देश में औद्योगिक क्षेत्रों में लग रही आग का सिलसिला रुक नहीं रहा है। इसी कड़ी में गुड़गांव में दौलताबाद इंडस्ट्रियल एरिया में फायर एंड पर्सनल सेफ्टी इंटरप्राइजेज़ में आग लग गयी। यह आग 22 जून को सुबह 2ः25 पर एक बडे़ धमाके के साथ लगी। इसके बाद 2 और धमाके हुए। पहला धमाका इतना शक्तिशाली था कि कई मीटर दूर तक फैक्टरी के परखच्चे उड़ गए और फैक्ट्री का मलवा काफी दूर जाकर गिरा। इसके साथ ही आस-पास की 6-7 कंपनियों में आग लग गई और इसके अलावा अन्य फैक्टरी भी धमाके के कारण क्षतिग्रस्त हो गयीं। धमाके की गूंज से 500 मीटर के दायरे तक कंपनी और घरों के शीशे टूट गए। आग इतनी भयंकर थी कि इसे बुझने के लिए दमकल की 24 गाड़ियां लगाई गयीं।
इस हादसे में चार मजदूरों की मृत्यु हो गई। एक मजदूर को गंभीर चोट आई और 6-7 अन्य मजदूरों को भी चोटें आईं। फैक्टरी में फायर बाल्स (बाल रूपी आग बुझाने वाला उपकरण) बनाई जाती थीं। इस फैक्टरी में ज्यादातर मजदूर ठेकेदारी के तहत काम कर रहे हैं, जो उ.प्र. और बिहार के रहने वाले हैं। पास की एक दूसरी फैक्टरी में काम करने वाले मजदूर ने बताया कि शुक्र है कि यह आग रात में लगी। यदि सुबह लगती तो बड़ी संख्या में मजदूर मारे जाते।
आग लगने के स्पष्ट कारण का पता नहीं लग पाया है। इसके लिए पुलिस की एक टीम बनाई है।
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले गुरुग्राम के मानेसर इलाके में कपड़ा बनाने वाली फैक्ट्री न्यूमेरो यूनो में आग लगी थी। तब न्यूमेरो यूनो कंपनी की आग को काफी मशक्कत के बाद बुझाया जा सका था।
गुरुग्राम के इंडस्ट्रियल इलाके में आगजनी की यह दूसरी बड़ी घटना है।
यह स्पष्ट है कि आग लगने का मुख्य कारण मालिक द्वारा सुरक्षा के इंतजामों में लापरवाही है। मालिक द्वारा मुनाफे को और अधिक बढ़ाने के लिए सुरक्षा उपायों का उचित इंतजाम ना करना रहा है। जिस कारण मजदूरों की जानें गयीं।
इस दुर्घटना में शासन-प्रशासन की भी जिम्मेदारी बनती है कि उसने कंपनी में जाकर सुरक्षा उपायों की जांच की कोई व्यवस्था नहीं की। प्राप्त जानकारी के मुताबिक पुलिस प्रशासन ने अभी तक मालिक के ऊपर एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार नहीं किया है और ना ही मृतक और घायल मजदूरों के लिए किसी प्रकार के मुआवजे की घोषणा की गयी है। एक अन्य फैक्टरी में काम कर रहे मजदूर ने बताया कि आग बुझाने वाली गाड़ी काफी देर बाद आई थी।
इस पूरे घटनाक्रम में सरकार की भी जिम्मेदार बनती है। सरकार द्वारा इस तरह की नीतियां बनाई जा रही हैं कि पूंजीपतियों को सुरक्षा उपायों में ढिलाई दी जा सके। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से देश भर में विशेष रूप से औद्योगिक क्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं और इसमें मजदूर-मेहनतकश अपनी जान गंवा रहे हैं।
आग से बचाने वाले उपकरण बनाने वाली कम्पनी में आग लगी, 4 मजदूरों की मौत
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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।
आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।