जी-20 की बैठक और उजड़ते गरीब लोग

वर्तमान में जी-20 देशों की बैठक भारत में चल रही है। इसी के तहत विदेशी मेहमानों में भारत की छवि को बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। इसके बहाने पुराने एजेंडे (गरीब लोगों को उनके रिहाइश व छोटे-मोटे रोजगार से उजाड़ कर पूंजीवादी मुनाफाखोरी को बढ़ावा देने हेतु लगने वाली परियोजना को आगे बढ़ाना) भी निपटाए जा रहे हैं। कहीं राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे झोपड़ी डाले लोग अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं तो एक किनारे कहीं छोटा-मोटा रोजगार कर रहे हैं। उन्हें अतिक्रमण के नाम पर उजाड़ कर देश की झूठी खुशनुमा तस्वीर पेश की जा रही है। यही तस्वीर तब सामने आती है जब देश में साम्राज्यवादी देशों के सरगना आते हैं तो उनके लिए पलक पावड़े बिछा कर भारतीय शासक इस प्रकार की खुशनुमा तस्वीर लिए हुए नजर आते हैं। अब से पहले अहमदाबाद में ट्रंप की यात्रा पर मोदी सरकार द्वारा किस प्रकार गरीब मेहनतकशों के प्रति व्यवहार किया था। यह गरीब आम जन भूले नहीं थे कि दुबारा देश में दिखावे की खातिर गरीबों को उजाड़ने का अभियान सा छेड़ दिया गया है।

वर्तमान समय में जी-20 की सालाना बैठकें भारत में हो रही है। यह 18वीं बैठक है जिसका आयोजन भारत व दक्षिण अफ्रीका दोनों देश मिलकर कर रहे हैं। इस समिट (सम्मेलन) की अध्यक्षता भारत को 1 दिसम्बर 2022 से 30 नवम्बर 2023 तक करनी है। भारत के 60 शहरों में 200 से अधिक बैठकों का आयोजन भारत को करना है।

जी-20 देशों में अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका (19 देश) के अलावा यूरोपीय संघ शामिल है।

इसी कड़ी में जी-20 की 3 बैठकें उत्तराखंड में होनी हैं। पहली रामनगर में 26 से 28 मार्च तक चीफ साइंस एडवाइजर राउंड टेबल कार्यक्रम होगा जिसमें 70 विदेशी और 30 भारतीय प्रतिनिधि शामिल होंगे। 25 से 27 मई के बीच वर्किंग ग्रुप ऑन एंटी करप्शन की दूसरी बैठक ऋषिकेश में होगी। यहां 20 देशों के 200 प्रतिनिधि 3 दिन तक भ्रष्टाचार रोकने की चुनौतियां व उनके समाधान पर मंथन करेंगे। तीसरी बैठक 26 से 28 जून के बीच होनी है जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर चुनौतियां और नई तकनीक आदि पर चर्चा की जाएगी।

वर्तमान में जी-20 समिट जिसका उत्तराखंड के रामनगर में आयोजन होना है। उसकी तैयारियों को लेकर उत्तराखंड सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है। बैठक में आने वाले मेहमानों के यातायात का मार्ग पंतनगर हवाई अड्डे से रुद्रपुर दोराहा बाजपुर होते हुए रामनगर तक है। इसके रास्तों को चमकाने का काम इस समय जोरों पर है। इसके लिए एक करोड़ 40 लाख रुपये की राशि को खर्च करने की योजना है। इसमें राज्य के आला अधिकारी, जिले व कुमाऊं मंडल के अधिकारियों द्वारा स्थलीय निरीक्षण कर हाईवे को बेहतरीन करने के दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इसके प्रचार हेतु प्रत्येक 20 किलोमीटर की दूरी पर होर्डिंग बैनर व अन्य माध्यमों से बैठक का व्यापक प्रचार करने के निर्देश दिए गए हैं। ऐसा करने के लिए गरीब गुरुवा जो भी रास्ते में आ रहे हैं, उनको हटाया जा रहा है। (बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था किये ही) अतिक्रमण के नाम पर। जबकि यह लोग उक्त जगहों पर 10-20 सालों से रह रहे हैं। ऐसे में इस प्रकार का भव्य आयोजन गरीब मेहनतकश लोगों के जीवन में उथल-पुथल ला रहा है जबकि जो शासक वर्ग है या जो अमीर वर्ग है, पैसे वाले लोग हैं। उनके लिए तमाम सारी सुविधाएं और बेहतर हो जाती हैं।

