राम प्राण प्रतिष्ठा के बाद ज्ञानव्यापी

22 जनवरी को अभूतपूर्व गाजे-बाजे के साथ राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम प्रधानमंत्री ने सम्पन्न कर दिया। उत्तर भारत में ‘जो राम को लाये हैं हम उनको लायेंगे’ का भीषण शोर इस हकीकत को बयां कर रहा था कि राम को संघ-भाजपा ने अगले चुनाव का स्टार प्रचारक बना लिया है। संघी बेशर्मी से घोषित कर रहे हैं कि वे राम को लाये हैं इसलिए जनता चुनाव में उनको लायेगी। यानी कि राम मंदिर उनके लिए चुनाव में वोट हासिल करने का राजनीतिक मुद्दा है। 
    
22 जनवरी के सारे हो हल्ले के बीच संघी लम्पटों के जिन कारनामों पर पूंजीवादी मीडिया ने ज्यादा गौर नहीं किया, अगर एक निगाह उन पर डाल ली जाये तो यह और स्पष्ट हो जाता है कि राम के नाम पर ये वास्तव में क्या करना चाहते हैं। 

- मुंबई के मीरा रोड इलाके में संघी 21 जनवरी को ‘राम राज रथ यात्रा’ निकाल रहे थे। यहां उकसावेपूर्ण नारेबाजी के बाद हिन्दू-मुस्लिम गुटों के बीच टकराव व पत्थरबाजी हुई। अगले दिन चुनिंदा मुस्लिम दुकानों पर नगर निगम ने बुलडोजर अवैध निर्माण ढहाने के नाम पर चलवाया। शाम होते-होते संघी लम्पट नाम पूछ-पूछ कर मुस्लिमों पर हमला-मारपीट करने लगे। 

- 21 जनवरी को मध्य प्रदेश के झाबुआ में संघी लम्पट धार्मिक नारेबाजी करते हुए एक चर्च पर चढ़ गये और वहां भगवा ध्वज लगा दिया। सोशल मीडिया पर इस कृत्य का वीडियो भी वायरल किया जा रहा है।

- मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के पटना इलाके में संघी लम्पटों की भीड़ एक मस्जिद के आगे बैठकर हनुमान चालीसा बजा रही थी साथ में भगवा झण्डे लहरा नारेबाजी भी कर रही थी। इस घटना का वीडियो भी वायरल हुआ है। 

- 22 जनवरी को उ.प्र. के संत कबीरनगर में एक शोभा यात्रा निकाली गयी। इस दौरान एक मस्जिद के गेट पर चढ़कर भगवा फहराया गया। 

- 22 जनवरी को शाम लखनऊ हजरतगंज थाना क्षेत्र के नरही तिराहे पर संघी लम्पटों ने अश्लील व गालियों से भरे गाने सार्वजनिक तौर पर बजाये।

- तेलंगाना में 22 जनवरी को भगवा ध्वज के अपमान के नाम पर एक युवक को संघी लम्पटों ने नग्न कर घुमाया और उसके प्राइवेट पार्ट्स पर आग लगाने की कोशिश की। पुलिस ने युवक को तो जेल भेज दिया पर संघी लम्पटों पर कोई कार्यवाही नहीं की।

- बिहार के दरभंगा में 22 जनवरी को जुलूस के दौरान एक कब्रिस्तान में आग लगा दी गयी। पुलिस एक पटाखे के कब्र्रिस्तान में जाने की बात कर खुद अपराधियों को बचाने में जुटी है। 
    
(सभी घटनाओं का स्रोत बीबीसी)
    
