पेज़र बम : इज़रायल-हिज़बुल्ला के बीच युद्ध सरीखे हालात

पेज़र बम : इजराइल-हिज़बुल्ला के बीच युद्ध सरीखे हालत 

बीते दिनों लेबनान-सीरिया में एक साथ हजारों पेज़रों के धमाके के साथ फटने की घटना ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। 17 सितंबर को इस पेजर बम की घटना में 12 लोगों के मारे जाने व लगभग 3000 के घायल होने की खबर है। इसके अगले दिन 18 सितंबर को अन्य वायरलेस उपकरणों में विस्फोट से लेबनान में और 30 लोगों के मरने व करीब 750 लोगों के घायल होने की खबर आई। इन हमलों में ज्यादातर हिज़बुल्ला लड़ाके शिकार बनाए गए हैं। हालांकि लेबनान के आम जन-बच्चों के साथ ईरान के लेबनान में राजदूत भी इन हमलों में शिकार बने हैं। ईरानी राजदूत के साथ सैकड़ों लोगों की एक आंख की रोशनी चली गई है। इसके बाद इजरायल व हिज़बुल्ला के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। हिज़बुल्ला के हमलों के चलते गोलन पहाड़ियों से इज़राइल को करीब 100000 लोगों को हटाना पड़ा है। हमलों में इजरायल के कई सैनिक मारे गए हैं। इज़राइल ने पलटवार कर सैकड़ों में मिसाईलें लेबनान में बरसा कर 500 से अधिक लोगों को मार डाला है। इजरायल-हिज़बुल्ला के बीच युद्ध सरीखे हालात पैदा हो गए हैं। 

लेबनान में हिज़बुल्ला लड़ाके सालों से मोबाइल छोड़ पेजर का इस्तेमाल आपसी संदेश आदान-प्रदान के लिए करते रहे हैं। क्योंकि उनका मानना था कि मोबाइल से उनकी बातचीत व उनकी स्थिति पहचाना बेहद आसान है पर पेजर के संदेश व स्थिति नहीं ढूंढी जा सकती। अब पेजर व अन्य वायरलेस उपकरणों में विस्फोट ने न केवल उनके आगे बल्कि दुनिया भर के उन सरीखे लड़ाकों के आगे नई चुनौती खड़ी कर दी है। 

अभी तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ है कि पेजर व वायरलैस उपकरणों में विस्फोट उनके अंदर पहले से छुपे बम को सक्रिय करके किया गया है या किसी संदेश के जरिए बैटरी को ही बम में बदलकर किया गया है। बताया जा रहा है कि ताइवान में बने पेजर हिजबुल्ला के पास पहुंचने से पहले इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के हाथों में पहुंच गए थे जिसने उन पेज़रों में 5-20 ग्राम के विस्फोटक प्लांट कर दिए। हालांकि इज़राइल ने इन विस्फोटों में अपना हाथ होने से इनकार किया है। 

वजह जो भी हो, इतना अब स्पष्ट हो चुका है कि आधुनिक संचार का कोई भी उपकरण पेज़र, वायरलैस या मोबाइल आज सुरक्षित नहीं है और षडयंत्र कर इन्हें जासूसी के साथ बम-हथियार में बदला जा सकता है। शासक इनकी निगरानी कर टारगेटेड हमले कर सकते हैं। यह सब सभी तरह के लड़ाकों के आगे नई चुनौती पेश कर रहा है। साथ ही यह व्यापार के जरिए एक देश से दूसरे देश जाने वाले पुर्ज़ों-मोबाइल-कंप्यूटर-लैपटॉप-पेजर सबके प्रति नए तरीके की शंकाओं को भी जन्म दे रहा है। अभी तक इन उपकरणों के माध्यम से दूसरे देश की जासूसी के आरोप लगते थे अभी यह स्पष्ट हो चुका है कि यह दूसरे देश पर हमले का भी जरिया बन सकते हैं।

फिलहाल पेजर-वायरलैस हमलों के बाद इजरायल व हिजबुल्ला का तनाव काफी बढ़ गया है। वैसे यह तनाव इजरायल द्वारा फिलिस्तीन पर ढाये नरसंहार की शुरुआत से ही चल रहा है। हिज़बुल्ला फिलिस्तीनी आवाम के साथ खड़े हो इसराइल पर हमले करता रहा है। अब यह सब युद्ध स्तर तक पहुंच गया है। क्रूर इजरायली शासकों के समर्थन में खड़े अमेरिकी साम्राज्यवादी इन सारे तनावों के पीछे मुख्य दोषी ताकत हैं। अपनी आर्थिक हैसियत के कमजोर पड़ने पर अमेरिकी साम्राज्यवादी इस पूरे इलाके में युद्धों-हिंसा-हत्या आदि के जरिए अपना वर्चस्व बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। उनके हाथ निर्दोष फिलिस्तीनियों के खून में सने हैं। उनकी खून की प्यास उन्हें ईरान-लेबनान-सीरिया हर ओर नए क़त्लेआम रचने की ओर बढ़ा रही है अफसोस की बात यह है कि भारतीय शासक ऐसे हत्यारे इजरायल-अमेरिका के साथ गलबहियाँ कर अपने हाथ भी खून से सान रहे हैं।

आलेख

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

/philistini-pratirodha-sangharsh-ek-saal-baada

7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।