समूचे पश्चिम एशिया में युद्ध फैलाने का प्रयास

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हिजबुल्ला के मुख्य नेता नसरुल्लाह की हत्या

यहूदी नस्लवादी इजरायली राज्य गाजा में व्यापक नरसंहार और महाविनाश करने के बावजूद अपने घोषित उद्देश्य - हमास का सफाया और बंधकों की रिहाई - हासिल करने में अभी तक पूर्णतया असफल रहा है। अब उसने लेबनान में हमले का विस्तार कर दिया है। पहले उसने पेजर और वाकी टाकी के माध्यम से बड़े पैमाने पर लेबनान में लोगों को मारा, अंधा किया और घायल किया। इसके बाद उसने राजधानी बेरूत सहित समूचे लेबनान में बमबारी करके नागरिकों की हत्यायें कीं और दक्षिणी लेबनान से नागरिकों को अपनी जान बचाने के लिए उत्तर की तरफ पलायन करने के लिए विवश किया। अब वह दक्षिणी लेबनान पर जमीनी हमला करने की तैयारी कर रहा है। समूचे लेबनान में बमबारी करके उसने हिजबुल्ला के कई सैनिक कमाण्डरों सहित सैकड़ों नागरिकों की हत्यायें की हैं। 
    
27 सितम्बर को इजरायली सेना ने लेबनान की राजधानी बेरूत में बड़े पैमाने पर हवाई हमला किया। ‘‘आपरेशन न्यू आर्डर’’ नामक इस हमले में हिजबुल्ला मुख्यालय को व उसके मुख्य नेता हसन नसरूल्लाह को निशाना बनाया गया। इजरायल ने पहले नसरूल्लाह और उसके बाद में उसकी बेटी जैनब को मार डालने का दावा किया। हिजबुल्लाह मुख्यालय पर 80 टन विस्फोटक गिरा उसने भूमिगत मुख्यालय को नष्ट करने का दावा किया। बेरूत में उसने आम जनता को घर व अस्पताल खाली कर दूसरी जगह जाने पर मजबूर कर दिया है। इजरायल के नसरूल्लाह को मार गिराने के दावों की हिजबुल्लाह ने पुष्टि की है। 
    
हिजबुल्ला ने अपने बयान में कहा कि वह गाजा के समर्थन में और लेबनान की रक्षा में इजरायल से मुकाबला जारी रखेगा। ईरान ने इस हत्या की निन्दा करते हुए नसरुल्लाह के रास्ते को आगे बढ़ाते हुए येरूशलम को स्वतंत्र कराने की बात की है। इराकी प्रधानमंत्री ने इजरायली हत्यारों के सभी सीमा लांघने की बात करते हुए इसे ‘शर्मनाक हमला’ करार दिया और नसरूल्लाह को ‘सत्य की राह पर शहीद’ घोषित किया। हमास ने भी इस हत्या की निन्दा की है। 
    
इजरायली कब्जाकारी सैन्य बलों द्वारा लेबनान पर की गयी व्यापक हिंसा का लक्ष्य सर्वप्रथम यह रहा है कि हिजबुल्ला के संचार नेटवर्क पर हमला करके तथा उसके केन्द्रीय और निर्णायक नेताओं को निशाना बनाकर उसके कमाण्ड और नियंत्रण प्रणाली को व्यापक तौर पर बाधित किया जाए। इसके अलावा, इजरायली यहूदी नस्लवादी हुकूमत की इस व्यापक हमले द्वारा यह कोशिश की गयी है कि हिजबुल्ला पर यह दबाव बनाया जाए कि वह गाजा मोर्चे से पीछे हट जाए। इजरायली कब्जाकारी सत्ता चाहती है कि लेबनान और कब्जे वाले इलाके की सीमा पर उसकी बरतरी कायम हो क्योंकि पिछले एक वर्ष से हिजबुल्ला इसी सीमा के इलाके पर लगातर हमला करता रहा है। इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता भविष्य में होने वाले भीषण युद्ध की जमीन तैयार करने में लगी हुयी है। उसने लेबनान सीमा पर बड़े पैमाने पर अपने सैनिकों की तैनाती कर दी है। अंततः इजरायली सत्ता द्वारा अभी जारी बड़े पैमाने पर हवाई हमलों का उद्देश्य यह रहा है कि प्रतिरोध की धुरी की अन्य शक्तियों को यह संदेश दिया जाए कि यदि वह हिजबुल्ला पर हमला करके उसे कमजोर कर सकता है तो अन्य ताकतें तो हिजबुल्ला के मुकाबले बहुत कमजोर हैं, वह उन्हें आसानी से ठिकाने लगा सकता है। 
    
