दुनिया को राह दिखाते युवा : केन्या बना नया युद्ध मैदान

‘‘आजाद करो!, आजाद करो! फिलिस्तीन को आजाद करो’ का नारा लगाते हुए अमेरिका और यूरोपीय महाद्वीप के देशों में हजारों की संख्या में छात्र-युवा सड़कों पर उतरते रहे हैं। यह सिलसिला अभी भी जारी है। छात्र-युवाओं का एक ऐसा विशाल प्रदर्शन नये करों के लगाये जाने व महंगाई के खिलाफ केन्या की राजधानी नैरोबी में जून के दूसरे पखवाड़े में हुआ है। इस प्रदर्शन की शुरूवात छात्र-युवाओं ने की। और इन छात्र-युवाओं में एक बड़ी संख्या ऐसों की है जिनकी उम्र बीस साल से भी कम है। यह नयी और बहुत बड़ी बात है। 
    
केन्या में प्रदर्शन छात्र-युवाओं की स्वतः स्फूर्तता से शुरू हुआ। छात्र-युवाओं के सड़कों पर उतरने के बाद हजारों-हजार लोग सड़कों पर उतर आये और फिर उन्होंने देश की संसद को अपने कब्जे में ले लिया। केन्या में विरोध प्रदर्शन की शुरूवात संसद में नए करों के लिए लाये गये वित्त विधेयक से हुयी। इस वित्त विधेयक में डिजिटल पेमेंट के साथ बैंकिंग लेन-देन पर कर लगाया गया। ब्रेड पर 16 फीसदी और सब्जी-तेल जैसी चीजों पर 25 फीसदी वैट (VAT) लगाया गया है। इन नए करों में एक पर्यावरण संरक्षण के नाम पर लगाया गया कर ‘इको-लेवी’ है जिसके कारण सैनिटरी पैड व डायपर के दामों में तीव्र वृद्धि होनी है। छात्र-युवाओं और आम नागरिकों के व्यापक प्रदर्शन के बाद सरकार ने कुछ कदम पीछे हटाये हैं और ‘ब्रेड’ (रोटी) पर लगाये जाने वाले नये कर प्रस्ताव को वापस ले लिया गया है। 
    
केन्या में संसद में कब्जे और सड़कों पर चल रहे प्रदर्शनों के दौरान हुयी पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गये हैं। घायलों की संख्या भी अच्छी-खासी है। आक्रोशित लोगों ने संसद भवन पर कब्जा कर लिया। मेहनतकश जनता से पूरी तरह कट चुके सांसद अपनी जान बचाकर पुलिस के संरक्षण में भागते दिखे। संसद के एक हिस्से में आग लगा दी गयी। कई लोगों के मारे जाने, सैकड़ों के घायल होने और हजारों की गिरफ्तारी के बावजूद केन्या में अभी भी जुझारू प्रदर्शन चल रहे हैं। लोग चाहते हैं कि जन विरोधी वित्त विधेयक को फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया जाए। राष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा दें। राष्ट्रपति का रुख दमन करने और प्रदर्शनकारियों को धमकाने का है। राष्ट्रपति के इस रुख से हालात और अधिक खराब हो सकते हैं। 
    
केन्या में चल रहे प्रदर्शन कुछ वर्ष पूर्व हुए श्रीलंका, लेबनान आदि में हुए प्रदर्शनों और ‘‘अरब बसंत’’ के दिनों की याद दिला रहे हैं। धूर्त, भ्रष्ट, क्रूर शासक जब भीषण दमन, अत्याचार पर उतर आते हैं तो मेहनतकश जनता भी अपने ही तरीकों से इन्हें जवाब देती है। 
    
केन्या में हुए प्रदर्शनों की शुरूवात छात्र-युवाओं ने की अब मजदूर मेहनतकश कमान संभाले हुए हैं। राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया जा रहा है। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।