इस बात का जीता जागता उदाहरण इस बैठक के रास्ते में पड़ने वाले कस्बों में चल रही तैयारियां हैं। इन्हीं में से एक रुद्रपुर शहर है। रुद्रपुर में रोडवेज स्टेशन से इंदिरा चौराहा के बीच 40-50 सालों से अपना रोजगार कर रहे फड़-खोखे वाले छोटे दुकानदार शासन-प्रशासन की अमानवीय बेरुखी का शिकार हुए हैं। जिला प्रशासन द्वारा एक तरफ की दर्जनों दुकानों को जिनके सहारे दुकानदार सालों से अपना जीवन यापन कर रहे थे, को एक झटके में उजाड़ दिया गया। अब दूसरी साइड का भी नंबर है तो इसी क्रम में 12 मार्च 2023 को व्यापार मंडल के द्वारा उजड़ने की जद में आई हुई दुकानें बंद करते हुए चाबियां सत्ता पक्ष के विधायक को सौंपने का निर्णय लिया गया और धरना-प्रदर्शन कर जिला प्रशासन के तानाशाहीपूर्ण रवैये का विरोध किया गया। व्यापार मंडल का साफ-साफ कहना है कि दुकानदारों को बिना वैकल्पिक इंतजाम किए हुए उजाड़ना सरासर गलत है। भले ही कितने ही नोटिस क्यों न दिए गए हों। जिला प्रशासन का कहना कि हमने नोटिस देकर यह कार्रवाई की है। यह न्याय का तकाजा नहीं है कि प्रशासन बिना बातचीत किये और बिना वैकल्पिक व्यवस्था किये ही मात्र नोटिस जारी कर अपना पल्ला झाड़ ले। जिस समय जिला प्रशासन द्वारा यह कार्यवाही अमल में लाई जा रही थी तो उस समय नगर निगम के सत्ता पक्ष के मेयर दुकानदारों के पक्ष में खड़े नजर आए। जबकि प्रशासन की योजना बिना नगर निगम के संज्ञान में डाले बनने का तो सवाल ही नहीं उठता है। सत्ता पक्ष के विधायक द्वारा भी आश्वासन ही दिया गया है। जबकि नजूल भूमि पर मालिकाने हक का सवाल चुनाव में प्रमुखता से उठाया जाता है। अब देखना यह है कि एक तरफ की दुकानें हटा करके ही प्रशासन मानता है या दूसरी तरफ की दुकानें भी तोड़ी जाती हैं। व्यापारियों द्वारा प्रशासन को हर तरह का सहयोग करने की बात की जा रही है परन्तु प्रशासन उनकी बात तक सुनने को तैयार नहीं है।

जी-20 जैसे तमाम जो वैश्विक स्तर पर संगठन बने हुए हैं, उनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य साम्राज्यवादी लूट-खसोट को और ज्यादा मुस्तैदी से आगे बढ़ाना है। दुनिया के स्तर पर विकसित साम्राज्यवादी देश वित्तीय पूंजी द्वारा तीसरी दुनिया के देशों व विकासशील देशों के संसाधनों प्राकृतिक व मानवीय दोनों का लगातार दोहन करते हैं। उन देशों पर अपनी मनमानी शर्तें थोप कर उनकी जनता के शोषण को और ज्यादा मुकम्मल बनाने की पूरी योजना बनाते हैं। पूंजीवाद-साम्राज्यवाद केवल और केवल इसी प्रकार की लूट-खसोट की व्यवस्था को आगे बढ़ा सकता है। जबकि इन्हें एक दौर में कल्याणकारी राज्य का चोला ओढ़ने पर मजबूर होना पड़ा था। वह भी इसलिए क्योंकि दुनिया के एक तिहाई हिस्से में मजदूरों का राज समाजवाद था। जहां पर मुनाफे के लिए नहीं बल्कि मानवता के लिए उत्पादन कार्य किए जाते थे। जहां मानवता लगातार आगे बढ़ रही थी और नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे थे। जिससे पूरी दुनिया के पूंजीवादी शासक घबराए हुए थे और अपने यहां समाजवाद कायम ना हो जाए इस डर से कांप रहे थे। जब से दुनिया के अंदर समाजवाद वक्ती तौर पर पराजित हुआ है तो पूंजीवादी-साम्राज्यवादी ताकतों को अपनी लूट को और ज्यादा बढ़ाने को कुछ समय मिल गया। परंतु यह अपने बनाए हुए दुष्चक्र में खुद ही फंसने को अभिशप्त हैं। मंदी का दुष्चक्र लगातार पूंजीवादी शासकों को मजबूर किए हुए है। इसी को टालने के लिए लगातार दुनिया के स्तर पर इस प्रकार की लूट-खसोट की कवायद की जाती रही है। इसी के क्रम में यह कवायद भी है, परंतु पूरी दुनिया के मेहनतकश इन शासकों के दुष्चक्र-तीन तिकडमों व मकड़जाल को समझ रहे हैं और संघर्ष की राह चुने हुए हैं। -दिनेश, रुद्रपुर

आलेख

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तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।