यह बात सही प्रतीत होती है कि पिछले 10 दिन से ज्यादा समय से इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता द्वारा किये गये आतंकी हमलों और हत्याओं ने लेबनान के दक्षिण में भारी तबाही मचायी है जो आज भी जारी है। इस तबाही में कम से कम 700 लोग मारे गये हैं। निश्चित ही इसका प्रभाव किसी न किसी सीमा तक मनोबल को गिराने वाला होगा। लेकिन हिजबुल्ला ऐसे झटकों के लिए लम्बे समय से तैयारी कर रहा था। लेबनान में बड़े पैमाने पर इजरायली कब्जाकारी सत्ता द्वारा की गयी हत्याओं का उस प्रतिरोध आंदोलन पर कोई बुनियादी फर्क नहीं पड़ेगा जो अपनी शुरूवात से ही गुरिल्ला लड़ाइयां लड़ता रहा है। 
    
इसके उदाहरण इन हमलों के तुरंत बाद हिजबुल्ला द्वारा किये गये जवाबी हमलों में देखे जा सकते हैं। इन हमलों से पहले जहां हिजबुल्ला मुख्यतौर पर सीमा के इलाकों में अपने हमले केन्द्रित किये हुए था। लेकिन इन हमलों के बाद उसने इजरायल के भीतरी इलाकों पर भी अपने ड्रोन और मिसाइल हमले तेज कर दिये हैं। दोनों देशों के हमलों में एक बुनियादी फर्क है। जहां इजरायल अपनी बमबारी और आतंकी हमलों में आम नागरिक आबादी को निशाना बनाता है, वहीं हिजबुल्ला अपने हमलों में मुख्यतः फौजी और राज्य के अंगों को निशाना बनाता है। हिजबुल्ला के जवाबी हमलों में हाइफा बंदरगाह और कई सैन्य ठिकाने रहे हैं। 
    
इजरायली यहूदी नस्लवादी हुकूमत यह तर्क देती है कि हिजबुल्ला ने लोगों के घरों में अपने राकेट और मिसाइलें छिपाकर रखी हैं, इसलिए वे घरों को निशाना बना रहे हैं। यही तर्क देकर उन्होंने गाजापट्टी से फिलिस्तीनी आबादी को उत्तर से पहले हटाकर मध्य इलाके में फिर मध्य इलाके से हटाकर दक्षिणी इलाके में यह कहकर भेजा कि वे स्थान सुरक्षित हैं। लेकिन उसने समूचे गाजा को खंडहरों में तब्दील कर दिया। यही तरीका वे लेबनान में अपना रहे हैं। वे लगातार यह घोषणा कर रहे हैं कि दक्षिणी लेबनान के लोग अपने घरों को खाली करके उत्तर की ओर चले जायें। इस तरह पूरी आबादी को डरा करके वे उत्तर की ओर पलायन करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। लेकिन एक समय तक वे इसमें कुछ सफलता पा सकते हैं इसके बाद प्रतिरोध आंदोलन लेबनानी आबादी को कष्टों को सहने और कब्जाकारी शक्ति का मुकाबला करने के लिए तैयार कर लेगा। 
    
