नये लेबर कोड्स के विरोध में प्रदर्शन : कानूनों की प्रतियां जलाई गईं

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मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) एवं केंद्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशनों के आह्वान पर मजदूरों ने 23 सितम्बर को काला दिवस के रूप में मनाया और मजदूर विरोधी नये लेबर कोड्स को रद्द किये जाने की मांग की। गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा चार साल पहले 23 सितम्बर, 2020 के दिन ही ये लेबर कोड्स संसद से पारित किये गये थे।
    
फरीदाबाद में इस मौके पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा लेबर कोड्स की प्रतियों को आग के हवाले किया गया। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि ये लेबर कोड्स मजदूरों को आज से 100 साल पुरानी अधिकार विहीनता की स्थितियों में धकेलने की साजिश है जिसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिये।
    
गुड़गांव में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा सूरत नगर मजदूर बस्ती में लेबर कोड्स की प्रतियों का दहन किया गया। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि 23 सितम्बर, 2020 को फासीवादी मोदी सरकार ने पूंजीवादी लोकतंत्र की औपचारिकताओं को भी दरकिनार कर संसद से इन लेबर कोड्स को पारित कर दिया था। उदारीकरण की नीतियों के तहत सरकारें मजदूरों को अधिकार विहीन करने में जुटी हैं और ‘‘रखो और निकालो’’ (हायर एंड फायर) की छूट पूंजीपतियों को दे रही हैं। मजदूरों को वर्गीय एकता कायम कर इसका विरोध करना होगा।
    
काशीपुर में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा उप जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रेषित कर नये लेबर कोड्स को तत्काल रद्द करने की मांग की गई। क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन एवं प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के प्रतिनिधियों ने भी इसमें भागीदारी की। ज्ञापन में कहा गया है कि इन लेबर कोड्स में मजदूरों के यूनियन बनाने और हड़ताल पर जाने के संवैधानिक अधिकारों पर हमले किये गये हैं; फिक्स्ड टर्म एम्प्लायमेंट के तहत स्थायी रोजगार के अधिकार को छीना गया है; महिला मजदूरों से भी रात की पाली में काम कराने का अधिकार पूंजीपतियों को सौंप दिया गया है और आठ घंटे के कार्यदिवस के कानूनी अधिकार को छीनने की साजिश की गई है।
    
रामनगर में विभिन्न संगठनों- इंकलाबी मजदूर केंद्र, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, किसान संघर्ष समिति, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, समाजवादी लोक मंच और परिवर्तनकामी छात्र संगठन के प्रतिनिधियों द्वारा बॉह पर काली पट्टी बांधकर उप जिलाधिकारी कार्यालय पर विरोध-प्रदर्शन किया गया। साथ ही, उप जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रेषित किया गया। ज्ञापन में नये लेबर कोड्स को आजाद भारत में मजदूरों पर किया गया सबसे बड़ा हमला बताया गया और इन्हें रद्द करने एवं मजदूर पक्षधर श्रम कानून बनाने की मांग की गई। साथ ही यह भी मांग की गई कि उत्तराखंड के सभी उद्योगों एवं संस्थानों में सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन दिया जाना सुनिश्चित किया जाये।
    
रुद्रपुर में गांधी पार्क में लेबर कोड्स की प्रतियों को आग के हवाले किया गया। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को ख़त्म कर 4 श्रम संहितायें (लेबर कोड्स) बनाकर मजदूरों के ऊपर बड़ा हमला बोला गया है। इनके तहत मोदी सरकार ने देशी-विदेशी पूंजीपतियों को मजदूरों का निर्मम शोषण करने की छूट दे दी है।
    
श्रमिक संयुक्त मोर्चा के बैनर तले हुये इस विरोध-प्रदर्शन में मासा, एक्टू, इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, सी पी आई, इंटरार्क मजदूर संगठन पंतनगर एवं किच्छा, लुकास टीवीएस मजदूर संघ, डाल्फिन मजदूर संगठन, सनसेरा श्रमिक संगठन, नेस्ले कर्मचारी संगठन, बजाज मोटर्स कर्मकार यूनियन, राकेट रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ, जायडस कान्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन इत्यादि के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
पंतनगर में इंकलाबी मजदूर केंद्र, ठेका मजदूर कल्याण समिति एवं प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा शहीद स्मारक पर लेबर कोड्स की प्रतियों का दहन किया गया। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि उदारीकरण की नीतियों के तहत श्रम कानून पहले ही कागजी बनकर रह गये हैं और असल में लागू नहीं हो रहे हैं और अब नये लेबर कोड्स के तहत पूंजीपतियों की मनमानी मुराद पूरी कर दी गई है।               -विशेष संवाददाता

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी। 

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।