मोदी जी ! मणिपुर में (गृह) युद्ध कब थमेगा
पिछले वर्ष मई माह में शुरू हुआ मैतेई तथा कूकी समुदायों के बीच खूनी संघर्ष आज तक नहीं थम सका। मोदी जी स्वयं रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रुकवाने के नाम पर दोनों द
पिछले वर्ष मई माह में शुरू हुआ मैतेई तथा कूकी समुदायों के बीच खूनी संघर्ष आज तक नहीं थम सका। मोदी जी स्वयं रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रुकवाने के नाम पर दोनों द
लोकसभा चुनाव में हुई बुरी गत से संघी मण्डली मानो घबरा गयी है। शीर्ष से लेकर नीचे तक के कारकून इस वक्त बौखलाये नजर आ रहे हैं। वे अपने से दूर होती जा रही जनता को फिर से अपन
बांग्लादेश में लंबे समय से आरक्षण विरोधी आंदोलन और प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अराजकता का माहौल बना हुआ है। क्योंकि ये आंदोलन केवल आरक्षण तक सीमित नहीं रहा ब
जुलाई के महीने के साथ ही उत्तर भारत की सड़कों पर एक विभीषिका शुरू होती है। इस विभीषिका को कांवड़ यात्रा कहा जाता है। भगवा कपड़ों में उत्तर भारत के राजमार्गों पर चल रहे ये का
पुरोला, पिछले साल राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा था। ऐसा तब हुआ जब, मई माह में संघ परिवार ने फर्जी ‘‘लव जिहाद’’ के मुद्दे के इर्द गिर्द पुरोला में ‘‘मुसलमान मुक्त उत्तरा
हाल ही में सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा के साथ ही इसके एजेण्डे को लेकर पूंजीवादी हलकों में तरह-तरह के अनुमान लगाये जाते रहे हैं। इसी बीच सरकार द्वारा ‘
बीते कुछ समय से मोदी सरकार ने लोकतंत्र का जाप बढ़ाते हुए भारत को न केवल सबसे बड़ा लोकतंत्र बल्कि लोकतंत्र की जननी कहना शुरू कर दिया तो सभी इतिहासकार अचम्भे में पड़ गये। वैसे
हिन्दू फासीवादियों की केन्द्रीय सरकार ने भारत के आपराधिक कानूनों को बदलने की घोषणा कर दी है। भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदल
भारत में, मई 2014 से ही मोदी-शाह की अगुवाई में संघ परिवार सत्ता पर काबिज है। इन हिंदू फासीवादियों ने अपने फासीवादी एजेंडे के अनुरूप समाज और संस्थाओं को काफी हद तक ढाला है
अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब रेलवे के पुलिसकर्मी चेतन ने चलती ट्रेन में अपने अधिकारी और मुस्लिम समुदाय के तीन लोगों की हत्या कर दी थी। तब उस पुलिसकर्मी को बचाने के लिए उसक
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को
7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।