हिजबुल्ला ने तेल अवीव के निकट इजरायली खुफिया एजेन्सी मोसाद के मुख्यालय पर पहली बार बैलिस्टिक मिसाइल दाग कर उसे निशाना बनाया। यह वही मुख्यालय है जहां लेबनान के खिलाफ पेजर और वाकी-टाकी हमलों के लिए जिम्मेदार इजरायली खुफिया बेस है। इसके साथ ही, यमन से हौथी विद्रोहियों ने बैलिस्टिक मिसाइल तेल अवीव पर दागी जिससे इजरायली राजधानी में भारी दहशत का माहौल बन गया। इस मिसाइल के हमले की दहशत से करीब 20 लाख लोग बंकरों में शरण लेने के लिए भागे जिसमें कम से कम 17 लोग घायल हो गये। इसके पहले भी यमन से एक हाइपरसोनिक मिसाइल दागी गयी थी जो 2000 किमी. की दूरी तय करके इजरायली व अमरीकी सुरक्षा प्रणालियों को भेद कर तेल अवीव के पास गिरी थी। यहां यह ध्यान में रखने की बात है कि इजरायली कब्जाकारी सेना के विरुद्ध यमन के हौथी, लेबनान के हिजबुल्ला, गाजापट्टी और पश्चिमी बैंक के फिलिस्तीनी प्रतिरोध संगठनों के लोग, इराक के कताइब हिजबुल्ला और सीरिया के लड़ाकू सभी एक-दूसरे से तालमेल करके हमलों को अंजाम दे रहे हैं। यह परिघटना नयी है। 
    
इस नयी परिघटना ने इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता को चारों तरफ से घेर लिया है और उसकी आतताई आतंकवादी कार्रवाइयों का जवाब लड़ाके एक-दूसरे से तालमेल करके ज्यादा ऊंचे स्तर पर दे रहे हैं।
    
जहां गाजापट्टी से इजरायली कब्जाकारी सेना का एक हिस्सा लेबनान की ओर स्थानांतरित किया गया है, वहीं अब गाजापट्टी में बची हुयी इजरायली सेना पर हमले और तेज हो गये हैं। 
    
इजरायल की यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की सत्ता एक तरफ लेबनान पर जमीनी सैनिक हमले की तैयारी कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ लेबनान में हिजबुल्ला के विरुद्ध लेबनानी सरकार में शामिल अन्य घटकों को भड़काने की कोशिशों में भी लगी रही है। लेकिन वे इसमें भी नाकाम रही है। लेबनान के प्रधानमंत्री ने इजरायल द्वारा की गयी आतंकी कार्रवाई की भर्त्सना की है। और हिजबुल्ला के साथ समूची लेबनानी सरकार और लेबनानी सेना पूरी एकजुटता के साथ इजरायली हमलावरों के विरुद्ध खड़ी हो गयी है।     
    
हिजबुल्ला के लड़ाके भी चाहते हैं कि इजरायल जमीनी हमला करने के लिए लेबनान के भीतर घुसे। अभी तक इजरायल हवाई बमबारी करके, पेजर, वाकी-टाकी और सौर उपकरणों के जरिये विस्फोट करके कार्रवाई करके बच जाता रहा है। यदि उसे लेबनान में हिजबुल्ला को पराजित करना है तो उसे जमीनी लड़ाई में उतरना पड़ेगा। जमीनी लड़ाई पर उतरने के बाद वह लेबनान में भारी नुकसान उठायेगा। इजरायल की असली हकीकत यही है कि वह गाजापट्टी में ही प्रतिरोध संगठनों से सैन्य लड़ाई में फंस गया है। यदि वह लेबनान में जमीनी हमला करने की कोशिश करेगा तो हिजबुल्ला के साथ लड़ाई में और ज्यादा फंस जायेगा। 
    
