खिरिया बाग (आजमगढ़) में किसान-मजदूर महापंचायत

आजमगढ़/ पूंजीपति वर्ग की सबसे बड़ी हितैषी भाजपा की केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें लगातार किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, कानून व योजनायें बनाने और उन्हें लागू करने में लगी हुयी हैं। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार आजमगढ़ के मंदुरी हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में बदलने के लिए किसानों की जमीन व मकान का जबरन अधिग्रहण किया जाना है। उसमें लगभग 4000 मकान आते हैं, जिन्हें गिराये जाने की योजना है। इन मकानों में बड़ी संख्या में भूमिहीनों के मकान शामिल हैं; जिनके पास आशियाने के अलावा अन्य कोई सम्पत्ति नहीं है। यही कारण है कि जमीन व मकान के जबरन अधिग्रहण के खिलाफ किसानों और मजदूरों का संयुक्त आंदोलन चल रहा है। 13 अक्टूबर 2022 से खिरियाबाग में लगातार धरना चलाया जा रहा है।

5 मार्च को खिरिया बाग में आंदोलन को मजबूती प्रदान करने के मकसद से किसान-मजदूर महापंचायत का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय मजदूरों-किसानों के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के अनेकों किसान व मजदूर संगठनों के कार्यकर्ता शामिल हुए। पंचायत में बलिया, मऊ, देवरिया, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, गोरखपुर, जौनपुर, अम्बेडकर नगर जिलों से संयुक्त किसान मोर्चा बलिया, क्रांतिकारी किसान यूनियन, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, किसान संग्राम समिति, मेहनतकश मुक्ति मोर्चा, किसान विकास मंच, किसान मजदूर परिषद, खेत मजदूर-किसान संग्राम समिति, नवजनवादी लोक मंच, किसान समता समिति, किसान एकता समिति, अ.भा.क्रांतिकारी किसान सभा, सं किसान खेत मजदूर संघ, अ.भा.किसान खेत मजदूर संगठन, अ.भा.किसान फेडरेशन राष्ट्रवादी जनवादी मंच, जनवादी किसान सभा के प्रतिनिधियों व कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। मुख्य वक्ता के बतौर क्रा.किसान यूनियन के साथी व सं.कि.मोर्चा के कोआर्डीनेशन कमिटि के का.दर्शनपाल ने बात रखी। अध्यक्षता इंकलाबी मजदूर केन्द्र के राम जी सिंह ने की।

किसान-मजदूर एकजुटता पर जोर देने, दोस्तों-दुश्मनों की पहचान करके, जाति के नाम पर फूट डाल कर आंदोलन को कमजोर करने की साजिश के खिलाफ लड़ने की बात वक्ताओं ने रखी। साथ ही मजदूरों-किसानों की दुश्मन व पूंजीपतियों के हित में काम करने वाली राजनीतिक पार्टियां व उनके भ्रष्ट नेताओं से सावधान रहने की बात सभा में रखी गयी। -आमजगढ़ संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।