उपरोक्त घटनायें दिखलाती हैं कि राम मंदिर उन्माद के बहाने संघी लम्पट कैसे समाज को दंगों की आग में झोंकने को उतावले होते रहे हैं। ज्यादातर मामलों में पुलिस की कार्यवाही दिखाती है कि वह कैसे लम्पटों को बचाने में जुटी है। इन घटनाओं का लक्ष्य यही था कि मुस्लिमों को भड़काकर यह साबित किया जाए कि वे राम मंदिर के विरोधी हैं और इसके बाद इसे हिन्दू समुदाय के ध्रुवीकरण में इस्तेमाल किया जाए। अभी मुस्लिम समुदाय के अपमान होने के बावजूद आपा न खोने के चलते संघी सफल नहीं हुए हैं। पर आने वाले दिनों में ये सफल हो सकते हैं। 
    
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के निपटते ही ज्ञानव्यापी परिसर की ए एस आई रिपोर्ट सार्वजनिक होने से यह तथ्य उजागर किया जाने लगा कि यह मस्जिद भी कभी कोई मंदिर तोड़ बनाई गयी थी। अब तत्काल ही विश्व हिन्दू परिषद ने इस मस्जिद को ढहा मंदिर बनाने की मांग कर डाली।
    
ज्ञानव्यापी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी संघी सरकार के अनुरूप कार्यवाही की। 90 के दशक का धार्मिक स्थलों की सुरक्षा से जुड़ा अधिनियम सभी धार्मिक स्थल जिस हाल में है उनको उसी हाल में बनाये रखने की बात करता है। पर सुप्रीम कोर्ट ने इसके बावजूद ज्ञानव्यापी परिसर में सर्वे की अनुमति दे दी। अब जब कोर्ट के आदेश से ही यह सर्वे सार्वजनिक हो गया है तो संघी ताकतों को राम मंदिर सरीखा नया मुद्दा हाथ लग गया है। 
    
भारतीय इतिहास में अनगिनत बौद्ध मठों को तोड़ मंदिर व ढेरों मंदिर तोड़ मस्जिदें बनायी गयी हैं। ऐसे में अतीत के राजाओं के इन कृत्यों को अगर कोई दुरूस्त करने चलेगा तो ज्यादातर मंदिर-मस्जिद ढहाने पड़ेंगे। इसीलिए आज इस तरह का काम बेमतलब का और बेवजह टकराव पैदा करने वाला होगा। पर चूंकि संघ-भाजपा की सारी राजनीति ही मुस्लिम विरोध पर टिकी है इसलिए वे ऐसे सारे गड़े मुर्दों को हवा दे रही है। 
    
ज्ञानव्यापी मसले को उछालने के साथ ही संघी फासीवादी न केवल हिन्दू समुदाय में धु्रवीकरण कर रहे हैं बल्कि वे हिन्दू आबादी को समस्त विवेक व चिंतन से रहित फासीवादी भीड़ में भी बदल रहे हैं। कोई भी तार्किक इंसान यही कहता कि ऐसा सिलसिला कितनी इमारतों तक चलेगा? कि यह सारी कवायद थमनी चाहिए। कि यह बेवजह का मुस्लिम समुदाय पर हमला बोला जाना बंद होना चाहिए। पर फासीवादी भीड़ उस मानसिकता की बना दी जाती है जो संघी कुतर्क पर नतमस्तक हो समस्त विवेक खो देती है। 
    
बड़ी पूंजी के हित में कार्यरत हिन्दू फासीवादी जहां हिन्दू समुदाय को फासीवादी भीड़ में बदल रहे हैं वहीं दूसरी ओर पूंजीपतियों के हित में इसी भीड़ की रोजी-रोटी पर हमला बोल रहे हैं। बेकारी-महंगाई की मार बढ़ा रहे हैं। रोटी के प्रश्न पर वे भीड़ की धार्मिक अंधश्रद्धा को बढ़ावा दे रहे हैं। जनता यह देखने में असफल है कि ‘जो राम को लाये हैं वही हमारी रोटी चुरा रहे हैं।’ जरूरत है कि यह सच्चाई जनता में स्थापित कर उन्हें फासीवादी भीड़ में बदलने से रोका जाए।  

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।