लाठी पीट रहा है। एक अनुमान के अनुसार इस समय दिल्ली में 1000 ऐसी कोचिंग चल रही हैं। 
    
ऐसा नहीं है कि ये पढ़े-लिखे लोग कोचिंग सेंटरों में इतने खतरनाक माहौल के बारे में न जानते हों। ऐसा हो सकता है कि शिकायत भले ही एक-दो छात्रों ने की है लेकिन ऐसा नहीं है कि मौत के बंदोबस्त के मध्य प्रतियोगिता की तैयारी करने वाले ये छात्र ऐसी किसी अनहोनी होने से पूर्णतः अनभिज्ञ हों। 300 से 400 छात्र बेसमेंट में एक ही गेट से आने-जाने की व्यवस्था के बीच और दमघोंटू वातावरण में पढ़ते हैं। आखिर क्यों वे इतने मजबूर हो गये? जाहिर है कि भारत में लगातार बढ़ती बेरोजगारी इसका प्रमुख कारण है। जिस व्यवस्था में नौकरी पाना असंभव सा हो गया हो तो वहां प्रतियोगिता न सिर्फ गलाकाटू हो जाती है बल्कि मौत के इंतजाम में पढ़ने के लिए भी मजबूर कर देती है। इसी का फायदा ये कोचिंग माफिया और व्यवस्था के अन्य अंग उठाते हैं।
    
दिल्ली जैसे शहर में इस तरह की घटना ने एक बार फिर पूरी व्यवस्था की हकीकत को सामने ला दिया है। इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस, एमसीडी, पीडब्ल्यूडी हरकत में आ गये हैं। पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप मढ़ मृतकों की मौत का मजाक उड़ा रहे हैं। प्रशासन मामले की लीपापोती करने और फिर ऐसी घटनाओं के घटने की पटकथा लिखने में व्यस्त हो गया है। दिल्ली कहने को देश की राजधानी है लेकिन ऐसी दुर्घटनाएं दिल्ली में आम हैं। दिल्ली की फैक्टरियों में आग लगने, बिल्डिंग गिरने से हर साल मजदूर मारे जाते हैं। लेकिन थोडे़ समय के लिए प्रशासन मुस्तैदी दिखाने का अभिनय करता है और अगली दुर्घटना के लिए इंतजार करता है। 
    
पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा बांटी जा रही ऐसी मौतों से तभी छुटकारा पाया जा सकता है जब मुनाफे पर आधारित इस व्यवस्था को ही बदल दिया जाय। सबको रोजगार की गारंटी न सिर्फ गलाकाटू प्रतियोगिता का अंत कर देगी बल्कि अपने मुनाफे के लिए छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने वाले कोंचिंग सेंटरों की जरूरत को भी खत्म कर देगी। मुट्ठी भर शासकों के जीवन को ही महत्व देने वाली इस पूंजीवादी व्यवस्था के स्थान पर सभी के जीवन को समान महत्व देने वाली समाजवादी व्यवस्था में ही ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।