पंतनगर/ दिनांक 30 अक्टूबर 2023 को छुट्टी के दिन बिना मजदूरी के काम से मना करने पर प्रजनक बीज उत्पादन केंद्र (पंतनगर वि.वि.) के अफसर द्वारा कुछ मजदूरों को काम से बिठा दिया गया। अफसर की इस हरकत से केन्द्र के गुस्साए मजदूरों ने काम बंद कर दिया। बैठाये गये मजदूरों की कार्यबहाली करने के बाद ही वे काम पर लौटे।
मालूम हो कि 28 अक्टूबर 2023 को वाल्मीकि जयंती अवकाश के दिन प्रभारी अधिकारी द्वारा कुछ ठेका मजदूरों को काम पर बुलाया गया था। उस दिन की मजदूरी न देकर क्षतिपूर्ति अवकाश दिया जाना था। मजदूरों ने बिना मजदूरी के काम करने से मना कर दिया जिससे अफसर द्वारा 5 मजदूरों को काम से बैठा दिया गया। जिससे गुस्साए एल. खंड एवं बीज उत्पादन केंद्र दोनों ब्लाकों के ठेका मजदूरों ने सामूहिक रूप से काम बंद कर दिया।
यह भी विदित हो कि विश्वविद्यालय में कई वर्षों से लगातार कार्यरत ठेका मजदूरों को श्रम कानूनों द्वारा देय अवकाश, बोनस, बीमा, ग्रेच्युटी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया है। नियमानुसार माह की हर 7 तारीख तक वेतन भुगतान किया जाना चाहिए। परन्तु मजदूरों को कभी समय से वेतन भुगतान नहीं किया जाता। माह में 20 कार्य दिवसों का वेतन भुगतान किया जा रहा है। यदि किसी माह में सरकारी छुट्टी पड़ गई तो उसका भी वेतन काट दिया जाता है। आवश्यक काम कराने के बाद मजदूरी नहीं उसके एवज में अवकाश दिया जाता है। इनसे काम तो 26/27 दिन कराया जा रहा है पर माह में 15/20 कार्य दिवसों का ही वेतन भुगतान किया जा रहा है। भयंकर महंगाई में पूरे माह काम करवाना और फिर उसका वेतन न देकर मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय के आदेश होने के बावजूद विभाग में लोहार की भी नियुक्त नहीं की गई है जिससे मजदूर फावड़े, दरांती, खुरपी में धार लगवा सकें। विगत वर्ष कीटनाशक छिड़काव में कई मजदूर बेहोश हो गए थे इसके बावजूद विभाग द्वारा मास्क, साबुन, सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय द्वारा आदेशों का उल्लंघन कर मजदूरों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है जिसको लेकर ठेका मजदूर कल्याण समिति द्वारा लम्बे समय से मांग की जा रही है जिसकी कोई सुनवाई नहीं की जा रही है। इसी से नाराज मजदूरों ने सुबह काम बंद कर दिया था। विश्वविद्यालय प्रशासन में हड़कंप मच गया। मजदूरों के आंदोलन के बाद एस.पी.सी. डायरेक्टर और सुरक्षा अधिकारी व मजदूरों के बीच हुई वार्ता में पांचों मजदूरों को काम पर रखने और माह में 26/27 दिन कार्य देकर, कार्य दिवसों के वेतन भुगतान के लिए आवश्यक कार्यवाही के आश्वासन पर ही मजदूर काम पर लौटे। -पंतनगर संवाददाता
काम बंद कर आंदोलन के दम पर मजदूरों ने कार्य बहाली कराई
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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।
आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।