जच्चा-बच्चा मौत के मामले में भारत की स्थिति चिंताजनक

दुनिया भर में जच्चा-बच्चा की होने वाली मौतों के मामले में भारत की स्थिति अत्यधिक खराब एवं चिंताजनक है। मातृ दिवस के अवसर पर दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में हुए ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृ नवजात स्वास्थ्य सम्मेलन 2023’ में 10 मई को विश्व स्वास्थ संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष एवं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के आंकड़े जारी किए गए हैं। इन आंकड़ों में साल 2020-21 में प्रसव के दौरान दुनिया भर में 2.90 लाख महिलाओं की मौत हुई है। इस दौरान 19 लाख बच्चे मृत पैदा हुए एवं 23 लाख शिशुओं की मौत जन्म के बाद हो गई। यानी साल 2020-21 में दुनिया भर में प्रसव के दौरान लगभग 45 लाख मां और शिशुओं की मौत हुई है। उक्त आंकड़ों के अनुसार 60 प्रतिशत मौतें भारत सहित केवल 10 देशों में हुई हैं। केवल भारत में ही 2020-21 में 7 लाख 88 हजार जच्चा-बच्चा की मौत हुई है। इतनी संख्या में मौतें हर साल ही होती हैं। जच्चा-बच्चा की मौत के मामले में भारत के बाद नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो, इथियोपिया एवं बांग्लादेश का नंबर आता है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर प्रति हजार बांग्लादेश-77, ब्राज़ील-36, मिश्र-41, भारत-93, इंडोनेशिया-45, मैक्सिको-29 है। यहां भी भारत की स्थिति बहुत ख़राब है।
    

संयुक्त राष्ट्र संघ के यह आंकड़े भयावह एवं मन को झकझोर देने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार इन मौतों का मुख्य कारण कुपोषण है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं एवं शिशुओं की देखभाल के साधनों एवं स्वास्थ्य सेवाओं की घोर कमी है। दक्षिण-पश्चिम एशिया, उप सहारा अफ्रीका एवं लातिन अमेरिकी देशों में गरीबी, स्वास्थ्य सुविधाओं एवं जच्चा-बच्चा की देखभाल करने वाले संसाधनों की भारी कमी है। इन देशों में संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार महिलाओं व नवजात शिशुओं की जीवन रक्षा के लिए, गर्भावस्था और प्रसव के बाद उनके लिए उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। इसके अतिरिक्त परिवार नियोजन सेवाओं की सभी परिवारों तक पहुंच भी जरूरी है। आवश्यक दवाओं व चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति, साफ व सुरक्षित पानी एवं बिजली के अलावा सक्षम स्वास्थ्यकर्मी विशेष रूप से दाईयों की संख्या में वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है।
    

रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण एवं स्वास्थ्य सेवाओं में घोर कमी के कारण 6 महीने से 3 वर्ष के बीच के बच्चों की मृत्यु, शरीर का कम विकास, कम दक्षता एवं भांति-भांति का मानसिक व शारीरिक नुकसान होता है।
    

आज के समय में जब खाद्यान्न एवं स्वास्थ्य संसाधनों की कमी नहीं है। तो ऐसे समय में दुनिया भर में जच्चा-बच्चा की मौत एवं उनकी शारीरिक और मानसिक नुकसान की तस्वीर पूंजीवादी साम्राज्यवादी लूट की अमानवीय त्रासदी का परिणाम है। आज के समय में होने वाली ये इंसानी मौतें, यह मौतें नहीं बल्कि पूंजीवादी साम्राज्यवादी लुटेरों द्वारा की जा रही निर्मम हत्यायें हैं।
    

भारत के शासक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विश्व गुरू बनने की डींग हांकते रहते हैं लेकिन भारत में जच्चा-बच्चा की मृत्यु को रोकने के लिए इनके पास कोई इच्छा शक्ति नहीं है। हमारे देश में अडाणी, अंबानी जैसे अरबपतियों की संख्या में जिस दर से बढ़ोत्तरी हो रही है, उससे कई गुना ज्यादा तेजी से गरीबी और बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी हो रही है। बेतहाशा गरीबी के कारण ही भारत में कुपोषण की दर 55 प्रतिशत है। महिला एवं बाल विकास विभाग मध्य प्रदेश द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में कुपोषण की दर 76 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश में 1 से 3 वर्ष आयु के बच्चों में 4 में से 3 बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं।
    

भारत में लाखों टन अनाज सड़ कर नष्ट हो जाता है। लेकिन देश के नागरिकों में बढ़ती भुखमरी के बाद भी सभी जरूरतमंदों को अनाज मिले यह शासकों की प्राथमिकता में नहीं है। करोड़ों बेरोजगार नौजवानों के लिए काम का इंतजाम नहीं है। इसके पीछे किसी चीज की कमी या शिक्षा-दक्षता का अभाव नहीं है। बल्कि पूंजीवादी साम्राज्यवादी लूट और उनके निजाम को बनाए रखने का वर्तमान शासकों का अमानवीय इंतजाम है। 
    

लूट-शोषण पर आधारित पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था ऐसी ही होती है। यह मेहनत करने वाले इंसानों को गुलाम बनाती है। भूख और युद्ध में धकेल कर इंसानों को मरने के लिए मजबूर करती है। ऐसी दुनिया में ही पूंजीवादी साम्राज्यवादी लुटेरों की बादशाहत चलती है। ऐसी व्यवस्था को खत्म किए बिना भूख, गरीबी, बेरोजगारी और मानवीय मूल्यों को बचाया नहीं जा सकता। पूंजीवादी साम्राज्यवादी दुनिया का जवाब है मजदूरों-किसानों का राज समाजवाद। 1917 में रूस के मजदूरों-मेहनतकशों ने पूंजीवादी साम्राज्यवादी लूट के खिलाफ क्रांति कर वहां पर समाजवादी राज की स्थापना की थी। मजदूरों के समाजवादी राज ने दुनिया की दिशा बदल दी थी। जब दुनिया में आर्थिक संकट छाया हुआ था तो सोवियत संघ में तेज दर से प्रगति हो रही थी। वहां पर तमाम वैज्ञानिक और आधुनिक खोजों के द्वारा मानव जीवन को खूबसूरत बना दिया गया था। बेरोजगारी, गरीबी, हिंसा, अपराध व भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटा दिया गया था। जच्चा-बच्चा की मौत भूख, गरीबी, कुपोषण और दवाओं की कमी के कारण कभी नहीं हुई। महिलाओं के लिए सम्मानजनक रोजगार, गर्भावस्था में सवेतन लम्बी छुट्टी व स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ उचित देखभाल के बढ़िया इंतजाम किए गए थे। बच्चों के लालन-पालन व देखभाल के लिए अलग से खूबसूरत पालना घर बनाए गए थे।
    

आज रूस और सोवियत संघ में मजदूरों का राज समाजवाद नहीं है लेकिन पूंजीवादी साम्राज्यवादी लूट मजदूरों-मेहनतकशों को समाजवाद कायम करने की ओर ले जा रही है। मजदूर संगठित होकर मौजूदा लूट के खिलाफ लड़ाई को जीत कर अपना राज समाजवाद कायम करेंगे। मानवता को पूंजीवादी लूट व अन्य व्याप्त सभी समस्याओं से मुक्ति का रास्ता मजदूर राज में ही मिलेगा।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।