ईरान : राष्ट्रपति चुनाव दूसरे चरण में पहुंचा

ईरान में राष्ट्रपति पद के लिए 28 जून को हुए चुनाव में किसी प्रत्याशी को 50 प्रतिशत मत नहीं मिले। इसलिए अब राष्ट्रपति चुनाव दूसरे चरण में पहुंच गया है। दूसरे चरण में शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच 5 जुलाई को मत डाले जायेंगे। 19 मई को हेलीकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत हो गयी थी। इसीलिए नये राष्ट्रपति के चुनाव आयोजित कराये जा रहे हैं। ईरानी कानून के अनुसार राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों में से विजेता जनता के प्रत्यक्ष मतदान द्वारा चुना जाता है। इस मतदान में 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित होता है। अगर किसी प्रत्याशी को 50 प्रतिशत से अधिक मत नहीं मिलते हैं तो शीर्ष दो प्रत्याशियों के बीच दोबारा चुनाव होता है। 
    
ईरान में कोई भी शिया इस्लाम को मानने वाला नागरिक राष्ट्रपति पद पर खड़े होने के लिए दावेदारी कर सकता है। गार्जियन काउंसिल के तहत कार्यरत संस्था चुनाव निगरानी एजेंसी सभी इच्छुक नामों की जांच करती है और उनमें से मुट्ठी भर लोगों को चुनाव में भाग लेने की छूट देती है। इस बार भी 4 महिलाओं समेत 80 लोगों ने चुनाव में दावेदारी की थी पर निगरानी एजेंसी ने महज 6 लोगों को चुनाव लड़ने की छूट दी। इन 6 लोगों में से भी 2 नेताओं ने अपना नाम वापस ले लिया। परिणामस्वरूप 28 जून को चुनाव में 4 प्रत्याशियों के बीच चुनाव हुआ। 
    
28 जून के चुनाव में अभी तक का निम्नतम मतदान लगभग 40 प्रतिशत दर्ज किया गया। इस चुनाव में मध्यमार्गी सुधारवादी सांसद मसूद पेजेशकियन पहले स्थान पर व कट्टरपंथी सईद जलीली दूसरे स्थान पर रहे। अब इन्हीं के बीच 5 जुलाई को चुनाव होगा। इसके अलावा दो अन्य उम्मीदवार पूरमोहम्मदी (न्याय मंत्री) व मोहम्म बाघेर गालिबफ (इस्लामिक कंसल्टेटिव असेम्बली के अध्यक्ष) तीसरे-चौथे स्थान पर रहने के चलते दौड़़ से बाहर हो गये हैं। 
    
मध्यमवर्गीय सुधारवादी मसूद पेजेशकियन महिलाओं के हिजाब न पहनने को अपराध मानना बंद करने के पक्षधर हैं। वे ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिए पूर्व में पश्चिमी देशों में हुए परमाणु समझौते की बहाली के पक्षधर हैं। इसके साथ ही वे कट्टरपंथी ईरान को सुधार के रास्ते पर ले जाने वाले पूंजीवादी गुट के पक्षधर हैं।
    
कट्टरपंथी जलीली ईरान को कट्टरपंथी इस्लाम की राह पर ही आगे बढ़ाना चाहते हैं। वे हिजाब के पक्षधर हैं। 
    
20 जून के चुनाव में 6 करोड़ मतदाताओं में से महज 2.45 करोड़ ने ही मतदान किया। पेजेशकियन को 1.04 करोड़ व जलीली को .94 करोड़ मत प्राप्त हुए। पहले चरण के हारे उम्मीदवारों ने जलीली के पक्ष में दूसरे चरण में मतदान का आह्वान किया है। 
    
ईरान में सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी के बाद राष्ट्रपति पद सबसे महत्वपूर्ण पद है। हालांकि ईरान में अधिकतर निर्णय सर्वोच्च नेता के रुख से तय होते हैं। पर तब भी राष्ट्रपति पद किस पूंजीवादी धड़े के पास पहुंचता है इससे ईरान का भविष्य काफी प्रभावित होगा। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।