बीते दिनों संसद में जब सांसदों का शपथ ग्रहण चल रहा था तब सभी नेता शपथ के बाद तरह-तरह के नारे लगा रहे थे। भाजपा सांसद जहां ‘जय श्री राम’ व ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे वहीं विपक्षी सांसद ‘जय संविधान’ ‘जय भीम’ आदि नारे लगा रहे थे। इन्हीं नारों के बीच ओवैसी के शपथ के बाद ‘जय फिलिस्तीन’ के नारे ने अचानक काफी सुर्खियां बटोर लीं।
भाजपा के सांसदों ने इस नारे पर जब हंगामा शुरू किया तो प्रोटेम स्पीकर ने इस नारे को कार्यवाही से बाहर कर दिया। मामला यहीं पर शांत नहीं हुआ। भाजपा सांसद संविधान का हवाला देकर इस नारे के लिए ओवैसी की सांसदी छीनने की मांग तक करने लगे। इस मामले में वे इस नियम का हवाला देने लगे कि कोई सांसद अगर शपथ ग्रहण के वक्त विदेशी सत्ता के प्रति निष्ठा व्यक्त करता है तो उसकी संसद सदस्यता छीनी जा सकती है। वे साबित करने में जुट गये कि ‘जय फिलिस्तीन’ नारे का मतलब भारत की जगह फिलिस्तीनी राज्य के प्रति निष्ठा दिखाना है। खैर सरकार इस मामले पर आगे नहीं बढ़ी अन्यथा वह अपनी और जग हंसाई कराती।
कोई सामान्य समझदारी वाला व्यक्ति भी जानता है कि आज जब फिलिस्तीन में इजरायली शासक क्रूर नरसंहार रच रहे हैं तब दुनिया के हर कोने में ‘फिलिस्तीन जिन्दाबाद’ के नारे लगाये जा रहे हैं। इन नारों का कहीं से भी यह तात्पर्य नहीं है कि नारे लगाने वाला अपने देश के बजाय फिलिस्तीन के प्रति आस्था व्यक्त कर रहा है। बल्कि इनका तात्पर्य यह है कि वह इजरायल के द्वारा फिलिस्तीन में किये जा रहे नरसंहार के विरोध में खड़ा है। वह अन्यायी हुकूमत के खिलाफ व न्याय के पक्ष में खड़ा है।
पर मुस्लिमों से नफरत की संघी पाठशाला में पले-बढ़े भाजपाई नेताओं को इस सब से कोई सरोकार नहीं है। उनके लिए तो यही गुनाह है कि एक मुस्लिम व्यक्ति पीड़ित मुस्लिम देश का समर्थन करे। और वे इस गुनाह की सजा देने पर उतारू हो गये। इस प्रक्रिया में वे यह भी भूल गये कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र फिलिस्तीन के समर्थन में रही है। कि भारत द्विराष्ट्र समाधान का पक्षधर रहा है।
दरअसल मोदी सरकार ने फिलिस्तीन समर्थन की नीति को महज कागजों में बदलना छोड़ अन्यथा पूरी तरह बदल दिया है। अब वह खुलकर इजरायल के साथ खड़ी हो चुकी है। बीते दिनों भारत का इजरायल को हथियार भेजना इसी बात की पुष्टि करता है कि फिलिस्तीनी महिलाओं-बच्चों के कत्लेआम में भारतीय शासक भी भागीदार बन रहे हैं। ऐसे में संसद में ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा ऐसी हुकूमत कैसे बर्दाश्त कर सकती थी।
यहां अन्य विपक्षी सांसदों खासकर वामपंथी सांसदों का व्यवहार भी गौरतलब है। संसदीय वामपंथी यद्यपि सड़कों पर फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं पर संसद में ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगाने से उन्होंने भी परहेज किया। अगर वे यह हिम्मत करते तो संघ-भाजपा के नेताओं को करारा जवाब होता। उन्होंने इस नारे को कार्यवाही से बाहर करने का भी विरोध तक नहीं किया। स्पष्ट है कि संसद का सुख उन्हें फिलिस्तीन से अधिक प्यारा हो गया है।
संसद भले ही ‘जय फिलिस्तीन’ नारे से कितना ही परहेज करे दुनिया भर की मेहनतकश जनता फिलिस्तीन के साथ खड़़ी है। वह बार-बार फिलिस्तीन जिन्दाबाद के नारे लगाती रहेगी। वह यह तब तक करेगी जब तक फिलिस्तीन को उसका हक मिल नहीं जाता। जरूरत पड़ेगी तो वह संसद के भीतर घुस कर भी यह नारा लगायेगी।
‘जय फिलिस्तीन’ से इतनी बेचैनी क्यों?
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