दक्षिणपंथी ताकतें पूरी दुनिया के पैमाने पर उभार पर हैं। शासक वर्ग का इनको समर्थन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और इस समर्थन पर सवार हो अपने विभाजनकारी मुद्दों के जरिये ये जनता में भी अपनी पैठ बढ़ाती जा रही हैं। उदारीकरण-वैश्वीकरण के दौर में परंपरागत तथाकथित वामपंथी-मध्यमार्गी पार्टियों का अधिकाधिक दक्षिणपंथी होता रुख इन ताकतों के उभार में अपने ढंग से ही मदद कर रहा है।
अभी हाल में जर्मनी में थुरिमिया और सैक्सोनी राज्य चुनावों में नवफासीवादी पार्टी अल्टरनेटिव फार जर्मनी (ए एफ डी) को भारी सफलता मिली। थुरिगिया प्रांत में इसे 32.8 प्रतिशत मत व सैक्सोनी में 30.6 प्रतिशत मत मिले। थुरिंगिया में राज्य संसद में यह सबसे मजबूत गुट है तो सैक्सोनी में यह सीडीयू से महज एक सीट पीछे है।
वहीं अगर फ्रांस की बात करें तो राष्ट्रपति मैक्रां चुनाव के दो माह बाद तक न्यू पापुलर फ्रंट (सबसे बड़े दल) के नेता को प्रधानमंत्री बनाने को तैयार नहीं हुए। अंततः 5 सितम्बर को उन्होंने एक दक्षिणपंथी दल एल आर (द रिपब्लिकन्स) के नेता मिशेल बर्नियर के प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया।
गौरतलब है कि फ्रांस के चुनावों में वामपंथी न्यू पापुलर फ्रंट को 182 सीटें, मैक्रां के एनसेंबल गठबंधन को 163 सीटें और अति दक्षिणपंथी फासीवादी नेशनल रैली को 143 सीटें मिली थीं। इन चुनावों के दूसरे राउण्ड में नेशनल रैली की जीत को रोकने के लिए शेष दोनों गठबंधनों ने कुछ सीटों पर गठजोड़ भी किया था। 577 सदस्यीय संसद में द रिपब्लिकन्स को लगभग 40 सीटें मिली थीं। वोट प्रतिशत के रूप में दोनों राउण्डों में नेशनल रैली के गठबंधन को सर्वाधिक वोट मिले थे। इस तरह नेशनल रैली को किसी तरह सबसे बड़ा दल बनने से रोका गया था।
अब मैक्रां ने जिस एल आर पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री बनाया है वह बहुमत बगैर नेशनल रैली के समर्थन के नहीं हासिल कर सकता क्योंकि न्यू पापुलर फ्रंट ने उसे समर्थन न देने की पहले ही घोषणा कर दी है। नेशनल रैली ने नयी सरकार के घोषणापत्र को देखकर सरकार को समर्थन देने या न देने की बात कही है। उम्मीद लगायी जा रही है कि मैक्रां के एनसेंबल के साथ फासीवादी नेशनल रैली नयी सरकार को समर्थन दे देगी।
इस तरह फ्रांस में फासीवादी ताकतों के समर्थन पर टिकी सरकार कायम होगी और इसे कायम करने में मुख्य भूमिका खुद राष्ट्रपति मैक्रां की है। यह दिखाता है कि फ्रांस का पूंजीपति वर्ग फासीवादी सरकार को स्वीकारने के बेहद करीब पहुंच चुका है।
जर्मनी, फ्रांस दोनों जगह सैन्यीकरण, अप्रवासी विरोध, रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन का समर्थन, अंधराष्ट्रवाद आदि मसलों पर सभी पार्टियां एक सा रुख अपना रही हैं जिसका लाभ उठा फासीवादी दल आगे बढ़ रहे हैं।
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