पोर पोर में जहर .....

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब रेलवे के पुलिसकर्मी चेतन ने चलती ट्रेन में अपने अधिकारी और मुस्लिम समुदाय के तीन लोगों की हत्या कर दी थी। तब उस पुलिसकर्मी को बचाने के लिए उसकी मानसिक बीमारी का बहाना बनाया गया था। लेकिन अब मुजफ्फरनगर में 25 अगस्त को हुई घटना ने इस बात को और पुष्ट कर दिया है कि इन घटनाओं के लिए समाज में साम्प्रदायिकता की जहरीली फिजा जिम्मेदार है।
    
दरअसल 25 अगस्त को मुजफ्फरनगर जिले के नेहा पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले एक मुस्लिम बच्चे की उसके साथ पढ़ने वाले बच्चों से पिटाई करवाई गयी। बच्चे ने 5 का पहाड़ा याद नहीं किया था। जिसकी सजा के फलस्वरूप उसकी अध्यापिका ने उसे साथ के बच्चों से पिटवाया। आये दिन बच्चों को सजा के रूप में शिक्षकों द्वारा नए-नए तरीके अपनाये जाते हैं जो उनकी क्रूर मानसिकता को दर्शाते हैं। लेकिन इस बच्चे को मुस्लिम होने के कारण सजा के रूप में उसके साथ के बच्चों से पिटवाना विकलांग मानसिकता को भी दर्शाता है। यह मासूम बच्चों के मन में दूसरे समुदाय के प्रति घृणा पैदा करने को दिखाता है। यह ठीक वैसे ही जैसे हिटलर के राज में जर्मनी में स्कूल से ही बच्चों के मन में यहूदियों के प्रति घृणा पैदा की जाती थी।
    
बच्चा चूंकि मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखता था इसलिए उसे 5 का पहाड़ा याद न करने के लिए जो सजा दी गयी वह समाज के पोर पोर में फैल रहे जहर को दर्शाता है। उस अध्यापिका ने अपने अंदर के इस जहर को, जो मुस्लिम समुदाय से नफरत करने के चलते पैदा हुआ था, निकालकर सबके सामने रख दिया और बताने की कोशिश की कि चेतन ने मुस्लिम लोगों की हत्या क्यों की। साथ ही भारत में घर-घर में चेतन बनने की प्रक्रिया को भी दिखाया। 
    
तृप्ति त्यागी नाम की अध्यापिका ने मुस्लिमों के प्रति इस घृणा को इस तरह व्यक्त किया ‘‘मैंने तो डिक्लेयर कर दिया है जितने भी मुस्लिम बच्चे हैं उनको मारते चले जाओ’’। तृप्ति त्यागी की इस घृणित मानसिकता को सही ठहराने का काम उसके साथ के एक अन्य अध्यापक ने भी किया। जब इस घटना का वीडिओ वायरल हो गया तब तृप्ति त्यागी ने तमाम बहाने बनाने की कोशिश कर बच निकलने की कोशिश की। अपने आप को विकलांग बता सहानुभूति बटोरने की कोशिश की लेकिन वह वास्तव में मानसिक रूप से विकलांग थी और यह विकलांगता मुस्लिम समुदाय के प्रति भारी घृणा से पैदा हुई थी।
    
बच्चे के पिता का नाम इरशाद है। इस घटना के बाद उन्होंने अपने बच्चे को स्कूल से निकाल लिया है और उस अध्यापिका ने समझौते के फलस्वरूप बच्चे की फीस लौटा दी है। बच्चे के पिता ने कोई कार्यवाही करने से इंकार कर दिया है। 
    
क्या यह घटना इतनी छोटी है कि बच्चे की फीस लौटा देने से ख़त्म हो जाएगी। या बच्चे के पिता द्वारा कोई कार्यवाही न करना यह माना जायेगा कि वे फीस वापिस लेकर संतुष्ट हैं। अगर कानून की बात की जाये तो इस घटना पर अध्यापिका पर 153 ए के तहत कार्यवाही हो सकती है। इस धारा के तहत समाज में धर्म और जाति के आधार पर विद्वेष की भावना फैलाना अपराध माना गया है। इसी तरह राइट टू एजुकेशन के तहत धारा 17 के तहत कार्यवाही की जा सकती है। ऐसे ही जुवेनाइल जस्टिस के तहत भी कार्यवाही की जा सकती है। लेकिन व्यवहार में यह सब नहीं होगा। 
    
इस घटना ने भारतीय समाज की उस गति को दिखाया है जिसे आज के हिन्दू फासीवादी शासक प्रदान कर रहे हैं। इस घटना में जहां स्कूल को शिक्षा विभाग ने नोटिस भेजा है वहीं शिक्षिका की गिरफ्तारी तक नहीं की गयी है। हां सरकार ने सोशल मीडिया से इस घटना के विरोध की पोस्ट जरूर रुकवा दी है। घटना का वीडियो शेयर करने पर अल्ट न्यूज के जुबेर पर उ.प्र. सरकार ने मुकदमा कायम कर दिया है। शिक्षिका को बचाने या मामले को रफा दफा करने में शासन-प्रशासन से लेकर सरकार तक सभी एकजुट हैं। सरकार ही जब समाज में जहर फैला रही हो और घृणित मानसिकता के लोगों का बचाव कर रही हो तो इसका अंजाम बेहद घातक साबित होगा। यह रोज ब रोज की जिंदगी में कभी चेतन जैसे लोगों द्वारा मुस्लिम लोगों की चुन-चुन कर हत्या के रूप में दिखेगा तो कभी मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार के रूप में। कभी यह रामनवमी पर मुस्लिमों के प्रति हिंसा के रूप में दिखेगा तो कभी मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने के रूप में। अमृतकाल में इसी तरह का जहर समाज के पोर-पोर में भरा जा रहा है।
 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

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