अभी हाल में अमरीकी साम्राज्यवादियों ने इजरायल को 8.7 अरब डालर की मदद करने की बात कही है। इसमें भी 5 अरब डालर से ज्यादा की मदद इजरायली सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए है। इसका अर्थ यही निकलता है कि इजरायली आइरन डोम और एरो सुरक्षा प्रणालियां काफी कमजोर साबित हो गयी हैं। इजरायली आइरन डोम को अभी तक अभेद्य समझा जाता था। उसकी अभेद्यता का मिथ उस समय ध्वस्त हो गया जब यमन से छोड़ी गयी हाइपरसोनिक मिसाइल 2000 किमी. से ज्यादा सफर तय करके तेल अवीव के निकट एक एयरपोर्ट के पास जा गिरी।     
    
अब अमरीकी साम्राज्यवादी 8.7 अरब डाल की मदद करके इजरायल की डूबती नाव को सहारा दे रहे हैं। अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादियों के हथियारों और गोला बारूद के बल पर इजरायल गाजा और पश्चिमी बैंक में नरसंहार को अंजाम देता रहा है। जहां एक ओर अमरीकी साम्राज्यवादी, इजरायल की यहूदी नस्लवादी सत्ता को ‘अपनी सुरक्षा करने के अधिकार’ के बहाने कत्लेआम करने में मदद करते रहे हैं तो दूसरी ओर वे समझौता कराने का पाखण्ड करते रहे हैं। अभी भी समूची दुनिया में व्यापक विरोध के बावजूद भी वे इजरायली आतंकी सत्ता के पक्ष में दृढ़ता से खड़े हैं।    
    
हालांकि अमरीकी साम्राज्यवादी नहीं चाहते कि इस युद्ध का विस्तार हो। यदि युद्ध का विस्तार होता है और समूचे पश्चिम एशिया को अपने दायरे में ले लेता है तो अमरीकी साम्राज्यवादियों के इस क्षेत्र के देशों में मौजूद सैनिक अड्डे भी हमलों की चपेट में आ सकते हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियों को इसका खतरा सता रहा है। कारण यह कि अब अब्राहम समझौते का फिलहाल कोई अर्थ नहीं रह गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में साउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, जार्डन और अन्य पश्चिम एशिया के देशों ने जोर देकर इजरायल को फिलिस्तीन राज्य और जेरूसलम राजधानी छोड़ने की हिमायत की है। इजरायल द्वारा गाजापट्टी से अपनी सेनायें हटाने की मांग की है। संयुक्त राष्ट्र संघ की हाल की बहसों में अधिकांश देशों ने इजरायल की नरसंहार की कार्रवाई की निंदा की है। 
    
इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी। 
    
लेकिन वह अभी वैश्विक पैमाने पर भी अमरीकी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध अपने गठबंधन को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। वह ब्रिक्स, शंघाई सहकार संगठन और यूरेशियन आर्थिक संघ के जरिए अपने गठबंधन को मजबूत करके रूस, चीन और अन्य देशों से रिश्तों को सुदृढ़ कर रहा है। ईरान के लिए यह स्पष्ट है कि जब तक अमरीकी साम्राज्यवादियों को पश्चिम एशिया से कमजोर नहीं किया जायेगा, तब तक इजरायल के विरुद्ध निर्णायक प्रहार करना मुश्किल होगा। 
    
इसके उल्टे इजरायल ईरान को युद्ध में घसीटकर अमरीकी वर्चस्व का फायदा उठाने की पूरी कोशिश में लगा है। 
    
अभी फिलहाल तमाम उकसावों के बावजूद ईरान युद्ध में नहीं उतरा है। 
    
यदि प्रतिरोध करने वाले संगठनों के जरिए ईरान इजरायल को कमजोर करने में कामयाब होता है तो यह इजरायल की पराजय होगी। 

आलेख

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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