धारूहेडा : दुर्घटना नहीं ये हत्या है

गुड़गांव/ धारुहेड़ा (गुड़गांव) स्थित लाइफ लांग फैक्टरी में  17 मार्च 2024 को शाम 5 बजे बायलर  फटने से 14 मजदूर मारे गये और कई मजदूर घायल हो गए थे। गंभीर घायल 19 मजदूरों को रोहतक पी जी आई भेजा गया जबकि 20 घायल मजदूरों को रेवाड़ी के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। मजदूरों ने बताया कि कई घायल मजदूरों ने खुद ही अपना इलाज करवाया है। शुरूआत में प्रशासन और प्रबंधन दोनों का कहना था कि घटना में किसी की मृत्यु घटनास्थल पर नहीं हुई है जबकि मजदूरों का कहना है कि कई लोग मरे थे जिनकी लाशों को भट्टी में झोंक दिया गया। हकीकत जो भी हो पर अपने मालिकों की नृशंसता से मजदूर किस कदर परिचित हैं ये तो साफ पता चलता है। अब तक घायल मजदूरों में 14 की मौत हो चुकी है। प्रशासन की पक्षधरता भी मजदूरों से छिपी नहीं है। बस देर है एकजुट होकर इसका प्रतिरोध करने की।         

कंपनी गेट पर अगले दिन पुलिस ने मजदूरों को आने और रुकने ही नहीं दिया। गेट पर पुलिस और ठेकेदार बैठे थे। वे घटनास्थल पर किसी को भी जाने तक की अनुमति नहीं दे रहे थे। न पत्रकार और न ही यूनियन नेता। ट्रेड यूनियनों ने  ज्ञापन देकर इसका विरोध किया तो कुछ ने निंदा करना भी जरूरी नहीं समझा। मजदूरों का क्षोभ सक्रिय प्रतिरोध में तब्दील नहीं हो पाया। 
    
रोहतक में भर्ती मजदूरों में से 4 मजदूरों को दिल्ली रेफर किया गया। रोहतक में भर्ती मजदूरों के परिजनों को ठेकेदार ने इलाज हेतु एक हजार रुपये दिये थे। जबकि गंभीर जले हुए मजदूरों को इलाज के लिए महज एक हजार रु. देना हत्यारे प्रबंधकों की असंवेदनशीलता की इंतहा को ही दर्शाता है। पुलिस ने एफ आई आर दर्ज कर ली है पर रक्तपिपासु मुनाफाखोर हत्यारां की गिरफ्तारी कर सख्त कार्यवाही की इनसे उम्मीद करना ही बेमानी है जबकि पूरा तंत्र इसे महज एक दुर्घटना बताने पर आमादा हो। 
    
फैक्टरी हीरो कंपनी के लिए ऑटो पार्ट बनाती है लगभग 1000-1200 मजदूर काम करते है। किसी को नहीं पता कि कोई भी मजदूर स्थाई है भी कि नहीं। कंपनी में कोई भी श्रम कानून लागू नहीं है। मुनाफे की हवस में सभी कायदे-कानूनों को मालिकों ने ताक पर रखा है और कानून को लागू करवाने वाले सत्ता प्रतिष्ठानों में कारिंदों को अपना दलाल बना रखा है। आये दिन फैक्टरियों में हाथ-पैर कटने की घटनाएं आम बात हैं। पर शासन-प्रशासन, श्रम विभाग, सरकार सब आंखें मूंदे, कानों में तेल डाल कर बैठे हैं। कोई नहीं पूछेगा कि सुरक्षा के मानकों को लागू क्यों नहीं किया गया। कंपनी में एंबुलेंस थी कि नहीं और कितनी थीं। कौन श्रम अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार था। उदारीकरण के जमाने में पूरी शासन सत्ता ही इसके लिए जिमेदार है। 
    
लाइफ लांग कंपनी की दुर्घटनाओं का अपना एक लंबा इतिहास बताया जाता है। इतनी दुर्घटनाओं  में मजदूरों का खून पीकर इसके धारूहेड़ा, मानेसर, नोएडा, हरिद्वार आदि जगहों पर आटो सेक्टर से लेकर मेडिकल सेक्टर तक कारोबार की चर्चायें आम हैं। विकास के इस दौर में मजदूरों की सरेआम हत्यायें करना एक तरह से कानूनी बना दिया गया लगता है।    -गुड़गांव संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

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तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।